
Gig Worker, कचरा बीनने वालों को लेकर मौसम विभाग ने नया प्रयोग किया है। Patrika
जयपुर. राजस्थान 2023 के गिग कर्मचारी अधिनियम के आधार पर अपने अत्याधुनिक प्लेटफॉर्म द्वारा गिग कर्मचारियों के अधिकारों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए भारत में श्रम कानून के परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मानक स्थापित कर रहा है। यह गिग कर्मियों के लिए विस्तृत सामाजिक सुरक्षा उपाय पेश करने वाला पहला राज्य है। राजस्थान ने यह पहल ऐसे महत्वपूर्ण समय पर की है, जब केंद्र सरकार के कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी (सीओएसएस) 2020 का क्रियान्वयन होने वाला है। इस राज्य के ऐतिहासिक कानून में एक त्रिपक्षीय कल्याण बोर्ड और प्लेटफॉर्म कंपनियों से विनिमय-आधारित कल्याण शुल्क की शुरुआत की गई है, जिसने अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल कायम की है। हालांकि क्रियान्वयन शुरू होने के साथ कई चुनौतियां उभरकर आई हैं, जिनसे राज्य में काम करने वाले कर्मचारी और प्लेटफॉर्म कंपनियां प्रभावित हो सकती हैं, जिससे कर्मचारियों की विस्तृत सुरक्षा को लेकर राज्य और केंद्र सरकार के अभियानों के बीच तालमेल के बारे में सवालात खड़े होते हैं।
ओएमआई फाउंडेशन में लीड, सेंटर फॉर इंक्लुसिव मोबिलिटी प्रकाश गुप्ता ने कहा कि राजस्थान सरकार का अभियान उल्लेखनीय है, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार के नियमों के बीच तालमेल की कमी के कारण बड़ी चुनौतियां हैं। कर्मियों को परिभाषित करने और उनके वर्गीकरण में अंतरों के कारण क्रियान्वयन में गंभीर कमियां उत्पन्न हो सकती हैं।
प्रवासी कर्मियों पर कानून के प्रभाव को लेकर एक बड़ी चिंता है, जो खासकर चिरंजीवी योजना जैसी योजनाओं के अंतर्गत वर्तमान में राजस्थान के स्थायी नागरिकों के लाभों के सीमित होने के बारे में हैं। गुप्ता ने कहा,‘राज्य विशिष्ट रजिस्ट्रेशन के कारण प्रवासी कर्मियों की पात्रता और पोर्टेबिलिटी तथा बेनेफिट्स जारी रखने को लेकर समस्याएं उत्पन्न होती हैं क्योंकि कर्मी विभिन्न राज्यों के बीच आवागमन करते हैं।’
राज्य की कल्याण प्रणाली, इनोवेटिव होने के साथ ही प्लेटफॉर्म कंपनियों के लिए अपने एक समान दृष्टिकोण की ओर ध्यान आकर्षित करती है। भारत में प्लेटफॉर्म की अर्थव्यवस्था में विभिन्न सेक्टर, बिज़नेस मॉडल, और राजस्व संरचनाएं काम कर रही हैं। प्लेटफॉर्म की अर्थव्यवस्था एकल संरचना नहीं है। इसलिए कल्याण राशि के कलेक्शन की प्रणाली में इस विविधता पर भी गौर किया जाना चाहिए।’ केंद्र सरकार के ई-श्रम पोर्टल के साथ कानून के व्यवहार की एक और चुनौती है। जहाँ राज्य में अपनी खुद की रजिस्ट्रेशन प्रणाली आवश्यक है, वहीं श्रम मंत्रालय ई-श्रम द्वारा पूरे देश के लिए कर्मचारियों के रजिस्ट्रेशन पर जोर दे रहा है। इस ड्युअल रजिस्ट्रेशन के कारण कर्मियों पर अतिरिक्त पेपरवर्क का भार पड़ता है।
भविष्य में राज्य के अधिकारियों को अनेक महत्वपूर्ण एडजस्टमेंट्स पर विचार करना होगा। कानून को कर्मचारियों के वर्गीकरण में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए अपनी परिभाषाओं को सेंट्रल कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी 2020 के अनुरूप बनाना होगा। अधिकारियों को उन सोशल सिक्योरिटी बेनेफिट्स के बारे में ज्यादा स्पष्टता प्रदान करनी होगी, जो कर्मियों को कानून के अंतर्गत मिल सकते हैं। एक दूसरी महत्वपूर्ण समस्या प्रवासी कर्मियों का समावेशन सुनिश्चित करने की है, ताकि वो सोशल सिक्योरिटी फ्रेमवर्क से बाहर न रह जाएं। इसके अलावा, नियमों को विकसित होते हुए प्लेटफॉर्म्स के अनुरूप ढाले जाने की जरूरत है, खासकर ओएनडीसी जैसे ओपन प्रोटोकॉल्स पर काम करने वाले प्लेटफॉर्म्स के अनुरूप, ताकि विकसित होती हुई डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ कानून प्रासंगिक बने रहें।
हाल में हुई प्रगतियों से संकेत मिलता है कि केंद्र सरकार कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी 2020 के क्रियान्वयन की ओर आगे बढ़ रही है। स्रोतों से संकेत मिलता है कि राजस्थान का श्रम विभाग राज्य और केंद्र सरकार के अभियानों के बीच सुगम तालमेल बनाए रखने के लिए काम कर रहा है। गुप्ता ने राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों के बीच तालमेल बनाए रखने की जरूरत के बारे में कहा, ‘‘राजस्थान सरकार को राज्य में कर्मचारियों के लिए सोशल सिक्योरिटी स्कीम्स के सुगम क्रियान्वयन के लिए भारत सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए।’
राजस्थान के गिग कर्मियों के लिए, जिनमें जयपुर में डिलीवरी पार्टनर्स से लेकर जोधपुर में राईड शेयर ड्राईवर शामिल हैं, इन नियामक प्रयासों की सफलता से उनकी फाईनेंशियल सुरक्षा निर्धारित हो सकती है। जहाँ इस राज्य ने साहसी पहल कर दी है, वहीं यह अग्रणी अभियान कितना प्रभावी होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि राष्ट्रीय फ्रेमवर्क्स के साथ इसका तालमेल कितना अच्छा है।
Published on:
09 Mar 2025 11:30 pm
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