स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय की स्थाई संसदीय समिति की राज्यसभा में पेश ताजा रिपोर्ट में इन तथ्यों पर चिंता जताते हुए ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए गम्भीरता से कदम उठाने की सलाह दी गई है। समिति ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के हवाले से कहा कि एक साल में 26 हजार से ज्यादा छात्रों और बेरोजगारों ने जान दी है। इसे गम्भीरता से लेने की जरूरत है।
समिति ने स्वास्थ्य मंत्रालय से संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी), नीट व जेईई जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में फेल हो जाने वाले युवाओं से जुड़ने के लिए फोन-आधारित सम्पर्क स्थापित करने की सिफारिश करते हुए कहा कि चौबीस घंटे (24 गुणा 7) चलने वाली हैल्पलाइन के जरिए ऐसे अनुत्तीर्ण युवाओं को चिह्नित कर उनकी काउंसलिंग की जानी चाहिए, ताकि इनका अवसाद कम किया जा सके। समिति ने कहा कि आत्महत्या के कारणों पर नजर रखने के तरीकों को मजबूत करने और उनकी संख्या में कमी लाने की दिशा में काम किया जाना चाहिए।
समिति के अध्यक्ष भुबनेश्वर कालिता ने रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि समिति की राय में ‘निराशाजनक और कम आत्मसम्मान महसूस करना’ किसी व्यक्ति को आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए प्रेरित करता है। इस पर अंकुश के लिए मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और शिक्षा अभियानों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। समिति ने इसके लिए बच्चों, किशोरों और युवाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं डिजाइन करने व ‘मनोदर्पण’ पहल के तहत सभी स्कूलों में परामर्शदाताओं का एक समर्पित कैडर बनाने की भी सिफारिश की।
ठीक नही मानसिक स्वास्थ्य
समिति ने कहा कि साल 2015 में हुए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में करीब 15 करोड़ लोगों के मानसिक रोगों से ग्रस्त होने की बात सामने आई थी और साल 2023 में भी वैसी ही स्थितियां हैं। भारत को विश्व के मानसिक अवसाद से सर्वाधिक प्रभावित देशों की श्रेणी में रखा गया है। दुनिया के 64 देशों में हुए अध्ययन के आधार पर तैयार वैश्विक रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग 56वीं है, लेकिन देश में प्रति एक लाख लोगों पर मनोरोग चिकित्सकों की मौजूदगी महज 0.75 है। इस पर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
हर साल बढ़ रही आत्महत्याएं
साल | आत्महत्या करने वालों की संख्या |
2017 | 1,29,887 |
2018 | 1.34,516 |
2019 | 1,39,123 |
2020 | 1,53,052 |
2021 | 1,64,033 |
(स्रोत-एनसीआरबी रिपोर्ट 2021)