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1857 के स्वाधीनता संग्राम में मारे गए पूर्वजों की कब्रें देखने यूपी के इस शहर में पहुंचे अंग्रेज

ब्रितानी इतिहासकार के साथ आए अंग्रेजों ने सबसे अधिक समय लेखानगर स्थित कब्रिस्तान में बिताया।

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british in meerut

1857 के स्वाधीनता संग्राम में मारे गए पूर्वजों की कब्रें देखने यूपी के इस शहर में पहुंचे अंग्रेज

मेरठ। प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 के दौरान मेरठ में क्रांतिकारियों के हाथों कई अंग्रेज भी मारे गए थे। उनकी कब्रें छावनी स्थित सेंट जोंस चर्च के कब्रिस्तान में हैं। ब्रिटेन से आए 10 अंग्रेज अपने इन्हीं पूर्वजों की कब्र देखने शनिवार को मेरठ पहुंचे। उनके साथ ब्रिटेन की प्रसिद्ध इतिहासकार रोजी लिलवेलन जोंस भी थीं। ब्रितानी इतिहासकार के साथ आए अंग्रेजों ने सबसे अधिक समय लेखानगर स्थित कब्रिस्तान में बिताया।

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औघड़नाथ मंदिर भी पहुंचे अंग्रेज
सबसे पहले वह राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय पहुंचे। यहां उन्होंने 1857 की क्रांति के दृश्यों को देखा और जानकारी ली। यहां से वह 1857 की क्रांति के उद्गम स्थल औघड़नाथ मंदिर पहुंचे। वहां लगे शिलापट को देखा। औघड़नाथ मंदिर से होते हुए वे लेखानगर स्थित सेंट जोंस चर्च गए और फिर कब्रिस्तान में जाकर पूर्वजों की कब्रों को देखा। शिलापटों को साफ करके उनकी तस्वीरें लीं। जानकारी के मुताबिक कब्रिस्तान में 31 रजिस्टर्ड कब्रें हैं, जो 1857 की क्रांति के दौरान मारे गए अंग्रेजों की हैं। उसमें से नौ कब्रें आज भी देखी जा सकती हैं।

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कब्रिस्तान में एक कब्र कर्नल गिलिस्पी की भी है, जिनकी 1857 से पहले देहरादून में स्वाभाविक मृत्यु हुई थी। उनको मेरठ स्थित लेखानगर के कब्रिस्तान में दफनाया गया था। कर्नल ने बैरकपुर में सबसे पहले हुए विद्रोह को दबाया था। इसके अलावा 1857 में मेरठ छावनी में तैनात कुछ अंग्रेजों की स्वाभाविक मृत्यु होने के बाद उनको लेखानगर स्थित कब्रिस्तान में दफनाया गया था। कब्रिस्तान के सामने ग्रुप फोटो लेने के बाद सभी अंग्रेज दिल्ली के लिए रवाना हो गए।

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10 साल पहले भी आईं थीं रोजी
अंग्रेजी प्रतिनिधिमंडल के साथ आईं ब्रितानी इतिहासकार रोजी जोंस ने बताया कि 10 साल पहले वह मेरठ आईं थीं। लंदन में रायल सोसाइटी फार एशियन अफेयर्स के लिए काम करने वाली रोजी जोंस की 1857 की क्रांति पर कई किताबें हैं। लखनऊ शहर के ऊपर भी उनकी कई किताबें हैं। उनकी किताब ‘द ग्रेट अपराइजिंग इन इंडिया 1857-58 अनटोल्ड स्टोरीज इंडियन एंड ब्रिटिश’ में 1857 की क्रांति का विस्तार से उल्लेख है। 1857 की क्रांति के नायक मंगल पांडे की हुंकार और उनके आखिरी गोली चलाने की घटना को इतिहासकार रोजी ने अपनी पुस्तक में लिखा है।

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प्रतिनिधिमंडल में दो अमरीकी मूल के भी अंग्रेज
ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल में इतिहासकार रोजी लिलवेलन जोंस के अलावा एलन एस्टम, कारोलेन एस्टम, चाल्र्स वोल्कर्स, डी. शार्प, पीटर फिशर, एफ. रेडक्लिफ, रिचर्ड, क्रिस्टोफर, राय बारविक हैं। इनमें एलन एस्टम और कारोलेन एस्टम अमरीकी मूल के हैं।