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अंतरजातीय विवाह की सजा : भयावाड़ी में सामाजिक बहिष्कार और वसूली का खुला खेल

बैतूल। एक ओर संविधान समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है, तो दूसरी ओर समाज के कुछ ठेकेदार आज भी जाति की दीवारें खड़ी कर लोगों की जिंदगी को नरक बना रहे हैं। शाहपुर विकासखंड के ग्राम भयावाड़ी का मामला इसी सामाजिक विडंबना को उजागर करता है, जहां अंतरजातीय विवाह करने वाले दर्जन भर […]

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बैतूल। एक ओर संविधान समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है, तो दूसरी ओर समाज के कुछ ठेकेदार आज भी जाति की दीवारें खड़ी कर लोगों की जिंदगी को नरक बना रहे हैं। शाहपुर विकासखंड के ग्राम भयावाड़ी का मामला इसी सामाजिक विडंबना को उजागर करता है, जहां अंतरजातीय विवाह करने वाले दर्जन भर से अधिक परिवार वर्षों से सामाजिक बहिष्कार का दंश झेलने को मजबूर हैं। मंगलवार को पीडि़त परिवारों ने एसपी कार्यालय पहुंचकर अपनी पीड़ा रखी। उनका आरोप है कि गांव के तथाकथित समाज प्रमुख और पटेल वर्ग के लोग जातीय शुद्धता और सामाजिक मर्यादा के नाम पर खुलेआम तानाशाही कर रहे हैं। अंतरजातीय विवाह करने वालों को समाज से बाहर कर दिया जाता है और दोबारा समाज में शामिल करने के बदले 25 हजार रुपए की मांग की जाती है। यह रकम न देने पर न सिर्फ सामाजिक कार्यक्रमों से दूर रखा जाता है, बल्कि अपमान और तिरस्कार भी झेलना पड़ता है।
एक पीडि़ता ने बताया कि उसने छह साल पहले प्रेम विवाह किया था, लेकिन छोटी जाति से होने के कारण आज तक उसे और उसके परिवार को समाज में स्वीकार नहीं किया गया। महिला का कहना है कि उसके पति मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण करते हैं, ऐसे में 25 हजार रुपए जमा करना उनके लिए असंभव है। इस कारण पूरा परिवार सामाजिक उपेक्षा और मानसिक प्रताडऩा का शिकार बन रहा है। पीडि़तों का आरोप है कि जो लोग समाज के इस अन्यायपूर्ण फैसले का विरोध करते हैं, उन्हें ग्राम सभा, शादी-ब्याह और अन्य सामाजिक आयोजनों से बहिष्कृत कर दिया जाता है। यह केवल सामाजिक दबाव नहीं, बल्कि एक तरह की जबरन वसूली और मानसिक हिंसा है, जो कानून और संविधान दोनों के खिलाफ है। मामले में एडिशनल एसपी कमला जोशी ने बताया कि भयावाड़ी गांव से अंतरजातीय विवाह करने वाले 10 से अधिक परिवारों के आवेदन प्राप्त हुए हैं। शिकायतों के आधार पर पीडि़तों के बयान दर्ज कर लिए गए हैं और पूरे मामले की जांच की जा रही है। पीडि़त परिवारों ने दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की है। यह मामला सिर्फ भयावाड़ी गांव का नहीं, बल्कि उस सोच का प्रतीक है जो आज भी जाति के नाम पर समाज को बांट रही है। सवाल यह है कि क्या 21वीं सदी में भी लोगों को अपने जीवनसाथी चुनने की सज़ा सामाजिक बहिष्कार के रूप में मिलती रहेगी, या प्रशासन और समाज मिलकर इस अमानवीय परंपरा पर लगाम लगाएंगे।