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आरटीआई की सुनवाई में लग सकता है 30 साल तक का समय

विभिन्न सूचना आयोग के समक्ष लंबित मामलों की बढ़ती संख्या की वजह सेआम आदमी की शिकायतों का समय पर निपटारा लगभग मुश्किल।

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Dhirendra Kumar Mishra

Nov 05, 2016

Waiting period RTI commissions ranges 30 years

Waiting period RTI commissions ranges 30 years

नई दिल्ली. इस बात को जानकर आपको आश्चर्य लगेगा, लेकिन एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि अगर आप राइट टू इनफार्मेशन (आरटीआई) के तहत असम सूचना आयोग के समक्ष अपील करते हैं तो अंतिम अपीलीय एजेंसी द्वारा सुनवाई में 2महीने से 30 साल तक का समय लग सकता है। जबकि देश भर के अलग-अलग राज्यों के सूचना आयोगों के समक्ष 2 लाख से ज्यादा आरटीआई लंबित पड़े हुए हैं।









पेंडेंसी से मुक्त राज्य नागालैंड और सिक्किम
इस बात का खुलासा रिसर्च असेसमेंट एंड एनालिसिस ग्रुप (राग) और सतर्क नागरिक संगठन (एसएनएस) के अध्यन में हुआ है। इस अध्ययन में देश के 16 सूचना आयोगों सहित सु्रपीम कोर्ट और हाईकोर्ट के सूचना केंद्रों को शामिल किया गया। अध्ययन में बताया गया है कि लंबित मामलों की संख्या की वजह से सुनवाई में 40 से 240 फीसद समय ज्यादा लग सकता है। दूसरी तरफ नागालैंड और सिक्किम में पेंडेंसी की स्थिति नहीं है, जो एक आदर्श स्थिति का प्रतीक है।



1,87,974 मामले लंबित
जनवरी 2014 से जनवरी 2016 की अवधि में असम के सूचना आयोग के समक्ष लंबित मामलों की सुनवाई में 240 फीसद समय की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पश्चिम बंगाल और ओडीसा में 60 फीसद, केरल में 49 फीसद और केंद्रीय सूचना आयोग में 43 फीसद बढ़ोतरी हुई है। देश भर के 16 सूचना आयोगों के समक्ष 1,87,974 मामले लंबित है। बड़ी संख्या में मामले लंबित होने की वजह से आवेदकों को इसकी सुनवाई में कई महीने से कई सालों तक का इंतजार करना पड़ सकता है। इसी अनुमान के आधार पर बताया गया है कि अगर आपने असम सूचना आयोग के समक्ष 1 जनवरी, 2016 को आवेदन फाइल किया है तो इसकी सुनवाई 30 साल के बाद ही संभव है। जबकि राग के 2014 के अध्ययन में यह अवधि 2 साल 8 महीने बताया गया था। पश्चिम बंगाल में यह स्थित 11 साल 3 महीने है जबकि 2 साल पूर्व के अध्ययन में 17 साल 10 महीने का था। केरल में 7 साल 4 महीने, ओडीसा में 2 साल 9 महीने, राजस्थान में 2 साल 3 महीने और छत्तीसगढ़ में 1 साल 10 महीने लग सकता है।



अधिकारियों के खिलाफ जुर्माना न के बराबर
स्टडी में पाया गया है कि पारदर्शिता के इस दौर में भी बड़ी संख्या में लंबित मामले होने की वजह अपील और शिकायतों की सुनवाई में विभिन्न सूचना आयोगों द्वारा गंभीरता से नहीं लेना है। लंबित मामलों में बढ़ोतरी का दूसरा कारण यह बताया गया है कि आरटीआई एक्ट तक तहत मामलों की सुनवाई में लापरवाह और सुनवाई से इनकार करने वाले अधिकारियों के खिलाफ पेनल्टी नहीं लगना है। क्योंकि ऐसे मामलों में केवल 1.3 प्रतिशत केसेज में ही जुर्माना लगाया गया। इसकी वजह से अधिकारियों में यह संदेश भी गया है कि आरटीआई एक्ट का उल्लंघन करने के बाद भी उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जुर्माने नहीं लगाने की संस्कृति की वजह से 11 साल पूर्व आरटीआई एक्ट लाने का मकसद ही बेमानी हो गया है जो चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि इससे अधिकारियों में नियमों का उल्लंघन करने के बावजूद दंड से मुक्ति की संस्कृति विकसित हो रहा है, जो व्यवस्था के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।




प्रति वर्ष 290 करोड़ का नुकसान
सूचना आयोग की इस लापरवाही की वजह से 1,469 मामलों में जुर्माना नहीं लगाने से सूचना आयोग को 2.13 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है तो राष्ट्रीय स्तर इस प्रवृत्ति की वजह से विभिन्न सूचना आयोगों को प्रतिवर्ष 290 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।



.... सुनवाई की लंबी प्रक्रिया (राज्यवार स्थिति )

असम 30 साल
पश्चिम बंगाल 11 साल 3 महीने
केरल 7 साल 4 महीने
ओडीसा 2 साल 9 महीने
राजस्थान 2 साल 3 महीने
छत्तीसगढ़ 2 साल
सीआईसी 1 साल 10 महीने
कर्नाटक 1 साल 8 महीने
यूपी 1 साल 2 महीने
महाराष्ट्र 8 महीने
पंजाब 4 महीने
हिमाचल प्रदेश 5 महीने
हरियाणा 2 महीने


नो पेंडेंसी -
नागालैंड और सिक्किम


रिकॉर्ड वृद्धि -
- पिछले 2 वर्षों में लंबित आरटीआई की बढ़ती संख्या से सुनवाई 40 से 240 फीसद तक की बढ़ोतरी


आरटीआई की कुल संख्या
- 16 सूचना आयोगों के समक्ष वर्तमान में 1,87,974 मामले