
दिल्ली के 'कॉन्स्टिट्यूशन क्लब' में मशहूर गीतकार जावेद अख्तर और इस्लामिक विद्वान मुफ्ती शमाइल अहमद के बीच हुई महाबहस। (फोटो: AI Generated)
Javed Akhtar Mufti Shamail Debate: मशहूर गीतकार जावेद अख्तर और इस्लामिक विद्वान मुफ्ती शमाइल अहमद के बीच दिल्ली के 'कॉन्स्टिट्यूशन क्लब' में हुई गर्मागर्म तार्किेक महा बहस ने सोशल मीडिया पर आग लगा दी है। इस बहस की गूँज अब डिजिटल दुनिया और बौद्धिक गलियारों में खूब सुनाई दे रही है। वीडियो में भारतीय सिनेमा के दिग्गज लेखक जावेद एक मुफ्ती के साथ तीखी बहस करते हुए नजर आ रहे हैं। दरअसल 'दी लल्लनटॉप' के मंच पर गीतकार जावेद अख्तर और मुफ्ती शमाइल अहमद के बीच "क्या ईश्वर का अस्तित्व है?" विषय पर करीब दो घंटे तक संवाद हुआ। जहां जावेद अख्तर ने 'नास्तिकता' (Atheism) का पक्ष रखा, वहीं मुफ्ती शमाइल ने वैज्ञानिक और तार्किक दलीलों से 'ईश्वरवाद' का बचाव किया। कार्यक्रम में सौरभ द्विवेदी की मेजबानी में जावेद अख्तर और युवा इस्लामिक स्कॉलर मुफ्ती शमाइल अहमद के बीच एक ऐतिहासिक डिबेट हुई।
जावेद अख्तर अपनी 'नास्तिकता' (Atheism) और बेबाकी के लिए मशहूर हैं, वहीं मुफ्ती शमिल अपनी तार्किक दलीलों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से धर्म की व्याख्या करने के लिए युवाओं के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर इस वीडियो ने करोड़ों व्यूज बटोरे हैं, क्योंकि यहां 'नास्तिकता' और 'धार्मिक दर्शन' के बीच सीधा मुकाबला था। इस बहस का एक रोचक पहलू यह भी है कि मुफ्ती शमाइल ने पारंपरिक मुल्लाओं के विपरीत 'बिग बैंग' और 'जेनेटिक्स' जैसे आधुनिक वैज्ञानिक विषयों का सहारा लिया, जो मुस्लिम स्कॉलर्स के बदलते स्वरूप को दर्शाता है।
बहस के दौरान कई ऐसे मोड़ आए जहां एकदम सन्नाटा छा गया। मुख्य संवाद कुछ इस प्रकार रहा:
सवाल मुफ्ती (शमाइल अहमद): "अगर एक घड़ी या मोबाइल फोन बिना किसी मेकर के नहीं बन सकता, तो इतनी सटीक और जटिल कायनात (ब्रह्मांड) बिना किसी बनाने वाले के कैसे बन गई?"
जवाब (जावेद अख्तर): "यह कहना कि हर चीज का बनाने वाला जरूरी है, खुद में एक विरोधाभास है। क्योंकि अगर हर चीज का मेकर है, तो फिर ईश्वर का मेकर कौन है? यह सिलसिला तो कभी खत्म ही नहीं होगा।"
सवाल (नैतिकता पर): मुफ्ती ने तर्क दिया कि बिना ईश्वरीय किताब के इंसान को सही और गलत का पता कैसे चलेगा? इस पर जावेद अख्तर ने कहा कि 'विवेक' और 'मानवता' किसी भी धार्मिक ग्रंथ से पुराने और बड़े हैं। इंसान को अच्छा होने के लिए स्वर्ग या नरक के लालच-डर की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
खास बात यह रही कि एक गीतकार के विचारों पर एक इंसान (मुफ्ती) बहस कर रहा है, जो सदियों पुराने 'मानवीय मूल्यों' की तलाश का प्रतीक है।
यह डिबेट इसलिए भी खास है क्योंकि मुफ्ती शमाइल ने पारंपरिक मुल्ला-मौलवियों की तरह चिल्लाने के बजाय 'लॉजिक' का सहारा लिया। उन्होंने दिखाया कि नई पीढ़ी के स्कॉलर्स अब आधुनिक विज्ञान (जैसे बिग बैंग और जेनेटिक्स) को धर्म के साथ जोड़ कर देखना चाहते हैं। वहीं जावेद अख्तर ने यह संदेश दिया कि उम्र के इस पड़ाव पर भी सवाल पूछने की हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए।
बहस की शुरुआत मुफ्ती शमाइल अहमद की दलीलों से हुई। उन्होंने 'बौद्धिक डिजाइन' (Intelligent Design) का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह एक साधारण घड़ी या मोबाइल फोन बिना किसी निर्माता (Maker) के अस्तित्व में नहीं आ सकता, तो यह अनंत और सटीक ब्रह्मांड बिना किसी रचयिता के कैसे बन सकता है? उन्होंने तर्क दिया कि विज्ञान हमें यह तो बताता है कि ब्रह्मांड कैसे काम करता है, लेकिन यह नहीं बताता कि वह 'क्यों' मौजूद है।
