
सुप्रीम कोर्ट (File Photo)
बदलते समय में रिश्तों की जटिलताओं को उजागर करता एक मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुलझा। 80 वर्षीय कमलाकांत मिश्रा और उनकी 78 वर्षीय पत्नी को तब न्याय मिला, जब अदालत ने उनके 61 वर्षीय बेटे को मुंबई में उनके दो कमरों से बेदखल करने का आदेश दिया। यह कदम उस बेटे के खिलाफ उठाया गया, जो अपने माता-पिता को भरण-पोषण नहीं दे रहा था।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें बेटे की बेदखली का ट्रिब्यूनल का आदेश खारिज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बेटे की ‘वरिष्ठ नागरिक’ की स्थिति उस दिन से मानी जाएगी, जब ट्रिब्यूनल में 2023 में आवेदन किया गया था, बेटा तब 59 साल का था।
अदालत ने ट्रिब्यूनल के आदेशों को बहाल करते हुए कहा कि बेटा सक्षम होने के बावजूद अपने कानूनी दायित्वों का पालन नहीं कर रहा और माता-पिता को उनके घर में रहने से रोक रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने 30 नवंबर तक दोनों कमरे खाली करने का निर्देश देते हुए जोर देकर कहा कि 2007 के अधिनियम का उद्देश्य बुजुर्गों की देखभाल और संरक्षण सुनिश्चित करना है। यदि कोई बेटा या रिश्तेदार अपने भरण-पोषण का दायित्व निभाने में असफल हो, तो ट्रिब्यूनल को उसे संपत्ति से हटाने का अधिकार है।
पिता के नाम मुंबई के यादव नगर में यादव चॉल और साकी नाका, बंगाली चॉल में दो कमरे थे। बेटे ने इन कमरों में व्यवसाय शुरू कर माता-पिता को बाहर कर दिया। मजबूर होकर बुजुर्ग अपने पैतृक शहर उत्तर प्रदेश लौट गए और ट्रिब्यूनल में भरण-पोषण और संपत्ति खाली कराने की याचिका दायर की।
जून 2024 में ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया कि बेटे को दोनों कमरे माता-पिता को सौंपने होंगे और मासिक 3,000 रुपए भरण-पोषण देना होगा। बेटे ने इसे मुंबई हाईकोर्ट में चुनौती दी और 25 अप्रेल 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह कहते हुए राहत दे दी कि ट्रिब्यूनल के पास संपत्ति खाली कराने का अधिकार नहीं था, क्योंकि बेटा 60 वर्ष से अधिक का था।
Published on:
27 Sept 2025 07:02 am
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