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बिहार: आनंद मोहन पर ‘सियासत’ क्यों है फिदा, जानिए किसके लिए कितने फायदेमंद हैं ये बाहुबली?

Who is Bahubali Anand Mohan: गोपालगंज के जिलाधिकारी रहे जी कृष्णैया की हत्या के दोषी पाए गए बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई गुरुवार (27 अप्रैल) सवेरे 4:30 बजे हो गई। आनंद मोहन की रिहाई ने बिहार से लेकर दिल्ली तक की सियासत गरमा दी है। जानिए आनंद मोहन पर बिहार की 'सियासत' इतनी क्यों फिदा है? किसके लिए कितना फायदेमंद है ये बाहुबली?

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Who is Anand Mohan : बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन को रिहा कर दिया गया है। गुरुवार, 27 अप्रैल की सुबह सुबह उन्हें 16 साल बाद जेल से रिहाई मिल गई। आनंद मोहन इससे पहले बेटे की सगाई के लिए पैरोल पर बाहर आए थे और एक दिन पहले बुधवार को ही उन्होंने समर्पण कर दिया था। इसके बाद गुरुवार सुबह 4:00 बजे उन्हें जेल से रिहाई दे दी गई। जेल प्रशासन द्वारा बाहुबली को सवेरे छोड़ने के पीछे कारण यह बताया गया कि अगर दिन में उन्हें रिहा किया जाता तो काफी भीड़ इकट्ठा हो जाती। प्रशासन के लिए इसे हैंडल करना काफी चुनौतीपूर्ण होता। इसलिए सुबह 4:00 बजे उन्हें छोड़ने का फैसला लिया गया। ये तो हुई रिहाई की प्रक्रिया। लेकिन अब बड़ा सवाल ये उठता है कि RJD (राजद) और JDU (जदयू) ने मिलकर जिस तरह आनंद मोहन को जेल से निकाला है, इसके पीछे की रणनीति क्या है?


बिहार की राजनीती के जानकारों का कहना है कि इसका सीधा जवाब यह है कि बिहार में महागठबंधन के पास राजपूत जाति का कोई बड़ा चेहरा नहीं है। राजद के बारे में 90 के दशक से यह धारणा बन चुकी है कि यह पार्टी फॉरवर्ड को देखना नहीं चाहती है।

वहीं नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के पास भी लंबे समय से कोई बड़ा राजपूत चेहरा नहीं है। ऐसे में इस बाहुबली को जेल से निकालकर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने राजपूत समाज को अपने पक्ष में लाने के लिए बड़ा दांव चला है। लेकिन यह दांव कितना सफल हो पाता है यह देखना दिलचस्प होगा।

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रिहाई पर बवाल के पीछे क्या है मुख्य कारण

90 के दशक में जब बिहार में चोरी, डकैती, लूटपाट, अपहरण, रेप ये सब काफी आम हो गया था। हर जिला, हर कस्बा, हर गांव से एक बाहुबली निकल रहा था। यह उसी समय की बात है जब 1994 में मुजफ्फरपुर में एक बाहुबली की हत्या हो गई थी, तो आनंद मोहन ने अपने समर्थकों के साथ वहां काफी भीड़ इकट्ठा कर ली और सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे।

ठीक उसी समय गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया, मुजफ्फरपुर के भगवानपुर से गुजर रहे थे। उनके कार पर लाल बत्ती लगी थी। जिसे देख भीड़ उग्र हो गई और उनके कार पर हमला बोल दिया। जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

7 घंटे तक डीएम की लाश रोड पर पड़ी रही, लेकिन पुलिस वाले आनंद मोहन के डर से उनकी लाश हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। बाद में जब बड़ी संख्या में बाहर से पुलिसवाले मंगाए गए तब जाकर उनकी लाश वहां से हटी। इसी हत्या में दोषी पाए जाने पर पहले डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से आनंद मोहन को फांसी की सजा मिली। फिर हाई कोर्ट ने इसे उम्रकैद में बदल दिया।

इन्हीं को बाहर निकालने के लिए बिहार सरकार ने जेल नियमावली 2012 में संशोधन कर दिया है। इस नियमावली में 5 श्रेणी के कैदियों को उम्र कैद की सजा में 20 वर्ष से पहले कोई रियायत नहीं दिए जाने का प्रावधान था। इसमें लोक सेवकों की हत्या भी शामिल था। लेकिन बिहार सरकार यानी नीतीश कुमार ने आनंद मोहन को निकालने के लिए नियम में संशोधन कर कर लोक सेवकों की हत्या को श्रेणी से हटा दिया है और इसी का फायदा आनंद मोहन को मिला है।


