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8 लाख तक कमाई वालों को EWS ‘गरीब’ माना तो उनसे Income tax लेना बंद क्यों नहीं हो, मद्रास हाई कोर्ट ने दिया नोटिस…

सरकार ने 8 लाख तक की सालाना कमाई वालों को आर्थिक रूप से गरीब मान लिया है। इन्हें अब EWS quota में आरक्षण भी दिया जा रहा है। जबकि 2.5 लाख रुपये सालाना कमाई को आय कर वसूली के लिए बेस इनकम माना गया है। अब इसी झोल को देखते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस दे दिया है।

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Madras High Court

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8 लाख तक सालाना आमदनी पर अपना और परिवार का गुजारा करने वाले मिडिल क्लास हिंदुस्तानी को अब कुछ राहत की उम्मीद बंध गई है। क्योंकि मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने इस संबंध में की गई याचिका पर केंद्र सरकार का जवाब मांगा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के EWS आरक्षण के फैसले को सही बताया है। इस आरक्षण में अनारक्षित जातियों के लोगों में से जिन की सालाना कमाई 7,99,999 रुपये तक है उनको आर्थिक रुप से पिछड़ा मान कर उन्हें आरक्षण का फायदा दिया जाएगा। इसके लिए बकायदा संविधान में 103वां संशोधन किया गया है। ऐसे संविधान संशोधन के सरकार के फैसलों को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इस मामले में भी जनहित अभियान नाम के संगठन ने चुनौती दी थी। लंबे विचार के बाद कोर्ट ने इस EWS आरक्षण व्यवस्था को सही माना है।


अब मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने सरकार से पूछा है कि अगर यह सीमा सही है तो फिर आय कर कानून में ऐसी व्यवस्था क्यों है? आय कर वसूलने के लिए बेस इनकम 2.5 लाख रूपये सालाना की कमाई ही मानी गई है। सोमवार को जस्टिस आर महादेवन और जस्टिस सत्य नारायण प्रसाद की बेंच ने केंद्र सरकार को यह नोटिस जारी किया। इसने केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के अलावा वित्त और कार्मिक यानी Personnel मंत्रालय को भी जवाब देने को कहा है। अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी।

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हाई कोर्ट में यह याचिका डीएमके पार्टी की एसेट प्रोटेक्शन काउंसिल के कुन्नूर सीनीवासन ने की है। इनका कहना है कि फायनांस एक्ट 2022 के फस्ट शेड्यूल में संशोधन किया जाए। यह प्रावधान कहता है कि कोई भी व्यक्ति जिसकी कमाई साल में 2.5 लाख से कम है वह आय कर की सीमा से बाहर रखा जाएगा। याचिका करने वाले ने हाल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार बनाया है। जनहित अभियान बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने EWS श्रेणी के लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था को सही ठहराया है।

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इनका कहना है कि एक बार सरकार ने सकल आय यानी ग्रॉस इनकम का स्लैब 8 लाख तय कर दिया है तो फिर फायनांस एक्ट 2022 के संबंधित प्रावधानों को निरस्त घोषित कर दिया जाना चाहिए। इन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह साबित हो गया है कि 8 लाख से कम सालाना आय वाले गरीब हैं। ऐसे लोगों से इनकम टैक्स वसूलना ठीक नहीं हैं। ये ऐसे लोग हैं जो पहले से ही शिक्षा और अन्य क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं। मद्रास हाई कोर्ट में ताजा केस का टाइटल Kunnur Seenivasan v Union of India है और केस नंबर WP(MD) 26168 of 2022 है।