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‘दहेज के लिए महिला को प्रताड़ित करने की खबर हवा की तरह फैलती है’, सास को बरी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना के आरोप में सास को बरी करते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि दहेज प्रताड़ना की खबरें हवा की तरह फैलती हैं, लेकिन ठोस सबूतों के बिना किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। 2001 के इस मामले में उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सास को बरी कर दिया। यह फैसला दहेज प्रताड़ना के मामलों में सबूतों के महत्व पर ज़ोर देता है।

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भारत

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Mukul Kumar

Aug 30, 2025

Supreme Court

सु्प्रीम कोर्ट (Photo-IANS)

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दहेज को लेकर बहू के साथ मारपीट करने की आरोपी एक महिला को बरी कर दिया है। इसके साथ कहा कि ससुराल वालों द्वारा दहेज के लिए महिला को प्रताड़ित करने की खबर हवा की तरह फैलती है।

न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन।वी। अंजारिया की पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया। उन्होंने उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले को बदल दिया। जिसमें सास को उत्पीड़न के बहू के साथ उत्पीड़न के मामले में दोषी करार दिया गया था। इसके साथ, उसकी तीन साल की सजा को बरकरार रखा था।

महिला और अपने ससुरालवालों पर उसकी दिवंगत बहू ने दहेज के लिए मारपीट करने की शिकायत कराई थी। इस आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत सास को ठहराया गया था।

पड़ोसी के दावे पर भी किया गया गौर

इस मामले में शीर्ष अदालत ने अपीलकर्ता की पड़ोसी की बात पर भी गौर किया। जिससे गवाह के रूप में पहले पूछताछ की गई थी। पड़ोसी ने बताया कि महिला और उसके परिवार वालों ने कभी भी बहू से दहेज की मांग नहीं की थी।

पीठ ने कहा कि निचली अदालत और उच्च न्यायालय के फैसले को इस आधार पर खारिज कर दिया जाना चाहिए कि दहेज की मांग के संबंध में कोई भी ठोस सबूत मौजूद नहीं है।

क्योंकि यह सब घर की चारदीवारी के अंदर होता है, ऐसे में किसी को ऐसे ही दोषी करार देना एक गलत निष्कर्ष है। खासकर ऐसे मामलों में जब सास-ससुर द्वारा बहू को दहेज के लिए प्रताड़ित किए जाने की बात हवा से भी तेज फैलती है।

साल 2001 का है ममला

बता दें कि मामला साल 2001 का है। पीड़िता के पिता ने जून 2001 में एक शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी बेटी ससुराल में मृत पाई गई थी।

शिकायत में कहा गया कि मौत के समय वह गर्भवती थी। पिता ने यह भी कहा कि उनकी बेटी कहती थी कि उसकी सास दहेज के लिए उस पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करती थी। पीड़िता के पिता ने यह भी कहा कि उसका दामाद शहर में नहीं था।

इस मामले में महिला के सास-ससुर और देवर को आरोपी बनाया गया था। निचली अदालत ने पुरुषों को बरी कर दिया था। इसके बाद सास ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला बदलते हुए महिला को राहत दे दी।