आनंद मोहन के निकलने से किसको क्या फायेदा होगा

आनंद मोहन जेल से रिहा होने के कुछ साल तक चुनाव तो नहीं लड़ पाएंगे, लेकिन अगर वह राजनीति में अपनी सक्रियता दिखाते हैं तो इससे उनकी पत्नी लवली और बेटे चेतन को लाभ मिलना तय है। साथ में इन क्षेत्रों में महागठबंधन को भी कुछ फायदा होने की उम्मीद है। अभी आनंद मोहन की पत्नी और बेटा दोनों आरजेडी में शामिल है। ऐसे में यह भी कयास लगाया जा रहा है कि आनंद मोहन भी इन्हीं दोनों पार्टियों में से किसी एक में शामिल हो सकते हैं।

लेकिन महाराणा प्रताप की जयंती पर जिस प्रकार से नीतीश कुमार ने उनका पक्ष लिया था। उसके बाद इस बात की चर्चा ज्यादा है कि आनंद मोहन नीतीश के पाले में जा सकते हैं। क्योंकि आनंद मोहन और जदयू के अध्यक्ष ललन सिंह की दोस्ती तो जगजाहिर है।

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव बिहार में बीजेपी को चुनौती देने के लिए एक साथ पिच पर उतरने को तैयार हैं। ऐसे में सवर्ण वोटरों को खासकर राजपूतों, भूमिहार को बिहार को एक साथ लाने के कवायद के रूप में इस दावं को देखा जा रहा है। बता दें कि बिहार में सवर्ण मतदाता की आबादी लगभग 18 से 19% है। इसमें भूमिहार जाति 4% और राजपूत और ब्राह्मण लगभग 7-7 % के करीब है।

उत्तर बिहार के बेतिया, सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, वैशाली, मोतिहारी और हाजीपुर सीट पर सवर्ण वोटर्स जीत- हार में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं। इन जगहों में पिछड़ा वर्ग, मुसलमान और सवर्ण वोटर अगर यहां एकजुट हो जाए तो सारे समीकरण आसानी से ध्वस्त हो जाएंगे। इसी ताक में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए लगे हैं कि कैसे भी करके कुछ परसेंट सवर्ण वोट को अपने पाले में लाया जाए।

आनंद मोहन का दबदबा भी इन्हीं इलाकों में रहा है। आनंद मोहन खुद कोसी क्षेत्र से आते हैं और 90 के दशक में इसी क्षेत्र पर अपना वर्चस्व बनाने के लिए आनंद मोहन और पप्पू यादव के गुंडों के बीच काफी गोलीबारी होती थी। पप्पू यादव, तेजस्वी यादव से कुछ दिन पहले मिले हैं।

जिससे कयास लगने शुरू हो गए हैं कि उन्हें भी महागठबंधन में एंट्री मिल गई है और महागठबंधन के पास लंबे समय से कोई राजपूत चेहरा नहीं है। ऐसे आनंद मोहन को जेल से बाहर निकाल कर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने इसकी भरपाई कर ली है। लेकिन सवाल यह उठता रहेगा कि क्या आनंद मोहन कमाल कर पाएंगे।

दलित वोट्स खिसकने का डर है

आनंद मोहन के जेल से निकलने पर एक तरफ बिहार के महागठबंधन को ऐसा लग रहा है कि कुछ सवर्ण वोट उनके पाले में आ जाएगा। जिससे 2024 कि नैया पार लग जाएगी। लेकिन दूसरी तरफ जिस डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन सजा काट रहे थे। वह दलित समाज से आते थे। ऐसे में आनंद मोहन की रिहाई का बहुजन समाज पार्टी समेत कई दलित संगठनों ने विरोध किया है।

ऐसे में यह भी संभव है कि आनंद मोहन को जेल से निकालने का दाव कहीं महागठबंधन के लिए बैक फायर न कर जाए। बता दें कि बिहार में दलितों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 6 है, लेकिन राज्य के सभी 40 सीटों पर दलित वोटरों का दबदबा है। ऐसे में बीजेपी इन वोटरों को अपने पक्ष में लाने के लिए अगर कोई प्लान बनाती है तो महागठबंधन को आनंद मोहन के निकालने का फायदा से ज्यादा नुकसान हो सकता है।

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