-रतलाम मंडल का इकलोता मीटरगेज ट्रैक भी आज से हो जाएगा बंद-40 यात्रियों को लेकर महू से ओंकारेश्वर रोड स्टेशन अंतिम यात्रा
डॉ. आंबेडकर नगर (महू). 1 जनवरी 1878। यह वह दिन है, जब महू रेलवे स्टेशन से पहली बार भांप के इंजन के साथ जोखिम भरे रूट से होकर मीटरगेज ट्रेन का सफर शुरू हुआ था। लगातार 146 सालों तक महू से सरपट दौडऩे वाली इस ऐतिहासिक ट्रेन के सफर का सिलसिला 15 दशक बाद थम गया है। अंग्रेजों के बनाए इस रुट पर सोमवार को महू से अंतिम बार मीटरगेज ट्रेन ने 40 यात्रियों के साथ अंतिम विदाई सफर तय किया। इसके साथ ही मीटरगेज ट्रेन अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगी।
रतलाम मंडल का इकलौता मीटरगेज ट्रैक महू-ओंकारेश्वर रोड स्टेशन (59 किमी) आज से बंद हो जाएगा। इसके बाद यहां पर ब्राडगेज लाइन आकार लेने लगेगी। सोमवार को महू से ओंकारेश्वर रोड स्टेशन के लिए मीटरगेज ट्रेन 40 यात्रियों को लेकर शाम 5.45 बजे रवाना हुई। इस दौरान लोको पायलेट दौलत राम मीणा, सहायक लोको पायलेट ऋषि कुमार और गार्ड रोशन लाल कौशल को हार पहनाया गया। ट्रेन में सवार यात्री भी इस ट्रेन के बंद होने से भावुक हो गए। यात्री रामलाल ने बताया कि इस ट्रेन से हर दिन आना-जाना रहता था। इस ट्रेन से हमारी कई यादें जुड़ी हुई। अब ट्रेन बंद होने से लोक परिवहन की दिक्कत आएगी। राकेश कौशल ने बताया कि यह ट्रेन चोरल और कालाकुंड से जुड़े दर्जनों गांव के लिए लाइफ लाइन थी। हर दिन पहाड़ी में बसे इन गांव के लोग इसी ट्रेन से सफर करते थे। ट्रेन बंद होने से सभी निराश है। इधर, आज सुबह ओंकारेश्वर रोड स्टेशन महू से के लिए भी अंतिम ट्रेन रवाना होगी, जो सुबह 11.45 बजे महू पहुंचेगी।
होलकर काल में बनी थी रेल लाइन
1 जनवरी 1878 में पहली बार खण्डवा चलहर ट्रेन पहली बार महू होते हुए इंदौर पहुंची थी। होलकर स्टेट रेलवे को इस 87 मील रेलवे लाइन बनाने में 8 साल का समय लगा। 12 स्टेशन के साथ कालाकुंड और महू में एक-एक इंजन शेड बनाए गए। जटिल रास्ते, घने जंगलए खुंखार जानवर, पहाड़ी-चट्टानों और नदी-नालों से होते हुए यह ट्रैक विंध्य व मालवा के पठारों से होकर गुजरती है। उस समय अंग्रेजों ने इसका नाम राजपूताना मालवा-होलकर रेलवे रखा था। इस सफर में कालाकुंड से पातालपानी के बीच दो इंजन से 1 हजार 300 फीट की चढ़ाई का सफर लुभावना था। खास बात यह है कि उस समय अंग्रेजों ने भांप के इंजन को हाथियों से खींचकर लाए थे।