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जुनून का दूसरा नाम है ‘दूशारला’, रिटायर्टमेंट की उम्र में अकेले उगा दिया 70 एकड़ में घना जंगल

दूशारला ने पिछले 65 वर्ष के निरंतर प्रयास से अपनी 70 एकड़ की भूमि पर एक जंगल उगा दिया जिसमें बड़े-छोटे और अति छोटे, इतने छोटे कि आपके पांव के तले आ जाएं पेड़-पौधे उगा दिए।

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-संजय कुुमार, वरिष्ठ पत्रकार

दूशारला सत्यनारायण जैसा कोई दूसरा नहीं। इसे क्या कहूं- एक आदमी का जुनून, एक आदमी की सनक, एक आदमी का संकल्प या फिर कहूं– एक आदमी की दृढ़ इच्छाशक्ति। हां, ‘संकल्प से सिद्धि तक’, ऐसा दृढ़ इरादा एकदम फीट बैठता है इस ऊर्जावान 69 वर्षीय ‘जंगलमैन’ पर। हां, जंगलमैन, क्योंकि जीवन के 69 वर्ष पूरे कर चुके दूशारला ने 4 वर्ष की बाल्यावस्था से अपने पूर्वजों के 70 एकड़ की भूमि पर अकेले ही वह हासिल कर दिखाया जिसकी कल्पना करना और उसे यथार्थ में सृजित करने के लिए अनवरत साल–दर-साल, नहीं-नहीं, कहिए दशक-दर-दशक एक जुनून के साथ जुटे रहना हर कोई के बस की बात नहीं। दूशारला ने पिछले 65 वर्ष के निरंतर प्रयास से अपनी 70 एकड़ की भूमि पर एक जंगल उगा दिया जिसमें बड़े-छोटे और अति छोटे, इतने छोटे कि आपके पांव के तले आ जाएं पेड़-पौधे उगा दिए।


4 साल की उम्र से ही उगा रहे पेड़-पौधे

यह जंगल तेलंगाना राज्य के सूर्यापेट जिले के मोथे मंडल के राघवपुरम गांव में है। वही सूर्यापेट जो कभी नालगोंडा जिला के अंतर्गत हुआ करता था। इसी गांव में जन्मे और हैदराबाद के जयशंकर कृषि विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री लेने वाले प्रकृति प्रेमी दूशारला कहते हैं कि 4 वर्ष की आयु से ही मैं अपनी इस भूमि पर पेड़-पौधे लगाते आ रहा हूं। पेड़-पौधे लगाने का वह उत्साह मुझमें आज भी मौजूद है।

जंगल पर केवल जंगली जीवों का हक

दूशारला के संग उनके जंगल घूमने और यहां के पेड़-पौधों से परिचित होने के दौरान यह जाना कि यहां के वन संपदा का उपयोग व्यापार में नहीं किया जाता। इस वन में शरीफा, जामुन, आम, अमरूद, केला, बेर इत्यादि के पेड़ हैं और इनका सेवन यहां बसर कर रहे अनगिनत प्रजाति के पक्षियों सहित रंग-बिरंगी तितलियां और बंदर, मोर, फिर छोटे जीव जैसे गिलहरी आदि ही करते हैं। इस जंगल पर हक केवल जंगल में रह रहे जीवों का ही है।


जंगल विभिन्न फलों-फूलों के पेड़ पौधे

इस जंगल में लगे सागवान, बांस और शीशम के पेड़ों सहित फलदार पेड़ों पर लगे विभिन्न फलों की महक और लत्तर वाले फूलों के पौधों की सुगंध और साथ में पक्षियों की चहचहाट जंगल की शोभा बढ़ाने और उसे जीवंत बनाये रखने में अहम् योगदान दे रहे हैं।

बैंक की नौकरी छोड़ने बाद भी कमजोर नहीं पड़ा संकल्प

एक बार फिर से याद दिला दूं कि 65 वर्ष पहले की गई कल्पना को उस व्यक्ति ने जमीन पर उतार दिया जिसे इस क्रम में एक अधिकारी के तौर पर आंध्रा और यूनियन बैंक की नौकरी भी छोड़नी पड़ी। इतना ही नहीं इन्हें अपनी पत्नी और बच्चों से भी जुदा होना पड़ा। मगर घर-परिवार और नौकरी-चाकरी खोने के बाद भी इनका संकल्प कमजोर नहीं पड़ा। बावजूद इन विपरीत परिस्थितियों के दूने उत्साह के साथ दूशारला अपने सपने को साकार करने में दिन-रात जुटे रहे।


आधा दर्जन से अधिक तालाब, एक में केवल कमल के फूल

दूशारला के इस जंगल में पशु-पक्षियों की प्यास मिटाने और जंगल को हरा-भरा बनाये रखने के लिए आधा दर्जन से अधिक तालाब भी हैं। एक तालाब तो ऐसा भी है जिसमें केवल कमल के फूल खिले होते हैं। खिलने वाला कमल का फूल भी दूर्लभ मैरून रंग का है। जंगल की शोभा बढ़ाते इन कमल के फूलों को तोड़ना मना है। दूशारला पूरे सीजन में केवल एक बार इस कमल के फूल को श्रीशैलम में अपनी आराध्य भ्रमरम्बा माता को अर्पित करते हैं। बातचीत के दौरान इन फूलों से उनका लगाव इस हद तक प्रदर्शित हुआ कि हास्य का मिश्रण करते हुए उन्होंने कहा कि वह प्रार्थना के दौरान श्रीशैलम में ही मौजूद मल्लिकार्जुन स्वामी (12 ज्योतिर्लिंगों में से एक) को भी ऑफर नहीं करते।


कई आंदोलन किए, जल साधना समिति की स्थापना की

जीवन के तीसरे दौर में प्रवेश कर चुके दूशारला ने केवल जंगल नहीं उगाया। उन्होंने अपने नालगोंडा जिले में जल और फ्लोराइड की समस्या को दूर करने के लिए कई आंदोलन भी किए। उन्होंने 1980 में जल साधना समिति की स्थापना की। सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के लिए उन्होंने न सिर्फ नलगोंडा से श्रीशैलम, यादगिरीगुट्टा और हैदराबाद तक की पदयात्रा की बल्कि दिल्ली के जंतर-मंतर पर भी प्रदर्शन किया। उन्हें ‘वाटर मैन ऑफ तेलंगाना’ के नाम से जाना जाने लगा।