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Court: हाथ ऊपर कर खड़े रहिए…टाइम वेस्ट करने पर भड़की दिल्ली कोर्ट ने आरोपियों को सुनाई अनोखी सजा

Court: अदालत ने कहा कि आरोपियों को सुबह 10 बजे से 11:40 बजे तक दो बार बुलाया गया। इस दौरान इंतजार करने के बावजूद आरोपियों ने जमानत बॉन्ड प्रस्तुत नहीं किया। यह अदालत की अवमानना की श्रेणी में आता है।

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Court: हाथ ऊपर कर खड़े रहिए...टाइम वेस्ट करने पर भड़की दिल्ली कोर्ट ने आरोपियों को सुनाई अनोखी सजा

अदालत का समय खराब करने वालों को मजिस्ट्रेट ने सुनाई अनोखी सजा। (फोटोः Twitter)

Court: राजधानी दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में कोर्ट की कार्यवाही में देरी और समय की बर्बादी करने वाले कुछ याचिकाकर्ताओं को ऐसी सजा सुनाई, जैसी आमतौर पर स्कूलों में बच्चों को दी जाती है। यह घटना द्वारका स्थित कोर्ट परिसर में घटित हुई। जहां प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट सौरभ गोयल एक मामले की सुनवाई कर रहे थे। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट सौरभ गोयल एक शिकायत पर विचार कर रहे थे। उसी वक्त उन्होंने पाया कि मामले की दो बार सुनवाई हुई, फिर भी आरोपी व्यक्ति समय पर जमानत बांड पेश करने में विफल रहा। जज ने कहा कि पिछली तारीख पर उन्हें ये बांड भरने का आदेश दिया था और इसलिए देरी और आरोपी का आचरण कोर्ट की अवमानना के बराबर है।

समय की बर्बादी पर भड़के जज, सुनाई खड़े रहने की सजा

मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने पाया कि कुछ आरोपी समय पर अपना जमानत बॉन्ड दाखिल नहीं कर सके, जबकि उन्हें इससे पूर्व निर्धारित तारीख पर इसे जमा करने का स्पष्ट निर्देश दिया गया था। न्यायाधीश ने इसे अदालत के आदेश की अवहेलना और न्यायिक समय का घोर दुरुपयोग मानते हुए कहा कि यह आचरण भारतीय दंड संहिता की धारा 228 के अंतर्गत न्यायिक कार्य में विघ्न डालने के अपराध की श्रेणी में आता है।

अदालत ने कहा कि आरोपियों को सुबह 10 बजे से 11:40 बजे तक दो बार बुलाया गया। इस दौरान इंतजार करने के बावजूद आरोपियों ने जमानत बॉन्ड प्रस्तुत नहीं किया। यह अदालत की अवमानना की श्रेणी में आता है। इसके बाद अदालत ने आदेश दिया कि आरोपी अदालत उठने तक अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर खड़े रहें। यह दंड प्रतीकात्मक रूप से अनुशासनात्मक था। जिसका उद्देश्य न्याय प्रक्रिया की गंभीरता को रेखांकित करना था।

अदालत ने क्या कहा?

अपने आदेश में अदालत ने कहा, "सुबह 10 बजे से 11:40 बजे तक दो बार इंतजार करने और सुनवाई के लिए आवाज देने के बावजूद आरोपियों ने जमानत बॉन्ड जमा नहीं किए। ऐसे में पिछली सुनवाई की तारीख को विधिवत जारी किए गए आदेश की अवमानना करने और अदालत का समय बर्बाद करने के लिए आरोपियों को अदालती कार्यवाही की अवमानना का दोषी पाया जाता है। ऐसे में भारतीय दंड संहिता की धारा 228 के तहत अपराध का दोषी ठहराते हुए उन्हें अदालत उठने तक अपने हाथ हवा में उठाए अदालत में खड़े रहने का आदेश दिया जाता है।"

जमानत बॉन्ड देर से दाखिल करने पर भेजा हिरासत में

मामले के एक आरोपी कुलदीप ने सुबह 11:40 बजे तक भी जमानत बॉन्ड दाखिल नहीं किया। न्यायालय ने इसे गंभीर मानते हुए उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया। हालांकि, दोपहर करीब 12:48 बजे उनके वकीलों ने कोर्ट में उपस्थित होकर सूचित किया कि जमानत से संबंधित सभी दस्तावेज अब उपलब्ध हैं। इसके बाद जज सौरभ गोयल ने कहा "आरोपी कुलदीप को ₹10,000 के निजी मुचलके (Personal Bond) और स्वीकृत जमानतदार (Surety Bond) पर रिहा किया जाता है।”

ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने आगे कहा “आवश्यक जमानत बांड प्रस्तुत किए गए हैं। इन्हें सत्यापित और स्वीकार किया जाता है।" इस मामले में शिकायतकर्ता की ओर से अधिवक्ता संदीप शौकीन ने अदालत में उनका पक्ष रखा। अभियुक्त उपासना और आनंद की ओर से अधिवक्ता तपिश सहरावत ने अदालत में उनकी बात रखी। अभियुक्त कुलदीप और राकेश का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता हेमंत कपूर ने किया।