
Shikhar Dhawan Divorce
Shikhar Dhawan Divorce: भारतीय क्रिकेट टीम के सलामी बल्लेबाज शिखर धवन और उनकी पत्नी आयशा मुखर्जी एक दूसरे से पूरी तरह से अलग हो चुके हैं। बुधवार को दिल्ली की पटियाल हाउस कोर्ट ने दोनों के तलाक को मंजूरी दे दी है। अदालत ने हिंदू मैसेज एक्ट के तहत मानसिक क्रूरता के आधार पर दोनों को रिश्ता खत्म करने का फैसला सुनाया है। बता दें कि शिखर धवन ने अपनी पत्नी पर मानसिक क्रूरता का आरोप लगाया था, जिसे कोर्ट ने सही पाया है।
कोर्ट ने धवन की दलीलों को किया स्वीकार
पटियाला हाउस फैमली कोर्ट ने शिखर धवन द्वारा पेश की गई सभी दलीलों को माना है। जज हरीश कुमार ने धवन को हुई मानसिक पीड़ा को स्वीकार किया, जो काफी वक्त तक अपने बेटे जोरावर से दूर रहने के लिए मजबूर रहे। कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा कि शिखर धवन भारत और आस्ट्रेलिया दोनों देशों में अपने बेटे के साथ समय बिताने के अधिकारी है, साथ वीडियो कॉल पर बातचीत की भी अनुमति दी।
इसके अलावा, न्यायधीश हरीश कुमार की कोर्ट ने आगे कहा कि आयशा मुखर्जी शैक्षणिक कैलेंडर के अन्दर बच्चे के स्कूल की छुट्टियों की कम से कम आधी अवधि भारत में बिताएंगी, जिसमें धवन और उसके परिवार के साथ रात भर रहना भी शामिल है। साथ ही कोर्ट ने आस्ट्रेलिया में चल रहे वाद में सहायत के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश की बात कही है।
मैरेज एक्ट की धारा 13 (1) के तहत मिला तलाक
मैरेज एक्ट की धारा 13 (1) के तहत तलाक के लिए दायर अर्जी में व्यभिचार, क्रूरता, परित्याग, धर्मान्तरण, मानसिक विकार, कुष्ठ, यौन रोग, सात साल तक जिंदा ना मिलना, सहवास की बहाली को आधार बनाया जा सकता है। ये प्रक्रिया कई स्टेप्स में पूरी होती है। इस प्रवधान के तहत शिखर धवन को तलाक के लिए मंजूरी मिली है।
ये है प्रावधान
1 स्टेप में सबसे पहले यह सुनिश्चित करना होता है कि तलाक का आधार क्या है।
2. स्टेप: इसके बाद जिस आधार पर अलग होने के लिए अर्जी दाखिल की जाती है, उसके लिए सबूत इकट्ठा करना होता है।
3 स्टेप : इसके बाद में सारे सबूत और दस्तावेज अदालत के समक्ष पेश किए जाते हैं।
4. स्टेप (A): सारे सबूत पेश होने के बाद दूसरे पक्ष को कोर्ट में तलब किया जाता है।अगर दूसरा पक्ष हाजिर नहीं होता है तब कोर्ट जमा किए गए कागजों के आधार पर कार्रवाई को शुरू कर देती है।
4 स्टेप (B): यदि दूसरा पक्ष कोर्ट में हाजिर हो जाता है तब कोर्ट दोनों पक्षों की दलीलें सुनकर मामले को आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास करती है। अदालत दोनों को कुछ समय ये तय करने के लिए देतीहै कि दोनों साथ रहना चाहते हैं या अलग होना चाहते हैं।
5 स्टेप: कोर्ट द्वारा दिए गए वक्त में अगर दोनों पक्ष सुलह करने में नाकाम रहते हैं तब अपील दायर करने वाला पक्ष दूसरे पक्ष के खिलाफ लिखित बयान के रूप में याचिका देता है। ये याचिका देने के लिए कोर्ट 30 से 90 दिनों का समय देती है।
6 स्टेप: लिखित बयान जमा करने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अदालत तय करती है कि आगे किस प्रकिया का पालन करना है।
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Updated on:
05 Oct 2023 01:20 pm
Published on:
05 Oct 2023 01:16 pm
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