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ससुराल वालों का जरा सा बुरा व्यवहार दहेज उत्पीड़न की क्रूरता में नहीं किया जा सकता शामिल: सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ससुराल में बहु के साथ बुरे व्यवहार के मामले को दहेज उत्पीड़न का नाम नहीं दिया जा सकता है। आइए जानते हैं कि पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणियां की हैं।

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What is Dowry Prohibition act 1961: सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ससुराल में बहु से बुरा व्यवहार करने को दहेज उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता है। अगर शिकायकर्ता के वैवाहिक जीवन में ससुराल वालों के बुरे व्यवहार के कोई साक्ष्य पेश नहीं किए जाते हैं तो आरोपी को आईपीसी की धारा 498 ए के तहत क्रूरता का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने यह टिप्पणी कर्नाटक के एक मामले की सुनवाई के दौरान की है। दरअसल कर्नाटक की एक महिला ने यह आरोप लगाया था कि उसकी नई नवेली भाभी ने उसके साथ अभद्र भाषा का प्रयोग किया और उसका निजी सामान कूड़ेदान में फेंक दिया।

आरोपी महिला विदेश में रहती थी

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह पाया कि आरोपी महिला यानी ननद अपनी भाभी के साथ उस घर में नहीं रहती थी। दरअसल महिला विदेश में रहती थी। अदालत ने पाया कि भाई की पत्नी यानी भाभी ने महिला द्वारा अपने ऊपर की गई क्रूरता का कोई विशेष साक्ष्य नहीं पेश कर पाई। पीठ ने कहा कि महिला के भाई ने 2022 में ही अपनी पत्नी को तलाक दे दिया था और उसके खिलाफ उसकी भाभी के आरोप बहुत अस्पष्ट और सामान्य थे।

क्या कहता दहेज निषेध अधिनियम?

दहेज निषेध अधिनियम 1961 के अनुसार दहेज लेने या देने या इसके लेनदेन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के अन्तर्गत पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना लगाया जा सकता है। यदि लड़की को स्त्रीधन सौंपने से मना करने पर धारा 406 के अन्तर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या दोनों हो सकता है।

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