जावेद अख्तर ने इसके जवाब में कहा कि यह तर्क स्वयं में एक विरोधाभास (Contradiction) है। उन्होंने पलटवार करते हुए पूछा, "यदि हर जटिल चीज का कोई निर्माता जरूरी है, तो ईश्वर—जो ब्रह्मांड से भी अधिक जटिल है—उसका निर्माता कौन है? यह सिलसिला तो कभी समाप्त ही नहीं होगा।" अख्तर ने स्पष्ट किया कि अज्ञानता को स्वीकार करना (अज्ञेयवाद) किसी काल्पनिक उत्तर को सत्य मान लेने से बेहतर है।
बहस उस समय और अधिक गंभीर हो गई, जब जावेद अख्तर ने दुनिया में जारी हिंसा और विशेष रूप से गाज़ा (Gaza) की स्थिति का जिक्र किया। उन्होंने भावुक और तीखे अंदाज में पूछा, "यदि ईश्वर सर्वशक्तिमान, दयालु और सर्वव्यापी है, तो वह गाज़ा में मासूम बच्चों को टुकड़ों में कटते हुए कैसे देख सकता है? यदि वह यह सब देख रहा है और चुप है, तो ऐसे ईश्वर पर विश्वास करना मुश्किल है।"
मुफ्ती शमाइल ने इस पर 'मानवीय इच्छाशक्ति' (Free Will) का सिद्धांत रखा। उन्होंने कहा कि ईश्वर ने इंसान को सही और गलत के बीच चुनाव करने की आजादी दी है। दुनिया में होने वाले अत्याचार ईश्वर की क्रूरता नहीं, बल्कि इंसान द्वारा अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग है। उन्होंने तर्क दिया कि इस दुनिया में जो न्याय नहीं हो पाता, उसका हिसाब मौत के बाद 'हश्र के मैदान' (परलोक) में होगा।
बहस का एक बड़ा हिस्सा 'नैतिकता' (Morality) पर केंद्रित रहा। मुफ्ती शमाइल का मानना था कि बिना किसी ईश्वरीय किताब या मार्गदर्शक के, समाज में नैतिकता का कोई स्थायी पैमाना नहीं हो सकता। उन्होंने सवाल किया कि यदि बहुमत किसी बुराई को सही मान ले, तो उसे गलत कौन साबित करेगा?
जावेद अख्तर ने इसका पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि 'मानवता' (Humanism) और 'विवेक' किसी भी मजहब से पुराने और बड़े हैं। उन्होंने नैतिकता की तुलना 'ट्रैफिक नियमों' से की, जो समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए इंसानों ने खुद बनाए हैं। अख्तर ने कहा, "इंसान को अच्छा होने के लिए स्वर्ग के लालच या नरक के डर की जरूरत नहीं होनी चाहिए। एक नास्तिक भी उतना ही नैतिक हो सकता है जितना कि एक आस्तिक।"
इस पूरी बातचीत का केंद्र "ईश्वर का अस्तित्व" (Existence of God) और धर्म की प्रासंगिकता था। जावेद अख्तर का तर्क था कि वह किसी ऐसी शक्ति को नहीं मानते जिसे प्रमाणित न किया जा सके। उनके अनुसार, दुनिया विज्ञान और प्रकृति के नियमों से चलती है। दूसरी तरफ, मुफ्ती शमिल ने तर्क दिया कि इस ब्रह्मांड की जटिलता और सटीक व्यवस्था यह साबित करती है कि इसका कोई न कोई 'निर्माता' (Creator) जरूर है।
लल्लनटॉप की डिबेट को 'सभ्य संवाद' का मॉडल माना जा रहा है। लोग खुश हैं कि कम से कम बिना गाली-गलौज के इतनी गंभीर बात हुई। लल्लनटॉप वाली बहस के बाद अब इंटरनेट पर 'Atheism vs Theism' (ईश्वरवाद बनाम अनीश्वरवाद) पर नई जंग छिड़ गई है। कई अन्य स्कॉलर्स भी अब जावेद अख्तर को जवाब देने या उनके साथ बैठने की इच्छा जता रहे हैं।
बहरहाल, जावेद अख्तर और मुफ्ती शमाइल की यह बहस किसी एक पक्ष की हार या जीत नहीं थी। यह इस बात का प्रमाण थी कि एक जीवंत लोकतंत्र में 'तर्क' और 'यकीन' एक साथ एक मेज पर बैठ सकते हैं। जहां मुफ्ती ने आस्था को तर्क की चादर ओढ़ाने की कोशिश की, वहीं जावेद अख्तर ने तर्क को किसी भी अलौकिक दावे से ऊपर रखा। अंततः, यह चर्चा दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर कर गई कि क्या सत्य केवल वह है जो दिखता है, या वह भी है, जो महसूस किया जाता है।
Updated on:
21 Dec 2025 04:18 pm
Published on:
21 Dec 2025 04:16 pm
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