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आत्महत्या करने वालों में छात्र और बेरोजगार सबसे ज्यादा

- संसदीय समिति ने जताई चिंता, असफलता से हताश युवाओं को चिह्नित करने की सिफारिश

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आत्महत्या करने वालों में छात्र और बेरोजगार सबसे ज्यादा

आत्महत्या करने वालों में छात्र और बेरोजगार सबसे ज्यादा

नई दिल्ली। देश में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। आत्महत्या करने वालों में छात्रों और बेरोजगार युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। विद्यार्थियों की आत्महत्या पर किसी का बमुश्किल ध्यान जाता है और इसे 'केस-टू-केस' के आधार पर निपटा दिया जाता है, जबकि छात्रों से कम संख्या में आत्महत्या के बाद भी किसानों की आत्महत्या को राष्ट्रीय संकट करार दे दिया गया था।

स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय की स्थाई संसदीय समिति की राज्यसभा में पेश ताजा रिपोर्ट में इन तथ्यों पर चिंता जताते हुए ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए गम्भीरता से कदम उठाने की सलाह दी गई है। समिति ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के हवाले से कहा कि एक साल में 26 हजार से ज्यादा छात्रों और बेरोजगारों ने जान दी है। इसे गम्भीरता से लेने की जरूरत है।

समिति ने स्वास्थ्य मंत्रालय से संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी), नीट व जेईई जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में फेल हो जाने वाले युवाओं से जुड़ने के लिए फोन-आधारित सम्पर्क स्थापित करने की सिफारिश करते हुए कहा कि चौबीस घंटे (24 गुणा 7) चलने वाली हैल्पलाइन के जरिए ऐसे अनुत्तीर्ण युवाओं को चिह्नित कर उनकी काउंसलिंग की जानी चाहिए, ताकि इनका अवसाद कम किया जा सके। समिति ने कहा कि आत्महत्या के कारणों पर नजर रखने के तरीकों को मजबूत करने और उनकी संख्या में कमी लाने की दिशा में काम किया जाना चाहिए।

समिति के अध्यक्ष भुबनेश्वर कालिता ने रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि समिति की राय में 'निराशाजनक और कम आत्मसम्मान महसूस करना' किसी व्यक्ति को आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए प्रेरित करता है। इस पर अंकुश के लिए मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और शिक्षा अभियानों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। समिति ने इसके लिए बच्चों, किशोरों और युवाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं डिजाइन करने व 'मनोदर्पण' पहल के तहत सभी स्कूलों में परामर्शदाताओं का एक समर्पित कैडर बनाने की भी सिफारिश की।

ठीक नही मानसिक स्वास्थ्य

समिति ने कहा कि साल 2015 में हुए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में करीब 15 करोड़ लोगों के मानसिक रोगों से ग्रस्त होने की बात सामने आई थी और साल 2023 में भी वैसी ही स्थितियां हैं। भारत को विश्व के मानसिक अवसाद से सर्वाधिक प्रभावित देशों की श्रेणी में रखा गया है। दुनिया के 64 देशों में हुए अध्ययन के आधार पर तैयार वैश्विक रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग 56वीं है, लेकिन देश में प्रति एक लाख लोगों पर मनोरोग चिकित्सकों की मौजूदगी महज 0.75 है। इस पर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

हर साल बढ़ रही आत्महत्याएं





























सालआत्महत्या करने वालों की संख्या
20171,29,887
20181.34,516
20191,39,123
20201,53,052
20211,64,033

(स्रोत-एनसीआरबी रिपोर्ट 2021)