नई दिल्ली

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से क्या समझते हैं आप, क्या होती है आम नागरिक को दिक्कत, जानें आसान शब्दों में यहां

One Nation One Election: देश में इस समय एक बेहद बड़ा मुद्दा बना हुआ है और वह है वन नेशन वन इलेक्शन, जिसके लागू होते ही यह देश की रंगत बदल देगा।

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वन नेशन वन इलेक्शन

One Nation One Election: भारत में जब भी चुनाव होते हैं पूरे देश में एक अलग ही माहौल पैदा हो जाता है।हर पार्टी का अपना मकसद होता है वहीं, सभी पार्टियां जनता के सामने अपने चुनावी वादे, अपने चुनावी मुद्दे रख रही हैं। वही, भारतीय जनता पार्टी एक देश एक चुनाव को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है यह देखकर राइटर और राजनीतिक विश्लेषक अभिषेक गुप्ता ने अपनी राय दी है उनका कहना है कि देश में यह सब देखकर मुझे जयशंकर प्रसाद की फेमस कहानी ‘गुंडा’ की याद आ गई। वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election) को देश का बड़ा मुद्दा बताते हुए उन्होंने अपनी चिंता प्रकट की है उनका कहना है कि भारतीय राजनीति आज एक ऐसी स्थिति में हैं जहां ज्यादातर राज्यों ने संविधान के उद्देश्य पर अपनी सोचने और समझने की सोच ही बदल दी है।देश में समाज के अलग-अलग तबकों में आपसी समझ कम हो गई है।

आजादी के समय से गांधी जी और लोहिया जी के विचार
भारत की राजनीति और महात्मा गांधी के विचारों को शेयर करते हुए अभिषेक गुप्ता ने बताया कि, कैसे आजादी से पहले महात्मा गांधी का असली मकसद आजादी के लिए लड़ाई लड़ना था और लोकतंत्र में सहभागिता के लिए जनता को तैयार करना था। इसी राह पर चलते हुए आजाद भारत में सत्याग्रह को उचित बनाए रखने का दूसरा बड़ा काम डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने किया था उनका कहना था कि अन्याय को कभी बर्दाश्त मत करना और अन्याय को बर्दाश्त करने का मतलब है हम उनसे हार गए है।

राजनीतिक विश्लेषक ने आगे बताया, गांधीवादी जैसे काम जीवनभर सरकार को समझाने में लगे रहे, इसके बावजूद देश में वैसा कुछ नहीं हुआ जो होना चाहिए था। इससे देश को एक अलग मुकाम मिलेगा, अभिषेक गुप्ता की राय है कि देश में यह जल्द लागू होना चाहिए ताकि हमारा देश का विकास हो और देश तरक्की करे। वहींं उन्होंने आगे कहा, अगर यह हो गया होता तो भारतीय राजनीति कि दिशा शायद कुछ और होती। हमारे देश में यह लागू होना चाहिए। जिससे गरीब तबके के लोगों को जो परेशानियां अभी आ रही हैं वह न आएं।

अभिषेक गुप्ता, राजनीतिक विश्लेषक एवं स्तंभकार IMAGE CREDIT:



गरीब तबके को होती है कई परेशानियां

अभिषेक गुप्ता ने बताया कि कैसे भारत में चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं जो छोटे तबके के लोग है जैसे किसान हो या मजदूर वह सब अलग-अलग शहरों में रहकर अपने परिवार का पेट पालते हैं ऐसे में बार-बार उन सबको अपना काम छोड़कर वोट डालने अपने गांव आना पड़ता है कभी-कभी वोट डालने में समय भी लग जाता है जिससे उन सभी को अपना काम-धंधा छोड़कर वोट डालने के लिए आते हैं। इसका सीधा असर उनकी कमाई पर पड़ता है साथ में आन-जाने का खर्चा अलग से होता है। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब ही ये है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालें।

बता दें, आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई। दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया था कि अगर देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं। इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से डेवलपमेंट वर्क पर भी असर नहीं पड़ेगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए 2015 में सिफारिश की गई थी कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए।

Published on:
14 Sept 2023 12:01 am
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