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Ratan Tata थे पारसी, हिंदू-मुस्लिमों से बहुत अलग होता है पारसियों का अंतिम संस्कार, जानें क्या होती है Tower of Silence की प्रक्रिया

Ratan Tata Death Update: रटन टाटा के पार्थिव शरीर को सुबह करीब 10.30 बजे एनसीपीए लॉन में ले जाया जाएगा, ताकि लोग दिवंगत आत्मा को अंतिम श्रद्धांजलि दे सकें। बिजनेस टाईकून रतन टाटा पारसी थे। क्या आप जानते हैं पारसी लोगों का अंतिम संस्कार (Tower of Silence) बिल्कुल अलग ढंग से होता है?

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Tower of silence in Mumbai

Tower of silence in Mumbai

Ratan Tata Passed Away: देश के प्रमुख कारोबारी रतन टाटा का मुंबई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में निधन हो गया। वे 86 साल के थे। रतन नवल टाटा किसी परिचय के मोहताज नहीं है। देश की जानी मानी हस्ती रतन टाटा को भारत के दो सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण (Padma Bhushan 2000) और पद्म विभूषण (Padma Vibhushan 2008) से भी सम्मानित किए जा चुका है। बिजनेस टाईकून रतन टाटा पारसी थे। आज यानी गुरूवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। वर्ली के श्मशान घर में रतन टाटा के शव का अंतिम संस्कार होगा। क्या आप जानते हैं पारसी लोगों का अंतिम संस्कार (Tower of Silence) बिल्कुल अलग ढंग से होता है? आइए जानते हैं हिंदू-मुस्लिमों से कितना अलग होता है पारसियों का अंतिम संस्कार-

रतन टाटा का अंतिम संस्कार पारसी रीति रिवाज से होगा?

रतन टाटा के पार्थिव शरीर को कोलाबा स्थित उनके घर ले जाया गया है। उनके पार्थिव शरीर को गुरुवार के दिन वर्ली श्मशान घर ले जाया जाएगा जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। रटन टाटा के पार्थिव शरीर को सुबह करीब 10.30 बजे एनसीपीए लॉन में ले जाया जाएगा, ताकि लोग दिवंगत आत्मा को अंतिम श्रद्धांजलि दे सकें। शाम करीब 4 बजे रतन टाटा का पार्थिव शरीर अंतिम संस्कार के लिए नरीमन पॉइंट से वर्ली श्मशान प्रार्थना हॉल की ओर अंतिम यात्रा पर निकलेगा। परिवार ने बताया कि श्मशान घाट पर राष्ट्रीय ध्वज में लिपटे पार्थिव शरीर को पुलिस की बंदूक की सलामी दी जाएगी और फिर अंतिम संस्कार संपन्न होगा।

पारसियों के अंतिम संस्कार की परंपरा 3 हजार साल पुरानी

रतन टाटा का अंतिम संस्कार पारसी रीति रिवाज से ही होगा, इस बारे में कोई भी जानकारी फिलहाल सामने नहीं आई है। पारसियों के अंतिम संस्कार की परंपरा हिंदू, मुस्लिम और ईसाइयों से काफी अलग है। पारसी न तो हिंदुओं की तरह अपने परिजनों के शव को जलाते हैं, न ही मुस्लिम और ईसाई की तरह दफन करते हैं। पारसियों के अंतिम संस्कार की परंपरा 3 हजार साल पुरानी है। पारसियों के कब्रिस्तान को दखमा या टावर ऑफ साइलेंस कहते हैं। टावर ऑफ साइलेंस गोलाकार खोखली इमारत के रूप में होता है।

क्या होता है टावर ऑफ साइलेंस

किसी व्यक्ति की मौत के बाद उन्हें शुद्ध करने की प्रक्रिया के बाद शव को ‘टावर ऑफ साइलेंस’ में खुले में छोड़ दिया जाता है। पारसियों की अंत्येष्टि की इस प्रक्रिया को दोखमेनाशिनी (Dokhmenashini) कहा जाता है। इसमें शवों को आकाश में दफनाया (Sky Burials) जाता है यानि शव के निपटारे के लिए उसे टावर ऑफ साइलेंस में खुले में सूरज और मांसाहारी पक्षियों के लिए छोड़ दिया जाता है। इसी तरह का अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के लोग भी करते हैं। वो भी शव को गिद्ध के हवाले कर देते हैं।

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