
NSE India
Share Market: नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने इंट्राडे या डेरिवेटिव ट्रेडिंग में मार्जिन फंडिंग (MTF) के लिए कोलेटरल के तौर पर इस्तेमाल होने वाले सिक्योरिटीज की एलिजिबिलिटी को सख्त कर दिया है। अभी इस लिस्ट में 1730 एलिजिबल सिक्योरिटीज (शेयर) हैं जिसमें से 1010 को बाहर कर दिया गया है। बाहर होने वाले स्टॉक्स में अदाणी पावर, यस बैंक, सुजलॉन, हुडको, भारत डायनेमिक्स, भारती हेक्साकॉम, आइआरबी इंफ्रा, एनबीसीसी, गो डिजिट, टाटा इन्वेस्टमेंट, पेटीएम, आइनॉक्स विंड, ज्यूपिटर वैगन्स, केआइओसीएल, ज्योति सीएनसी ऑटोमेशन, जेबीएम ऑटो, हैटसन एग्रो प्रोडक्ट, तेजस नेटवक्र्स जैसे शेयर हैं। NSE ने कहा कि 1 अगस्त, 2024 से सिर्फ उन्हीं शेयरों को कोलेटरल के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा जिनकी पिछले 6 महीने में कम से कम 99% दिनों में ट्रेडिंग हुई हो और जिनका इंपैक्ट कॉस्ट 1 लाख रुपए के ऑर्डर वैल्यू पर 0.1% तक हो। इंपैक्ट कॉस्ट किसी शेयर के लिए पहले से तय ऑर्डर साइज पर ट्रांजैक्शन की लागत है। एमटीएफ के लिए अयोग्य शेयरों को चरणबद्ध तरीके से बाहर किया जाएगा।
मॉर्जिन ट्रेडिंग फैसिलिटी (MTF) में शेयरों को गिरवी रखकर उसकी कीमत से कई गुना अधिक लोन मिल जाता है। एमटीएफ में निवेशकों को ट्रेडिंग के लिए जरूरी पैसों का कुछ हिस्सा ही चुकाना पड़ता है, बाकी पैसा ब्रोकर लोन की तरह दे देती है। मान लें कि 100 रुपए के भाव वाले 1,000 शेयरों की ट्रेडिंग करनी है तो 1 लाख रुपए की जरूरत पड़ेगी। एमटीएफ में अपने पास से 30% यानी 30 हजार रुपए लगाएं और बाकी 70 हजार रुपए ब्रोकर से लोन के रूप में मिल जाएगा। इस पर ब्रोकरेज फर्म ब्याज वसूलती है। जैसे बैंकों से लोन लेने पर कुछ गारंटी जमा करनी पड़ती है, वैसे ही यहां भी लोन के बदले ब्रोकर के पास शेयर या कोई और सिक्योरिटीज गिरवी रखनी पड़ती है।
HDFC सिक्योरिटीज के पूर्णकालिक निदेशक आशीष राठी ने कहा कि स्टॉकब्रोकर्स का एमटीएफ बुक 73,500 करोड़ रुपए से अधिक का है। उनका मानना है कि कोलेटरल लिस्ट में बदलाव का असर गरवी रखे शेयरों पर चरणबद्ध तरीके से पड़ेगा। इसका मतलब है कि ट्रेडर्स और इनवेस्टर्स ने जो शेयर गिरवी रखे हैं, अगर एनएसएई की कोलेटरल एलिबिजल लिस्ट में वे नहीं हैं तो उसे बदलना होगा। एमटीएफ में निवेशक इन शेयरों को ब्रोकर के पास गिरवी रखता है और फिर ब्रोकर इसे क्लियरिंग कॉरपोरेशन के पास अकाउंट बैलेंस मेंटेन करने के लिए गिरवी रख देता है। एनएसई ने यह फैसला यह सुनिश्चित करने के लिए लिया है कि सिर्फ अधिक लिक्विडिटी वाले और स्टेबल स्टॉक्स ही कोलेटरल के तौर पर इस्तेमाल हो सकें। इससे क्लियरिंग हाउस और फाइनेंशियल सिस्टम का रिस्क कम होगा।
Published on:
13 Jul 2024 07:33 am
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