Vijayant Thapar martyr के पिता वी. एन. थापर अपने बेटे को याद करते हुए कहते हैं कि सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है और सीना फक्र से चौड़ा। वी. एन. थापर हर साल 16 हजार फुट की ऊंचाई पर जाते हैं जहां बेटे की शहादत हुई थी। विजयंत थापर के पिता कहते हैं आज भी जब मैं उन बर्फिली चोटियों पर जाता हूं तो वहां की मिट्टी को छूने पर ऐसा लगता है मानों मैं उसे महसूस कर सकता हूं। हां आंखें नम और धड़कन मंद जरूर हो जाती है लेकिन एक फक्र महसूस होता है। वादियों की ठंडी हवा जब कानों को छूती हैं तो लगता है कि हर लहर में उसी बेटे की आवाज है जो थैंक यू पापा कह जाती है।
सेकेंड राजपूताना राइफल्स के कैप्टन विजयंत थापर ने शहादत के ठीक पहले अपने परिजनों को एक पत्र लिखा था। जिसे आज भी उनके परिवार ने संभाल कर रखा है। इस पत्र को पढ़कर कोई भी यह समझ सकता है कि लड़ाई के मोर्चे पर भी उनके हौंसले कितने बुलंद थे। अमर शहीद कैप्टन विजयंत थापर ने लिखा था कि…
प्यारे मम्मी-पापा, बर्डी और ग्रैनी, जब तक आप लोगों को यह पत्र मिलेगा, मैं ऊपर आसमान से आप को देख रहा होऊंगा और अप्सराओं के सेवा-सत्कार का आनंद उठा रहा होऊंगा। मुझे कोई पछतावा नहीं है कि जिन्दगी अब खत्म हो रही है, बल्कि अगर फिर से मेरा जन्म हुआ तो मैं एक बार फिर सैनिक बनना चाहूंगा और अपनी मातृभूमि के लिए मैदान-ए-जंग में लड़ूंगा।
अगर हो सके तो आप लोग उस जगह पर जरूर आकर देखिए, जहां आपके बेहतर कल के लिए हमारी सेना के जांबाजों ने दुश्मनों से लोहा लिया था। जहां तक इस यूनिट का सवाल है, तो नए आने वालों को हमारे इस बलिदान की कहानियां सुनाई जाएंगी और मुझे उम्मीद है कि मेरा फोटो भी ‘ए कॉय’ कंपनी के मंदिर में करणी माता के साथ रखा होगा।
आगे जो भी दायित्व हमारे कंधों पर आएंगे, हम उन्हें पूरा करेंगे। मेरे आने वाले पैसों में से कुछ भाग अनाथालय को भी दान कीजिएगा और रुखसाना को भी हर महीने 50 रु. देते रहिएगा (रुखसाना एक पांच-छह साल की बच्ची थी, जिसके माता-पिता एक आतंकी हमले में मारे गए थे। इसके बाद उसकी आवाज चली गई थी, लेकिन विजयंत थापर से मिलने के बाद उसकी आवाज पांच महीनों में वापस आ गई थी। दोनों एक-दूसरे के साथ खेलते थे। विजयंत उस बच्ची को बेटी की तरह प्यार करते थे।) और योगी बाबा से भी मिलिएगा।
बेस्ट ऑफ लक टू बर्डी। हमारे बहादुरों का यह बलिदान कभी भूलना मत। पापा, आपको अवश्य ही मुझ पर गर्व होगा और मां भी मुझ पर गर्व करेंगी। मामाजी, मेरी सारी शरारतों को माफ करना। अब वक्त आ गया है कि मैं भी अपने शहीद साथियों की टोली में जा मिलूं। बेस्ट ऑफ लक टू यू ऑल। लिव लाइफ किंग साइज।
विजयंत थापर ने अपने खत में कहा था कि आप इस जगह आकर जरूर देखना। इसी वजह से वी. एन. थापर सन 2000 से कारगिल में विजयंत के शहादत स्थल पर जाने लगे। विजयंत की मां तृप्ता ने भी इसके लिए हौसला बढ़ाया। वे 28 जून से 3-4 दिन पहले करगिल पहुंच जाते हैं और उन्हीं तंबुओं में रहते हैं, जहां विजयंत रहता थे।