
डॉ. ऋतु सारस्वत, समाजशास्त्री एवं स्तंभकार
हाल ही राजस्थान उच्च न्यायालय ने लिव-इन रिलेशनशिप पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता विवाह के योग्य नहीं है, सिर्फ यह कहकर उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता है। लिव-इन रिलेशनशिप न तो अवैध है और न ही भारतीय कानून के तहत अपराध की श्रेणी में आता है। जबकि राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि युवक की उम्र 21 वर्ष नहीं है और शादी योग्य न होने के कारण लिव-इन रिलेशनशिप की अनुमति भी नहीं मिलनी चाहिए।
ठीक इसी तरह का मामला मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष भी आया था जहां 19 वर्षीय एक लड़के और लड़की द्वारा अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध एक साथ रहने की इच्छा रखने पर, संभावित नुकसान से सुरक्षा और सहायता हेतु राहत की मांग की गई थी। 14 मार्च 2024 को मनीषा अंजना बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में न्यायालय ने यद्यपि याचिका स्वीकार की और याचिकाकर्ताओं को उनके बालिग होने और अपने निवास के संबंध में निर्णय लेने के उनके अधिकार के आधार पर सुरक्षा प्रदान की तथापि ऐसे निर्णय से जुड़ी चुनौतियों और जिम्मेदारियां के बारे में आगाह करते हुए कहा- 'भारत ऐसा देश नहीं है जहां राज्य बेरोजगारों और अशिक्षितों को कोई भत्ता देता हो। इसलिए, यदि आप अपने माता-पिता पर निर्भर नहीं हैं, तो आपको अपनी और अपने साथी की आजीविका स्वयं अर्जित करनी होगी और इससे स्वाभाविक रूप से स्कूल या कॉलेज जाने की संभावना समाप्त हो जाएगी। यदि आप अपनी इच्छा से कम उम्र में ही जीवन के इस संघर्ष में उतर जाते हैं, तो न केवल जीवन के अन्य अवसरों का आनंद लेने की आपकी संभावनाएं बुरी तरह प्रभावित होती हैं, बल्कि समाज में आपकी स्वीकृति भी कम हो जाती है। यह एक लड़की के लिए और भी कठिन होता है जो कम उम्र में गर्भवती भी हो सकती है, जिससे उसके जीवन में और भी जटिलताएं आ सकती हैं।'
सॉल डी. हॉफमैन एवं रेबेका ए. मेनार्ड की संपादित पुस्तक "किड्स हैविंग किड्स: इकॉनॉमिक कॉस्ट्स एंड सोशल कन्सीक्वेंसेज ऑफ टीन प्रेग्नेंसी' स्पष्ट रूप से बताती है कि किशोरावस्था में गर्भधारण केवल किशोरी मां और युवा पिता के जीवन को प्रभावित ही नहीं करता है, बल्कि पूरे समाज और अर्थव्यवस्था पर गंभीर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है। यह पुस्तक चेतावनी देती है कि शारीरिक और मानसिक परिपक्वता तथा आर्थिक स्वावलंबनता को पाए बगैर माता-पिता बनना उज्जवल भविष्य की संभावनाओं को खत्म कर देता है। 2011 में जर्नल ऑफ क्लिनिकल चाइल्ड एंड अडोलसेंट साइकोलॉजी में प्रकाशित शोध 'डिप्रेसिव सिम्पटम्स एंड रोमैंटिक रिलेशनशिप क्वालिटीज इन एडोलसेंस' सिद्ध करता है कि किशोर संबंधों में अनुभव होने वाली निकटता और 'हम एक-दूसरे को पूरी तरह समझते हैं' वाली धारणा अक्सर सतही होती है। अध्ययन में यह पाया गया कि वही संबंध जिनमें किशोर सुरक्षित महसूस करते हैं, वास्तव में अविश्वास, गलतफहमियों और भावनात्मक निर्भरता से भरे रहते हैं। यह शोध स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है कि 'सुरक्षित महसूस करना' और 'वास्तव में सुरक्षित होना' दोनों अलग बातें हैं। वहीं 2018 में चाइल्ड डेवलपमेंट में प्रकाशित शोध 'लॉन्ग-टर्म रिस्क्स एंड पॉसिबल बेनिफिट्स एसोसिएटेड विद लेट एडोलसेंट रोमैंटिक रिलेशनशिप क्वालिटी' यह दिखाता है कि किशोर लिव इन संबंधों का प्रारंभिक उत्साह अस्थायी होता है, जबकि उनके भीतर छिपे तनावपूर्ण पहलू भविष्य में मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्थिरता पर गहरा प्रभाव डालते हैं। ऐसे संबंधों में पाए गए संघर्ष और भावनात्मक असंतुलन आगे चलकर आत्म-सम्मान में कमी, अवसाद, सामाजिक अस्थिरता और संबंध-विघटन के बढ़े हुए जोखिम से जुड़ते हैं। शोध यह भी बताता है कि किशोर अक्सर अपनी भावनात्मक अपरिपक्वता को 'परिपक्व प्रेम' समझ बैठते हैं, जिससे वे जोखिमों को पहचान नहीं पाते। यह दोनों शोध यह बताने के लिए काफी है कि किशोर लिव-इन संबंधों में जो सुरक्षा, स्वतंत्रता और भावनात्मक मजबूती का अनुभव होता है, वह प्राय: एक भ्रम होता है। वास्तविकता यह है कि कम उम्र में बने ऐसे संबंध मानसिक स्वास्थ्य और भविष्य के संबंध-जीवन के लिए जोखिमपूर्ण साबित हो सकते हैं।
किशोरावस्था में अनेक जोड़े यह मान लेते हैं कि लिव-इन संबंध उन्हें अधिक स्वतंत्रता, सुरक्षा और भावनात्मक निकटता प्रदान करेंगे। अमूमन यह विश्वास उन्हें होता है कि लगातार साथ रहने से रिश्ता और मजबूत होगा। लेकिन वैज्ञानिक शोधों के वास्तविक निष्कर्ष इस धारणा को सही नहीं ठहराते। कम उम्र में बना दांपत्य जीवन का निर्वहन चाहे उसका स्वरूप लिव-इन रिलेशनशिप ही क्यों ना हो अक्सर सुरक्षा का भ्रम पैदा करता है, जबकि भीतर ही भीतर यह भावनात्मक अस्थिरता, मानसिक दबाव और दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभावों को जन्म दे सकता है।
किशोरावस्था में लिव-इन रिलेशनशिप के मामले निर्विवादित रूप से व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े हुए हैं परंतु प्राप्त अधिकार सदैव हितकर हो यह आवश्यक नहीं। न्यायालय का दरवाजा खटखटाना और अपने अधिकारों की बात करना एक अलग मुद्दा है परंतु वास्तविकता के धरातल पर किशोरावस्था चुनौतियों से भरी हुई है। ध्यान देने योग्य तथ्य है यह कि विवाहित जीवन सदैव से ही परिपक्वता, संयम, दायित्व निर्वहन और आर्थिक सुदृढ़ता से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है और इसमें से किसी एक का भी अभाव विवाहित जीवन के मार्ग को कठिन कर देता है। किशोरावस्था में परिपक्वता और आर्थिक सुदृढ़ता दूर की कौड़ी है।
Published on:
08 Dec 2025 02:46 pm
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