
Delhi high court
शादी के बाद क्या एक एक पुरुष को अधिकार है कि वो अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती करे? ये सवाल काफी समय से कई बार चर्चा का विषय बना है। अब दिल्ली हाई कोर्ट ने इस सवाल का स्पष्ट जवाब दे दिया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि शादी के बाद भी किसी महिला को न के अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता है। इसके साथ ही दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती (Marital Rape ) करता है तो वो सजा का पात्र होगा।
महिलाओं के 'न' कहने के अधिकार को दी प्राथमिकता
दिल्ली हाई कोर्ट ने देश में वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए एक अहम टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के ना करने के अधिकार से किसी भी सूरत में वंचित नहीं किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में सजा होनी चाहिए, परंतु सबूत और शिकायत मिलने के बाद।
दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने पूछा कि ये कैसे एक अविवाहित महिला की गरिमा को प्रभावित करती है, लेकिन एक विवाहित महिला की गरिमा को प्रभावित नहीं करती है?
क्या वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में आरोपी दंडित होना चाहिए?
दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ कहा कि किसी भी सूरत में महिलाओं की यौन स्वच्छंदता, शारीरिक अखंडता और रिश्ते बनाने से ना कहने के अधिकार से कोई वंचित नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि जहां तक रेप का सवाल है कि तो विवाहित जोड़े और अविवाहित में बुनियादी और गुणात्मक अंतर है।
वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि सवाल ये नहीं है कि क्या वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में आरोपी दंडित होना चाहिए या नहीं, बल्कि सवाल ये है कि क्या ऐसी स्थिति में वो दोषी है?
जस्टिस राजीव शकधर ने ये सवाल तब किया जब दिल्ली सरकार की वकील ने अदालत को बताया कि विवाहित महिलाएं आईपीसी की धारा 498 ए के तहत न्याय की मांग कर सकती हैं। दिल्ली सरकार के वकील ने अदालत को यह भी बताया कि आज की स्थिति में पति-पत्नी द्वारा आईपीसी की धारा 377, 498ए और 326 के तहत प्राथमिकी दर्ज की जाती है।
IPC की धारा 375 में अपवाद पर विचार
अदालत ने पूछा कि एक पुरुष अपनी सहमति के बिना एक महिला पर खुद को जबरदस्ती थोपता है? और ये कैसे एक अविवाहित महिला की गरिमा को प्रभावित करता है लेकिन एक विवाहित महिला की गरिमा को प्रभावित नहीं करता है?
न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने ये भी कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में वैवाहिक दुष्कर्म के प्रावधानों के पीछे के कानूनी तर्क को भी समझने का प्रयास करें। ये धारा शादीशुदा जोड़े के बीच यौन संबंध को दुष्कर्म के प्रावधानों से बाहर करती है। इस कानून के अपवाद पर विचार किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि वास्तव में भारतीय संस्कृति में वैवाहिक दुष्कर्म की अवधारण ही नहीं है। हालांकि, परंतु दुष्कर्म की बात आती है तो ये भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में आ जाएगा और दुष्कर्म साबित हुआ तो सजा का प्रावधान है।
हाई कोर्ट ने आगे कहा कि अपवाद के कारण अभियुक्त दंडात्मक प्रावधान से बच जाता है, इसलिए मूल मुद्दा यह है कि क्या ऐसे मामले अनुच्छेद 14 और 21 के तहत उचित हैं?
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"एक महिला एक महिला ही रहती है"
हाई कोर्ट ने एक उदाहरण भी रखा कि कल्पना कीजिए कि एक महिला को मासिक धर्म हो रहा है, पति कहता है कि वह सेक्स करना चाहता है तो ये उस महिला के साथ क्रूरता करता है। दिल्ली सरकार के वकील ने जवाब दिया कि यह एक अपराध है लेकिन आईपीसी की धारा 375 के तहत नहीं।
न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने टिप्पणी की कि जब कोई प्रेमिका या लिव-इन पार्टनर ना कहता है, तो यह एक अपराध है। न्यायमूर्ति शकधर ने कहा, "ये कैसे शादीशुदा महिला के लिए अलग है? एक महिला एक महिला ही रहती है।" कोर्ट अब इस मामले की आगे की सुनवाई बुधवार को करेगा और दोनों पक्षों पर गौर करेगा।
Updated on:
12 Jan 2022 07:46 am
Published on:
11 Jan 2022 11:50 pm
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