- कानून व्यवस्था राज्यों का मुद्दा बता सरकार ने पल्ला झाड़ा, संसदीय समिति ने जताई कड़ी आपत्ति
सुरेश व्यास
नई दिल्ली। देश के विभिन्न राज्य कई मौकों पर शांति व कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए इंटरनेट सेवाओं को निलम्बित करते रहे हैं, लेकिन केंद्र सरकार के दो जिम्मेदार मंत्रालयों दूरसंचार विभाग व गृह मंत्रालय के पास इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं है कि कितने राज्यों ने कब और क्यों 'इंटरनेट ब्लैकआउट' किया। सरकार ने इस संबंध में केंद्रीकृत डाटा रखने की सिफारिश की अनदेखी करते हुए यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि लोक व्यवस्था के लिए इंटरनेट का निलम्बन वास्तव में अपराध की श्रेणी में नहीं आता, इसलिए इसका रिकार्ड रखने की जरूरत ही नहीं है।
सरकार के इस रवैये पर संचार एवं सूचना प्रोद्योगिकी संबंधी स्थाई समिति ने दोनों सदनों में पेश अपनी ताजा रिपोर्ट में सरकार के इस रवैये की निंदा करते हुए कहा कि दोनों ही मंत्रालयों ने समिति की सिफारिश को लागू करने के प्रयास ही नहीं किए।
समिति ने संसद में प्रस्तुत 'दूसरंचार सेवाओं/इंटरनेट का निलम्बन और इसका प्रभाव' विषयक अपने 26वें प्रतिवेदन में दूरसंचार विभाग व गृह मंत्रालय को देश में इंटरनेट शटडाउन के सभी आदेशों का केंद्रीकृत डाटाबेस रखने के लिए शीघ्र ही कोई तंत्र विकसित करने और सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 69 (2) के तहत 27 अक्टूबर 2009 को जारी अधिसूचना के अनुरूप इंटरनेट ब्लैकआउट की समग्र सूचना पब्लिक डोमेन में उपलब्ध करवाने की पुरजोर सिफारिश की थी। सरकार की ओर से कहा गया कि संबंधित राज्य सरकार दूरसंचार अस्थाई सेवा निलम्बन (लोक आपातकाल या लोक सुरक्षा) नियम 2017 के प्रावधान के अनुसार राज्य या उसके भाग में इंटरनेट सेवा के अस्थाई निलम्बन के आदेश जारी करने के लिए अधिकृत है।
समिति ने कहा कि कई एजेंसियां देश में इंटरनेट निलम्बन के आंकड़े संग्रहीत करती है। एक रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2012 से मार्च 2021 के बीच पूरे देश में 518 बार इंटरनेट ब्लैकआउट किया गया। यह दुनिया में इंटरनेट ब्लॉक करने की अब तक की सबसे बड़ी संख्या है, लेकिन इसे सत्यापित करने का देश में केंद्रीय स्तर पर कोई तंत्र ही नहीं है। ऐसे में केंद्र यह भी पता नहीं लगा सकता कि इंटरनेट ब्लैक आउट में निलम्बन नियमों व उच्चतम न्यायालय के आदेश का कड़ाई से पालन हुआ है।
समीक्षा समिति पर भी अनदेखी
संसदीय समिति ने इंटरनेट ब्लैकआउट की समीक्षा के लिए गठित समिति को अफसरों तक की सीमित रखने की बजाय इसमें सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, स्थानीय सांसद-विधायक जैसे जनप्रतिनिधियों व गैर सरकारी सदस्यों को भी शामिल करने की सिफारिश की थी। समिति ने हैरानी जताई कि सरकार ने इस सिफारिश को लागू करने के कदम भी नहीं उठाए। यह जाहिर करता है कि सरकारी विभागों ने समिति की सिफारिश की गुणवत्ता को समझने की कोशिश भी नहीं की।
असर का आकलन भी नहीं
समिति ने कहा कि सेल्यूलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार शटडाउन या थ्रॉटलिंग से ऑपरेटर्स को हर सर्किल में 24.5 मिलियन रुपए प्रति घंटे नुकसान होता है। इंटरनेट पर आश्रित अन्य व्यवसायों को भी इस राशि का 50 फीसदी तक नुकसान हो सकता है। समिति ने हैरानी जताई कि सरकार ने नेटबंदी से पड़ने वाले प्रभावों का आकलन भी नहीं किया।