
नई दिल्ली।
कोरोना महामारी की वजह से लोगों की परेशानियां बढ़ती ही जा रही हैं। उनके लिए रोज नए-नए संकट पैदा हो रहे हैं। कई लोग इसके संक्रमण से जूझ रहे तो कुछ लोग इससे बचाव के लिए अपनाए गए तरीके के कारण हुए साइड इफेक्ट्स से खतरे में हैं।
इसी क्रम में कोरोना संक्रमण से बचने के लिए अपनाए गए तरीके के कारण कुछ लोगों में कोविड-टो की समस्या देखने को मिल रही है। जी हां, वैज्ञानिकों की मानें तो उन्हें रिसर्च के बाद इस उलझन का जवाब मिल गया है कि कोरोना संक्रमण के बीच कई लोगों के पैर के अंगूठे और उंगलियों में जो घाव हो रहे हैं, उसकी वजह क्या है। फिलहाल रिसर्च टीम ने इसे कोविड-टो नाम दिया है। टीम के मुताबिक, यह समस्या कोरोना से बचने के लिए अपनाए गए तरीके के कारण हुए साइड इफेक्ट्स हैं।
रिसर्च टीम ने यह भी पता लगाया है कि शरीर के प्रतिरोधक क्षमता के किस हिस्से की वजह से यह परेशानी हो रही है। टीम के अनुसार, यह समस्या किसी भी उम्र के व्यक्ति में हो सकती है, लेकिन बच्चों और 20 साल से कम उम्र के लोगों में यह अधिक देखने को मिल रहा है।
वैसे देखा जाए तो कोविड-टो को लेकर रिसर्च टीम अभी किसी पुख्ता नतीजे पर नहीं पहुंची है। इससे पीड़ित कुछ लोगों को दर्द नहीं होता, लेकिन सूजन और खुजली होती है और इससे दाने भी हो जाते हैं। कुछ लोगों को यह समस्या कोविड के दौरान शुरू होती है, कुछ लोग को इसके बाद और कई लोगों को कोरोना संक्रमण के बिना भी यह समस्या हो रही है। मगर जिन्हें भी यह हो रहा है उन्हें चलने में मुश्किल हो रही है। जूते या चप्पल पहनने में भी दिक्कत महसूस हो रही है।
रिसर्च टीम का कहना है कि अमूमन अंगूठे और मगर कई बार उंगलियों पर भी इसका असर होता है। वह लाल हो जाती हैं और कई बार नीली पड़ जाती हैं। उस जगह की त्वचा खुरदरी हो जाती है और कई लोगों को तेज दर्द और सूजन हो जाती है।
कुछ लोगों में यह समस्या महीनों तक बनी रहती है, तो कई लोगों में यह कुछ हफ्तों में ठीक हो जाता है। कई मामलों में लोगों में आमतौर पर दिखने वाले कोरोना के लक्षण नहीं होते जैसे बुखार, खांसी या फिर स्वाद और गंध नहीं आने जैसी शिकायत।
दरअसल, नई रिसर्च के मुताबिक, खून और त्वचा की जांच से पचा चलता है कि प्रतिरोधक क्षमता के दो हिस्से इसके लिए जिम्मेदार हैं। पहला एक एंटीवायरल प्रोटीन है जिसे टाइप-1 इंटरफेरॉन कहते हैं और दूसरा एक एंटीबॉडी है जो गलती से सिर्फ वायरस ही नहीं, व्यक्ति की कोशिकाओं और उत्तकों पर भी हमला कर देता है। वहीं, प्रभावित क्षेत्र की रक्त कोशिकाएं भी इसमें शामिल हैं।
रिसर्च टीम ने कोविड-टो का संभावित तौर पर शिकार 50 लोगों पर अध्ययन किया, इनमें से 13 में ये समस्या कोरोना के कारण नहीं हुई थी, क्योंकि उनमें ये लक्षण महामारी शुरू होने के पहले देखे गए थे। वैसे तो यह अभी भी एक अनसुलझी पहेली दिख रही है, मगर उम्मीद की जा रही है कि अब तक सामने आई जानकारी से मरीजों और डॉक्टरों को इस लक्षण को बेहतर समझने में मदद मिलेगी।
डाक्टरों का मानना है कि अंगूठे में होने वाली इस तरह की मौसम से जुड़ी दिक्कतों की तरह ये भी खुद ही ठीक हो जाएंगे। हालांकि, कुछ मामलों में क्रीम और दवाइयों से इलाज की जरूरत होगी। उनका मानना है कि कारण पता चल जाने से इलाज और बेहतर उपचार में मदद मिलेगी। विशेषज्ञों के अनुसार, ये लक्षण कोविड के शुरुआती दौर में अधिक देखे गए थे और डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित लोगों में ये लक्षण कम हैं। टीकाकरण से बाद ये और कम हो सकते हैं। कोरोना से जुड़ी त्वचा की दिक्कतें कई दिनों के बाद दिख सकती हैं और उन लोगों में भी जिनमें बीमारी के कोई लक्षण नहीं थे, इसलिए कोविड से इनके संबंध का पता लगाना मुश्किल होता है।
Published on:
09 Oct 2021 08:20 am
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