
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता (फोटो - एएनआई)
Green Crackers: दिल्ली सरकार दिवाली पर ग्रीन पटाखे फोड़ने की अनुमति देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर रही है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने हिंदू त्योहार को भारतीय संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण बताया है। रोशनी के त्योहार दिवाली को दुनिया भर में 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। दिल्ली पिछले कई सालों से प्रदूषण से जूझ रही है, जो दिवाली के आसपास और भी बदतर हो जाती है। इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने देश की राजधानी में पटाखों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिन्हें कई लोग दिवाली के त्यौहार का एक अभिन्न अंग मानते हैं।
पारंपरिक पटाखे बहुत प्रदूषण फैलाते हैं, लेकिन विशेषज्ञ इस समस्या से निपटने के लिए 'ग्रीन पटाखे' इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन आखिर ये कौन से पटाखे हैं जिनके इस्तेमाल की अनुमति दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रीय राजधानी में चाहती है?
ग्रीन पटाखे भारत में सीएसआईआर-नीरी (वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान) द्वारा विकसित पर्यावरण अनुकूल आतिशबाजी हैं। सीएसआईआर-नीरी द्वारा प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार, ग्रीन पटाखे बेरियम जैसे हानिकारक रसायनों को खत्म करके तथा धूल को दबाने और जल वाष्प छोड़ने वाले योजकों का उपयोग करके वायु और ध्वनि प्रदूषण को काफी हद तक कम करते हैं।
ग्रीन पटाखे पर्यावरण पर कम प्रभाव डालने के लिए डिजाइन किए गए हैं और इनमें तीन मुख्य प्रकार शामिल हैं: SWAS (सेफ वाटर रिलीजर), STAR (सेफ थर्माइट क्रैकर) और SAFAL (सेफ मिनिमल एल्युमीनियम)। शोधपत्र में कहा गया है कि ये पटाखे पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त नहीं हैं, लेकिन पारंपरिक आतिशबाजी की तुलना में अधिक सुरक्षित विकल्प हैं, जिनमें सीसा, कैडमियम और बेरियम नाइट्रेट जैसे जहरीले तत्व होते हैं।
SWAS (सेफ वाटर रिलीजर): इस प्रकार का उपकरण पटाखे फोड़ते समय जलवाष्प छोड़ता है। यह वाष्प धूल को दबाने और गैसीय उत्सर्जन को कम करने में मदद करता है, जिससे हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों को कम करने में मदद मिलती है।
स्टार (सेफ थर्माइट क्रैकर): शोर और कण पदार्थ को कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया यह पटाखा पारंपरिक आतिशबाजी की तुलना में अलग, कम हानिकारक रचनाओं का उपयोग करता है।
सफल (सुरक्षित न्यूनतम एल्युमीनियम): इस प्रकार में एल्युमीनियम की न्यूनतम मात्रा का उपयोग किया जाता है तथा इसे मैग्नीशियम से प्रतिस्थापित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप ध्वनि कम होती है तथा प्रदूषण भी कम होता है।
Published on:
06 Oct 2025 10:08 pm
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