
ग्रेटर नोएडा. गौतमबुद्ध नगर Gautam Budh Nagar का बिसरख bisarkh गांव त्रेता युग में जन्मे विश्रवा ऋषि की जन्मस्थली माना जाता है। इस गांव का जिक्र शिव पुराण में भी है। विश्रवा ऋषि ने अष्टभुजी शिवलिंग की स्थापना कर घोर तपस्या की थी। उनके घर ही लंकापति रावण का जन्म हुआ था।
रावण ravana ने भी पिता दुवारा स्थापित शिवलिंग की पूजा की थी। पुराणों के अनुसार, इसी मंदिर में शिव भगवान ने रावण की तपस्या से खुश होकर बुद्रिधमता और पराक्रमी होने का वरदान दिया था। आज भी इस गांव का एक बड़ा तबका रावण की वजह से खुद को गौरवान्वित महसूस करता है। लोगों का कहना है कि रावण ने लंका पर विजय पताका फहराकर राजनैतिक सूझबूझ और अपने पराक्रम का परिचय दिया था। मान्यता है कि रावण ने राक्षस जाति का उद्धार के लिए सीता का हरण किया था।
गांव में नहीं जलाया जाता रावण का पुतला
बिसरख गांव में आज भी Dussehra 2019 के मौके पर रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है। यहां करीब 80 साल पहले रावण के पुतले का दहन किया गया था। लेकिन रामलीला का आयोजन पूरा नहीं हुआ। ग्रामीणों ने दोबारा रामलीला का आयोजन कराया तो उस दौरान रामलीला के एक पात्र की मौत हो गई। उसी अपशकुन के चलते बिसरख गांव में रामलीला और रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है।
चंद्रास्वामी ने की थी पूजा
बिसरख गांव में शिवमंदिर है। इस शिव मंदिर में दूर-दूर से लोग पूजा अर्चना करने के लिए आते है। साथ ही यहां एक सुंरग भी है। बताया जाता है कि इस सुंरग से रावण गाजियाबाद स्थित दुधेश्वर मंदिर में पूजा करने के लिए जाता था। बताया गया है कि 1984 में तांत्रिक चंद्रास्वामी Chandraswami ने खुदाई कराई थी। खुदाई के दौरान शिवलिंग का छोर नहीं मिला। खुदाई के दौरान एक 24 मुख का शंख भी मिला था। इस शंख को चंद्रास्वामी अपने साथ ले गए थे।
Updated on:
08 Oct 2019 01:34 pm
Published on:
08 Oct 2019 01:33 pm
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