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सजा और राहुल गांधी की सांसदी समाप्त, 70 साल बाद भी विवादों में क्यों है यह कानून

Rahul Gandhi Disqualification: राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द किए जाने के बाद से जनप्रतिनिधित्व कानून को लेकर बहस छिड़ गई है। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की गई है।

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Rahul Gandhi disqualification: After 70 years why disqualification law is in controversy

Rahul Gandhi Disqualification: 'मोदी सरनेम' वाले मानहानि मामले में दो साल की कैद की सजा पाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता समाप्त कर दी गई है। राहुल गांधी पर यह कार्रवाई जनप्रतिनिधित्व कानून-1951 Representatives of People's Act के तहत की गई। राहुल गांधी पर हुए इस एक्शन के बाद से इस कानून पर बहस शुरू हो गई है। 70 साल से ज्यादा पुराने जनप्रतिनिधित्व कानून के एक सेक्शन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीएलाई तक दायर कर दी गई है। इस याचिका के जरिए Representatives of People's Act के सेक्शन 8 (3) को चुनौती दी गई है। साथ ही मांग की गई है कि इस सेक्शन को रद्द किया जाए। कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल राहुल गांधी पर हुई कार्रवाई को लोकतंत्र की हत्या बता चुके हैं। इस मामले में लीगल एक्सपर्ट की राय भी अलग-अलग है।


सुप्रीम कोर्ट में PLI दायर कर उठाया गया सवाल-


जनप्रतिनिधित्व कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि, धारा 8(3) के तहत प्रतिनिधियों को दोषी पाए जाने के बाद उन्हें अपने आप अयोग्य घोषित नहीं किया जाना चाहिए। PLI में कहा गया कि चुने हुए प्रतिनिधि को सजा का एलान होते ही उनका जन प्रतिनिधित्व यानी सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य हो जाना असंवैधानिक है।


आरोपी के नेचर, गंभीरता, भूमिका जैसे कारकों की जांच की मांग-

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल PIL में कहा गया है कि अधिनियम के चैप्टर-3 के तहत अयोग्यता पर विचार करते समय आरोपी के नेचर, गंभीरता, भूमिका जैसे कारकों की जांच की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई कर क्या फैसला देती है यह तो आने वाला वक्त बताएगा। फिलहाल इस कार्रवाई और नियम पर बहस जारी है।


अजीबोगरीब स्थिति का सामना कर रहे राहुल गांधी-
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद, लोकसभा सचिवालय ने केरल के वायनाड निर्वाचन क्षेत्र से सदस्य के रूप में उनकी अयोग्यता की घोषणा के बाद अजीबोगरीब स्थिति का सामना कर रहे हैं- पहला, अयोग्यता, जो 2013 में लिली थॉमस मामले में शीर्ष अदालत के फैसले के अनुसार प्रभावी हुई है और दूसरा, उनकी सजा पर रोक कैसे लोकसभा सचिवालय की अधिसूचना को रद्द कर देगी।


लिली थॉमस मामले में तुरंत अयोग्य ठहराने की हुई थी घोषणा-


दरअसल राहुल गांधी से पहले लिली थॉमस मामले में शीर्ष अदालत ने घोषणा की कि एक सांसद या एक विधायक दोषी ठहराए जाने पर तुरंत अयोग्य हो जाएगा। विशेषज्ञों के अनुसार, गांधी को आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत दोषी ठहराए जाने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देनी चाहिए, जिसमें अधिकतम दो साल की सजा हो सकती है और लोकसभा से उनकी अयोग्यता से संबंधित अधिसूचना को भी चुनौती देनी चाहिए।


2018 में लोक प्रहरी मामले में फिर हुई थी पुष्टि-


वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि लिली थॉमस में 2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, जिसकी 2018 में लोक प्रहरी मामले में फिर से पुष्टि की गई थी, यह बहुत स्पष्ट है कि दो साल की सजा होने के बाद अयोग्यता हो जाती है और लोकसभा सचिवालय की अधिसूचना इसका प्रशासनिक पहलू है। लूथरा, पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल, ने आगे कहा कि अगर गांधी की सजा पर रोक लग जाती है, तो वह लोकसभा अध्यक्ष के पास जा सकते हैं और दोषसिद्धि पर रोक उन्हें 2024 का चुनाव लड़ने की अनुमति देगी।


लक्षद्वीप के सांसद फैजल पीपी का उदाहरण-
यहां दिलचस्प बात यह है कि लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल पीपी अभी भी निचले सदन में प्रवेश का इंतजार कर रहे हैं, भले ही केरल उच्च न्यायालय ने इस साल जनवरी में उनकी सजा पर रोक लगा दी थी। वरिष्ठ अधिवक्ता अमन लेखी ने कहा कि गांधी को उच्च न्यायालय से दोषसिद्धि और सजा पर रोक लगानी चाहिए और उन्हें लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी अधिसूचना को भी चुनौती देनी चाहिए।

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