scriptRTI से खुलासा: दांतों के लिए मार दिए गए सैकड़ों हाथी, 957 शिकारी गिरफ्तार, जानिये कहां हुआ कितना शिकार | hundreds of elephant killed for tusks revealed in a rti | Patrika News

RTI से खुलासा: दांतों के लिए मार दिए गए सैकड़ों हाथी, 957 शिकारी गिरफ्तार, जानिये कहां हुआ कितना शिकार

locationनोएडाPublished: Feb 16, 2021 11:21:20 am

Submitted by:

Rahul Chauhan

Highlights:
-नोएडा के समाजसेवी रंजन तोमर ने आरटीआई से मांगा था जवाब
-सबसे अधिक शिकार 2010 में और सबसे कम 2013 में हुआ
-सरकार के शिकार रोकने को और सख्त कदम उठाने की जरूरत है

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पत्रिका न्यूज नेटवर्क

नोएडा। इंसान के लालच की कोई सीमा नहीं। इस अंधेपन में वह अपने पर्यावरण को नष्ट करने पर तुला हुआ है। यही कारण है कि देशभर में पिछले दस वर्षों में सैंकड़ों हाथियों को उनके दांतो के लिए मार दिया गया। यह जानकारी एक आरटीआई के जवाब में सामने आई। दरअसल, वन्यजीव अपराध नियन्त्र ब्यूरो में लगाई गई एक आरटीआई में नोएडा के समाजसेवी रंजन तोमर ने पूछा था कि पिछले दस वर्षों में कितने हाथी दांत ब्यूरो द्वारा बरामद किये गए और कितने शिकारियों को इसके लिए गिरफ्तार किया गया। इसके जवाब में ब्यूरो ने जवाब दिया कि कुल 509 ऐसे केस सामने आये हैं। इस दौरान 957 शिकारियों को गिरफ्तार किया गया है।
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आरटीआई के जवाब के मुताबिक सबसे ज्यादा केरल में 101 केस पिछले दस वर्षों में सामने आए हैं। जिनमें 203 शिकारियों को गिरफ्तार किया गया। उसके बाद तमिलनाडु में 68 केस मिले और 163 गिरफ्तारियां हुईं। पश्चिम बंगाल में 67 मामलों में 105 लोगों को गिरफ्तार किया गया। वहीं कर्नाटक में 57 मामलों में 81 शिकारी गिरफ्तार हुए। इसके बाद नंबर आता है ओडिशा का जो शिकारियों को गिरफ्तार करने में काफी आगे रहा है। जहां 56 मामलों में 160 गिरफ़्तारी हुई। देश की राजधानी दिल्ली में 6 मामलों में 10 गिरफ्तारियां हुईं जबकि उत्तर प्रदेश में 22 मामलों में 15 गिरफ्तारियां हुईं।
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रंजन तोमर ने बताया कि सबसे ज्यादा मामले जहां वर्ष 2010 में सामने आए हैं। इस वर्ष में 96 केस प्रकाश में आये। वहीं सबसे कम केस 2013 में रहे, जिसमें 33 केस सामने आये। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की एक मुख्य वजह है जानवरों का इस तरह होता शिकार है। हाथियों के अलावा अन्य जानवरों का भी लगातार शिकार हो रहा है। सरकार की तमाम कोशिशें शिकार रोकने में नाकामयाब साबित हो रही हैं। ऐसे में सरकारों को और कड़े कदम उठाने होंगे. जिनसे यह रुक सके।
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