दरअसल, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद समेत एनसीआर के तमाम शहरों के मूल निवासियों के लिए किराया एक मुख्य आमदनी है। लेकिन कोरोना काल में इन पर ऐसी मार पड़ी कि पिछले करीब एक वर्ष से हजारों लोग किरायेदारों की राह ताक रहे हैं। जहां एक तरफ पिछले वर्ष लॉकडाउन खुलने से लोगों को जिंदगी फिर से पटरी पर लौटने की उम्मीद थी और पलायन करने वाले मजदूर व कर्मचारियों के वापस लौटने का सिलसिला शुरू हुआ था तो वहीं कोरोना की दूसरी लहर ने ऐसी तबाही मचमाई कि सरकार को मजबूरन फिर से तमाम पाबंदियां लगाते हुए कर्फ्यू लगाना पड़ा। जिसकी घोषणा के साथ ही शहरों से रहे बचे प्रवासी मजदूर व कर्मचारी एक बार फिर पलायन कर गए। इनके अलावा शिक्षण संस्थानों के भी बंद होने से छात्र अपने-अपने घर लौट गए। जिसके चलते तमाम पीजी व होस्टल भी खाली हो गए।
मकान मालिकों ने कम किया किराया बता दें कि लोगों में कोरोना का डर इतना है कि अब किराये का मकान खोजने के लिए कोई नहीं आ रहा है। जिसके चलते मकान मालिकों ने किराया तक कम कर दिया है। नोएडा शहर की बात करें तो यहां जो एक रूम सेट 5000 हजार रुपये प्रति माह मिलता था अब वहीं तीन हजार रुपये तक में मिल रहा है। बावजूद इसके मकान मालिकों को किरायेदार नहीं मिल रहे हैं। शहर में अधिकांश ऐसे लोग हैं जिनकी हर महीने लाखों रूपये की आमदनी किराये से होती थी, लेकिन पिछले एक वर्ष में किरायेदारों के जाने से खाली पड़े मकानों ने आर्थिक रूप से इनकी कमर तोड़ दी है।
बच्चों की फीस और ईएमआई भरने में परेशानी ऊंची-ऊंची इमारतों वाले इन शहरों में विरानी आने के बाद मकान मालिकों के सामने कई आर्थिक संकट पैदा हो गए हैं। जहां एक तरफ किराये के मकान बनाने के लिए बैंक से लोन की ईएमआई भरनी मुश्किल हो रही है तो वहीं बच्चों की स्कूल फीस के लिए भी उन्हें जूझना पड़ रहा है। हालांकि लोगों को उम्मीद है कि सरकार के तमाम प्रयासों के चलते कोरोना जल्द खत्म होगा और इन शहरों में पलायन कर गए लोग फिर से लौटेंगे और किरायेदारी फिर से चल पड़ेगी।
हाउस एडवाइजर के पास नहीं आते किराएदारों के फोन लॉकडाउन के पहले हाउस एडवाइजरों के पास सिर्फ किरायेदारों के ही फोन आया करते थे, लेकिन अब आलम यह है कि इनके पास मकान मालिकों तक के भी फोन आने लगे हैं। मकान मालिक अब एडवाइजरों को मोटा मुनाफा व कम किराये पर मकान देने तक की बात कह रहे हैं।