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नवरात्रि: षष्ठी तिथि- मां कात्यायनी यहां हुआ था अवतरण, जानें स्वरूप, पूजा विधि से लेकर मंत्र व भोग

30 मार्च : सोमवार : षष्ठी तिथि, मां कात्यायनी की पूजा...

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sixth day of navrati for maa katyayani-get blessings

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नवरात्रि के छठे दिन देवी के छठे स्वरूप मां कात्यायनी का पूजन किया जाता है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इससे रोग, शोक, संताप और भय भी नष्ट हो जाते हैं।

पंडित सुनील शर्मा के अनुसार शक्ति स्वरूप मां कात्यायनी सच्चे मन से अराधना करने वाले भक्तों के सभी पाप माफ कर देती हैं। वहीं एक मान्यता के अनुसार किसी का विवाह नहीं हो रहा या फिर वैवाहिक जीवन में कुछ परेशानी है तो उसे शक्ति के इस स्वरूप की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

इसके साथ ही आपको ये जानकर भी आश्चर्य होगा कि मां कात्यायनी का अवतरण एक ऐसे पर्वत पर हुआ था, जहां आज भी चमत्कारी शक्तियां देखने को मिलती हैं। इतना ही नहीं यहां माता का मंदिर आज भी है, जहां उनके अवतरण के स्थान पर शेर की आकृति भी दिखती है, ऐसा माना जाता है कि यहां मां का अवतरण शेर की सवारी करते हुए हुआ था। इस पूरी घटना का जिक्र स्कंद पुराण में भी है।

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वहीं नवरात्र के छठे दिन के संबंध में माना जाता है कि इस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। कहा जाता है कि परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से मां के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
(आज्ञा चक्र:हिन्दू परम्परा के अनुसार आज्ञा चक्र छठा मूल चक्र है। जानकारों के अनुसार यह चक्र दोनों भौंहों के बीच स्थित होता है। इस चक्र में 2 पंखुडिय़ों वाले कमल के फूल का अनुभव होता है, जो सुनहरे रंग का होता है।)

विवाह बाधा निवारण
देवी कात्यायनी का तंत्र में अति महत्व है, माना जाता है कि विवाह बाधा निवारण में इनकी साधना चमत्कारिक लाभदायक सिद्ध होती है। मान्यता है कि जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब हो रहा हो, अथवा विवाह बाधा आ रही हो, ग्रह बाधा हो, उन्हें कात्यानी यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर, उस पर निश्चित दिनों तक निश्चित संख्या में कात्यानी देवी के मंत्र का जप अति लाभदायक होता है और विवाह बाधा का निराकरण हो शीघ्र विवाह हो जाता है। वहीं जो यह साधना खुद न कर सके वे अच्छे कर्मकांडी से इसका अनुष्ठान करवाकर लाभ उठा सकते हैं। इससे उन्हें मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।


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देवी कात्यायनी की कथा:
देवी कात्यायनी जी के संदर्भ में एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ॠषि हुए और उनके पुत्र ॠषि कात्य हुए। उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ॠषि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। वहीं ये भी माना जाता है कि देवी कात्यायनी जी देवताओं, ऋषियों के संकटों को दूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न हुईं और महर्षि कात्यायन जी ने देवी का पालन पोषण किया था।

महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढने पर उसके विनाश के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने-अपने तेज और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ॠषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या, पूजा की थी। इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं।

महर्षि कात्यायन जी की इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। देवी ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की तथा अश्विन कृष्णचतुर्दशी को जन्म लेने के पश्चात शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ॠषि ने इनकी पूजा की, दशमी को देवी ने महिषासुर का वध किया ओर देवों को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त किया।

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कात्यायनी देवी का स्वरूप:
दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समाना चमकीला है। चार भुजाधारी मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिए हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं।

पूजा विधि :
नवरात्रों के छठे दिन मां कात्यायनी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए, फिर मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं, उन्हें भगवती कात्यायनी सभी प्रकार के भय से मुक्त करती हैं. मां कात्यायनी की भक्ति से धर्म, अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है। देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए। वहीं श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए।

देवी कात्यायनी के मंत्र :
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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चढावा / भोग :
षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए।

मनोकामना:
मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए।

भय से दिलाती हैं मुक्ति:
मान्यता के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को हमेशा भय बना रहता है और जरा सी बात पर पैर कांपने लगते हैं, साथ ही वह कोई निर्णय नहीं ले पाता है, तो व्यक्ति को छठे नवरात्र से इसका उपाय करना चाहिए।

जानकारों के अनुसार इसके तहत व्यक्ति शुद्ध होकर घी का दीपक जलाए और 'ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊॅं कात्यायनी देव्यै नम:' मंत्र का सुबह व शाम जाप करें। इसके बाद रात्रि में सोते समय पीपल के पत्ते पर इस मंत्र को केसर से पीपल की लकड़ी की कलम से लिखकर अपने सिरहाने रख ले और सुबह इसे मां के मंदिर में रखकर आ जाए। ऐसा करने से भय से छुटकारा मिल जाता है।

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पूजा में उपयोगी खाद्य साम्रगी:
षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है।

विशेष:

मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए।


माता कात्यायनी का ध्यान :
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

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माता कात्यायनी का स्तोत्र पाठ:
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

देवी कात्यायनी का कवच:
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