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सिलाई की सुई से स्वर्ण पदक तक: नीरू सोनी ने हालातों को दे दी मात

श्रमिक पिता,घूंघट की दीवारें और आर्थिक तंगी-संघर्षों के बीच पढ़ाई की लौ जलाए रखी, एम.ए.समाजशास्त्र में हासिल किया गोल्ड मेडल

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कृष्ण चौहान श्रीगंगानगर.कई बार लगा कि अब पढ़ाई मेरे लिए नहीं रही, शादी, जिम्मेदारियां, बच्ची-सब कुछ एक साथ था। लेकिन मन के किसी कोने में एक आवाज थी,जो कहती थी,कोशिश मत छोड़ो। यह शब्द हैं नीरू सोनी (32) के, जिनकी आंखों में आज भी वही सादगी और आत्मविश्वास झलकता है। शहर की पुरानी आबादी क्षेत्र में माइक्रोटावर के पीछे की एक संकरी गली से निकलकर नीरू ने महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय,बीकानेर के 10 वें दीक्षांत समारोह में एम.ए.समाजशास्त्र में 72.88 प्रतिशत अंक हासिल कर स्वर्ण पदक और विश्वविद्यालय टॉप किया है।

खुद पर भरोसा डगमगाता रहा-क्या मैं दोबारा पढ़ पाऊंगी?

नीरू बताती हैं कि उनके पिता पूनमचंद सोनी सुनार की दुकान पर श्रमिक हैं और मां रूकमणी सोनी गृहिणी। सीमित आमदनी में पढ़ाई हमेशा चुनौती रही। कई बार किताबें खरीदने के पैसे नहीं होते थे। तब लगता था कि शायद पढ़ाई यहीं रुक जाएगी,वे कहती हैं। 12 वीं के बाद 2013 में 19 वर्ष की उम्र में विवाह हो गया। ससुराल में पढ़ाई का माहौल नहीं मिला और पढ़ाई छूट गई। पांच साल तक खुद पर भरोसा डगमगाता रहा-क्या मैं दोबारा पढ़ पाऊंगी? नीरू की आवाज में वह संघर्ष आज भी महसूस किया जा सकता है।

लेकिन हार मानने का सवाल ही नहीं था

हालांकि,हालातों ने जितना रोका, इरादों ने उतनी ही मजबूती पकड़ी। माता-पिता के पास रहकर 2019 में चौधरी बल्लूराम गोदारा राजकीय कन्या महाविद्यालय,श्रीगंगानगर में बीए में नियमित प्रवेश लिया। तभी कोरोना काल आ गया,कॉलेज बंद,संसाधन सीमित। ऑनलाइन पढ़ाई आसान नहीं थी,लेकिन हार मानने का सवाल ही नहीं था। नीरू बताती हैं। उन्होंने ऑनलाइन परीक्षा दी और फिर नियमित रूप से एमए पूरी की। फीस, किताबें और नोट्स में प्रो. मीनू तंवर और पूनम बजाज का सहयोग उनके लिए संबल बना।

काम कर फॉर्म और पढ़ाई का खर्च जुटाया

पढ़ाई के साथ घर चलाने की जिम्मेदारी भी थी। नीरू ने सिलाई, मेहंदी और फाइल बनाने का काम कर फॉर्म और पढ़ाई का खर्च जुटाया। सामाजिक बंधन भी कम नहीं थे,ससुराल में घूंघट प्रथा थी। धीरे-धीरे संवाद से परिवार की सोच बदली। आज बिना घूंघट आगे बढ़ रही हूं, वे मुस्कुराकर कहती हैं। पति हितेश सोनी भी अब उनके सपनों के साथी हैं। 2018 में बेटी दिव्यांशी के जन्म के बाद जिम्मेदारियां बढ़ीं,लेकिन लक्ष्य साफ रहा।

हालात झुकते हैं, जब संकल्प अडिग हो

आज स्वर्ण पदक नीरू के संघर्ष का जीवंत प्रमाण है। यह मेरे माता-पिता और गुरुओं का फल है,वे कहती हैं। फिलहाल वे बीएड अंतिम वर्ष में हैं, नेट की तैयारी कर रही हैं और सपना है-प्राध्यापक बनकर अपने मां-बाप का सपना पूरा करना। सोशल मीडिया से दूरी रखते हुए वे यूट्यूब और गूगल को पढ़ाई का औजार बनाती हैं। नीरू की कहानी बताती है-हालात झुकते हैं, जब संकल्प अडिग हो।

इंफो बॉक्स

नाम: नीरू सोनी

उपलब्धि: एम.ए. समाजशास्त्र में स्वर्ण पदक (विश्वविद्यालय टॉपर)

विश्वविद्यालय: महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर

कॉलेज: चौधरी बल्लूराम गोदारा राजकीय कन्या महाविद्यालय,श्रीगंगानगर

पृष्ठभूमि: श्रमिक परिवार,आर्थिक तंगी

वर्तमान लक्ष्य: बीएड,नेट की तैयारी,प्राध्यापक बनना

हर उस बेटी के लिए संदेश

यह कहानी हर उस बेटी के लिए संदेश है-सपने छोड़े नहीं जाते,उन्हें जीता जाता है।