25 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

12 साल बाद नई तकनीक से चलने-फिरने लगा अपाहिज

जय विज्ञान : स्विट्जरलैंड में न्यूरो वैज्ञानिकों के वायरलेस डिजिटल ब्रिज का कमाल, रीढ़ की हड्डी और दिमाग के बीच का टूटा संपर्क फिर कायम

less than 1 minute read
Google source verification
12 साल बाद नई तकनीक से चलने-फिरने लगा अपाहिज

12 साल बाद नई तकनीक से चलने-फिरने लगा अपाहिज

एम्सटर्डम. बारह साल पहले बाइक हादसे के कारण अपाहिज हुए नीदरलैंड्स के गर्ट जॉन ओसकाम (40) न चल-फिर सकते थे, न ही खड़े हो पाते थे। वैज्ञानिकों के कमाल से अब वह न सिर्फ चल पा रहे हैं, बल्कि सीढिय़ां भी चढ़ जाते हैं। यह वायरलेस डिजिटल ब्रिज तकनीक से संभव हुआ, जिसे स्विट्जरलैंड में इकोले पॉलीटेक्निक फेडेरल डे लुसाने नाम के संस्थान के न्यूरो वैज्ञानिकों ने विकसित किया है। इस तकनीक की मदद से दिमाग और रीढ़ की हड्डी के बीच के टूटे संपर्क को फिर से कायम किया जा सकता है।

गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक वायरलेस डिजिटल ब्रिज तकनीक दिमाग और रीढ़ के बीच इंटरफेस के रूप में काम करती है। कई बार रीढ़ की हड्डी या दिमाग में चोट के कारण इन दोनों के बीच का संपर्क टूट जाता है। इससे लोग अपने पैरों पर खड़े होने और चलने-फिरने की ताकत खो देते हैं।

ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस तकनीक की मदद

तकनीक को विकसित करने वाली टीम में शामिल ग्रेगरी कोर्टिने ने बताया कि हमने दिमाग और रीढ़ के बीच संपर्क फिर से कायम करने के लिए वायरलेस इंटरफेस बनाया है। इसके लिए ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस तकनीक की मदद ली गई। इससे हमारे विचार एक्शन में तब्दील हो सकते हैं। तकनीक की मदद से दिमाग रीढ़ के उस क्षेत्र को संदेश भेजता है, जो हमें चलने-फिरने में सक्षम बनाते हैं।

रीढ़ की हड्डी में छोटा दिमाग

अमरीकी शोधकर्ताओं ने कुछ साल पहले मनुष्यों की रीढ़ की हड्डी में छोटे दिमाग का पता लगाया था, जो चलते-फिरते वक्त संतुलन बनाने में मदद करता है। चलने के दौरान पैर के तलवों के संवेदी अंग इस छोटे दिमाग को दबाव और गति से जुड़ी सूचनाएं भेजते हैं। शोधकर्ताओं ने इस दिमाग को मनुष्यों का 'ब्लैक बॉक्स' बताया था।