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26/11 मुम्बई अटैक: अनुभव से सबक सीख ही लिया जाए, यह जरूरी नहीं

26 नवंबर 2008 भी उन तारीखों में से एक बन चुकी है जो भारत के इतिहास में अपनी जगह खून से लाल और धुँए से काले पड़ चुके अक्षरों में दर्ज हो चुकी है। इस दिन दुनिया गवाह बनी खून से सने फर्श पर बिखरे काँच और मासूम लोगों की लाशों के बीच होती गोलियों की बौछार की, बदहवासी में जानबचा कर भागते लोग, सीमित हथियारों पर अदम्य हौसले से आतंकी हमले का मुकाबला करते सुरक्षाकर्मी की दिलेरी की..

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Rahul Mishra

Nov 24, 2016

Mumbai attack did not take lessons

Mumbai attack did not take lessons

26 नवंबर 2008 भी उन तारीखों में से एक बन चुकी है जो भारत के इतिहास में अपनी जगह खून से लाल और धुँए से काले पड़ चुके अक्षरों में दर्ज हो चुकी है। इस दिन दुनिया गवाह बनी खून से सने फर्श पर बिखरे काँच और मासूम लोगों की लाशों के बीच होती गोलियों की बौछार की, बदहवासी में जानबचा कर भागते लोग, सीमित हथियारों पर अदम्य हौसले से आतंकी हमले का मुकाबला करते सुरक्षाकर्मी की दिलेरी की।

लेकिन अफसोस है कि हमने न तो 1993 के मुम्बई में हुए आतंकी हमलों (mumbai attack) से कोई सबक लिया और न ही मुम्बई के 26/11 से कुछ सीख? अब बड़ा सवाल यही है कि आज जिस तरह के आतंकी खतरों से हमारा मुल्क घिरा है, क्या हम अपनी हिफाजत करने में सक्षम हैं भी या नहीं?

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मुंबई हमलों के बाद बड़ी-बड़ी बातें हुई थीं। तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के गृहमंत्री शिवराज सिंह पाटिल की मुंबई हमलों के बाद जबर्दस्त आलोचना हुई थी। इसके परिणाम स्वरूप पाटिल को न सिर्फ मुंबई हमलों की नैतिक जिम्मेदारी लेनी पड़ी, बल्कि इस्तीफा भी देना पड़ा था।

उस वक्त मनमोहन सिंह कैबिनेट में सबसे काबिल माने जा रहे वित्त मंत्री पी.चिदंबरम को गृहमंत्री बनाया गया था। इसके बाद आनन-फानन में चिदंबरम ने अमेरिकी स्टाइल में एक नई जांच एजेंसी एनआईए के गठन की घोषणा की। 2008 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी विधेयक संसद में रखा गया। कहा गया कि एनआईए आतंकवाद से जुड़े मामलों के प्रति समर्पित होकर काम करेगी. देश में जिस तरह का गुस्सा था, उसे देखते हुए किसी ने भी उस वक्त संसद में मुखर होकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी विधेयक का विरोध नहीं किया. हालांकि, बाद में गैर कांग्रेसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने यह कह कर एनआईए का विरोध जरूर किया कि यह राज्यों के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप है।

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ऐसा लगाता है कि मुंबई हमलों के बाद एक लूली-लंगड़ी जांच एजेंसी बनाने के अलावा हमने कोई दूसरा सबक नहीं लिया. एनएसजी के बड़े पैमाने पर विस्तार की बात थी, लेकिन वह भी सीमित रूप में ही दिखी. इस दौरान काफी कुछ बदला। केंद्र में एक सरकार गई तो दूसरी आई, लेकिन कुछ नहीं बदला तो वह है आतंवाद को लेकर हमारा रवैया।

दरअसल आतंकवाद को लेकर एक सतत तैयारी की जरूरत है। लेकिन जिन लोगों को यह जिम्मेदारी दी गई है वे बयानबाजी में ज्यादा यकीन रखते है। एक्शन कहीं दिखता नहीं। पड़ोसी देश में रचे जा रहे आतंकी षडयंत्रों तक को हमारी जांच एजेंसियां तमाम आधुनिक संचार सुविधाओं के बावजूद कैप्चर नहीं कर पातीं।

आतंकी हमला होने के पहले हमारी जांच एजेंसियां एकदम लाचार नजर आती हैं और हमला होने के बाद जांच को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाती. मुम्बई में 1993 और फिर 26/11 के हमलों की इन्वेस्टीगेशन सब कुछ बयान करती है।

आइए, नजर डालते हैं आतंकियों ने कब और कहां किया हमला:

18 सितम्बर 2016-

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उरी में सैन्य शिविर पर जैश ए मोहम्मद के आतंकवादियों के हमले में 18 जवान शहीद हो गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस निंदनीय कृत्य को अंजाम देने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। इस हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हुए भारत सरकार ने उसे आतंकवाद के मुद्दे को लेकर वैश्विक मंच पर अलग-थलग करने का फैसला किया है। उरी हमला 18 सितम्बर 2016 को जम्मू और कश्मीर के उरी सेक्टर में एलओसी के पास स्थितभारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर हुआ, एक आतंकी हमला है जिसमें 18 जवान शहीद हो गए। सैन्य बलों की कार्रवाई में सभी चार आतंकी मारे गए। यह भारतीय सेना पर किया गया, लगभग 20 सालों में सबसे बड़ा हमला है।

5 अगस्त 2015 को जम्मू के ऊधमपुर हमला-

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जम्मू-कश्मीर में बीएसएफ के काफिले पर आतंकियों ने घात लगाकर हमला किया था। हमले में दो जवान शहीद हो गए थे और 10 अन्य घायल हो गए थे। जवाबी कार्रवाई में एक आतंकी मारा गया था जबकि दूसरे को जिंदा पकड़ लिया गया। पकड़े गए आतंकी की पहचान पाकिस्तान के फैसलाबाद निवासी उस्मान खान के रूप में की गई थी।

27 जुलाई 2015 गुरदासपुर हमला-

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पंजाब के गुरदासपुर में करीब में बड़ा आतंकी हमला हुआ था तब आंतकवादियों ने जम्मू के कटरा जा रही बस पर फायरिंग की थी उसके बाद वो गोलिंयां चलाते हुए दीनानगर पुलिस स्टेशन दाखिल हो गये थे। इस हमले में 12 लोग मारे गये थे जबकि 10 लोग घायल हो गये थे।

4 जून 2015 मणिपुर में पुलिसवालों पर हमला-

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मणिपुर के चंदेल जिले में आतंकियों ने पुलिसवालों के काफिले पर हमला कर दिया था जिसमें 18 जवान शहीद हुए थे।

28 दिसंबर 2014: बेंगलुरु के चर्च स्ट्रीट इलाके में बम धमाका-

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बेंगलुरू के चर्च स्ट्रीट इलाके में बम धमाका हुआ था। इस ब्लास्ट में एक महिला की मौत हो गई थी।

21 फरवरी 2013: हैदराबाद सीरियल ब्लास्ट-

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हैदराबाद के दिलसुखनगर में 2 सिलसिलेवार धमाके हुए थे। धमाकों में 21 लोगों की मौत हो गई थी जबकि करीब 100 अधिक लोग घायल थे।