
जिला अस्पताल के दो पीएसए ऑक्सीजन प्लांट बंद और टेंकर से हो रही ऑक्सीजन सप्लाई
नीमच। मरीजों की जिंदगी बचाने वाली संजीवनी ऑक्सीजन की शुद्धता की गारंटी कटघरे में है। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकारी अस्पताल से लेकर निजी में ऑक्सीजन की खरीद और उसकी शुद्धता का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। खासतौर से ऑक्सीजन सिलेंडर को लेकर इस तरह की अनदेखी की जा रही है। साथ ही ऑक्सीजन के इस्तेमाल और आपूर्ति के मामले में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है। ड्रग इंस्पेक्टर ने अभी तक यहां के सैंपल तक नहीं लिए हैं।
कोरानाकाल के संक्रमण के दौरान ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की मौत का आंकड़ा बढऩे पर शासन स्तर पर विधायक निधि व जनसहयोग से जिला अस्पताल में पीएसए अर्थात वातावरण से ऑक्सीजन तैयार करने के प्लांट स्थापित किया गया था। यह दो प्लांट 550 और 330 एलपीएम के बनाए गए थे। वहीं एक एलएमओ प्लांट ट्रोमा के पीछे बनाया गया है। जिसमें शासन स्तर पर टेँडर होकर गैस का टेंकर नीमच आता है। अभी दो महीने में एक सिलेंडर की जरूरत पड़ती है। जिसमें करीब ३ हजार क्यूबिक गैस आती है। वहीं दोनों पीएसए प्लांट से भी इतनी ही करीबन गैस कंज्यूम होती है। परंतु पीएसए प्लांट को चलाने का खर्च भारी होने के चलते उन्हें करीब एक साल से बंद कर दिया गया है। पूरी गैस टेंकर से ही सप्लाई होती है। जिसकों लेकर क्रिटिकल वार्ड, आईसीयू वार्ड में गैस की पाइप लाइन से सप्लाई है। लेकिन बच्चों के वार्ड एसएसएनसीयू में अभी तक लाइन नहीं डल पाई है। सिलेंडर से ही सप्लाई होती है।
गुणवत्ता जांचने के मानक तय
औषधि प्रसासन ने ऑक्सीजन की गुणवत्ता को लेकर मानक तय किए गए हैं, जिससे मरीजों को शुद्ध ऑक्सीजन मुहैया करवाई जा सके। लेकिन जिले में उसका पालन नहीं हो पा रहा है। ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी और अस्पताल के बीच इसी मानक के आधार पर टेंडर होते हैं। इसके बाद भी सरकरी और गैर अस्पताल प्रबंधन ऑक्सीजन की शुद्धता नहीं जांचते हंै। जबकि ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के मुताबिक अस्पताल की ऑक्सीजन की शुद्धता की जांच करना अनिवार्य है। अशुद्ध ऑक्सीजन से मरीजों की जिंदगी खतरे में आ सकती है।
यह है प्रावधान
ऑक्सीजन को ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के तहत दवा अर्थात औषधि के रूप में माना गया है। इसकी जांच भी औषधि निरीक्षकों के दायरे में आती है। यह जानकारी औषधि निरीक्षकों को भी नहीं है। एक्ट में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि किसी भी अस्पताल निजी नर्सिंग होम में औषधि निरीक्षक ऑक्सीजन का सैंपल लेकर उसकी शुद्धता जांच कर सकते हैं।
93 प्रतिशत शुद्धता 7 प्रतिशत औषधि होनी चाहिए
भारत सरकार के पास इसकी गाइडलाइन ही नहीं है। जबकि वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मानक पर अस्पतालों में सप्लाई होने वाले सिलेंडर में 93 प्रतिशत शुद्ध ऑक्सीजन तथा सात प्रतिशत में अन्य औषधि उपलब्ध रहती है। जो मरीजों के लिए फायदेमंद होती है।
फैक्ट फाइल
जिला अस्पताल बैड संख्या: 220
ऑक्सीजन प्लांट: 03
जिले में कुल ऑक्सीजन प्लांट: 05
इनका यह कहना है
जिला अस्पताल में पीएसए ऑक्सीजन प्लांट 550 और 330 एमएलडी के है। जिन्हें रेंडमली चलाया जा रहा है। यह पे्रशर पद्धति पर चलते है। जिससे अगर गैस कम चाहिए तो काफी गैस का नुकसान भी होता है। जिससे खर्च अधिक आता है। इसीलिए अधिकांश बंद रखा जाता है। ऑक्सीजन सिलेंडर की जांच सप्लाई करने वाली एजेंसी कराती है। ड्रग इंस्पेक्टर ऑक्सीजन की जांच करता है, पिछले समय जांच में ९९.४ प्रतिशत शुद्धता आंकी गई थी।
- डॉ. महेंद्र पाटिल, सिविल सर्जन जिला अस्पताल नीमच।
नहीं लिए अभी तक ऑक्सीजन सैंपल
अभी तक ऑक्सीजन के सैंपल नहीं लिए गए है। ऑक्सीजन टैंकर द्वारा जिला अस्पताल में सप्लाई हो रही है। मशीन द्वारा भरते समय सेंसर से फीलिंग में शुद्धता मापी जाती है। जिसका रिकॉर्ड पूर्व में देखा गया है कि ९५.५ प्रतिशत से ऊपर आता है। जिले में जिला अस्तपताल में ही ऑक्सीजन प्लांट है। निजी अस्पताल में भी कही भी ऑक्सीजन प्लांट नहं है। बाहर से सिलेंडर से आने वाली गैस जांच होकर ही आती है। निजी अस्तपतालों के पास कोई लैब टेस्टिंग नहीं है। उनके पास कंपनी से टेस्ट रिकॉर्ड आता है। जिसके चलते निजी अस्पतालों मे ंभी ड्रग विभाग टीम द्वारा अभी तक जांच नहीं की गई है। सभी का फीलिंग के समय मशीनरी टेस्ट होता है।
- शोभित तिवारी, ड्रग इंस्पेक्टर नीमच।
Published on:
20 Sept 2023 12:11 pm
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