26 नवंबर 2008 भी उन तारीखों में से एक बन चुकी है जो भारत के इतिहास में अपनी जगह खून से लाल और धुँए से काले पड़ चुके अक्षरों में दर्ज हो चुकी है। इस दिन दुनिया गवाह बनी खून से सने फर्श पर बिखरे काँच और मासूम लोगों की लाशों के बीच होती गोलियों की बौछार की, बदहवासी में जानबचा कर भागते लोग, सीमित हथियारों पर अदम्य हौसले से आतंकी हमले का मुकाबला करते सुरक्षाकर्मी की दिलेरी की।
लेकिन अफसोस है कि हमने न तो 1993 के मुम्बई में हुए आतंकी हमलों (mumbai attack) से कोई सबक लिया और न ही मुम्बई के 26/11 से कुछ सीख? अब बड़ा सवाल यही है कि आज जिस तरह के आतंकी खतरों से हमारा मुल्क घिरा है, क्या हम अपनी हिफाजत करने में सक्षम हैं भी या नहीं?