
rajendra mohan bhatnagar
आज चहुं ओर स्त्री विमर्श केंद्रित लेखन का स्वर सुनाई देता है। आपने मीरा पर तीन उपन्यास लिखे हैं। स्त्री विमर्श व स्त्री मुक्ति की दिशा में मीरा का जीवन और उनकी कविता के विषय में आप क्या कहना चाहेंगे?
मीरा का जीवन संघर्ष ऐसी ऊंचाइयों पर था जिसके अगल-बगल आज की नारी का जीवन संघर्ष नहीं है। मीरा ने अपने संघर्ष को आध्यात्मिक संघर्ष में परिवर्तित कर व्यथा में से व्यथा के संगीत को जन्म दे दिया। व्यथा का संगीत मुनष्य की सीमाओं से परे है। व्यथा एक है किंतु उसके संगीत में अनेकता है। तभी तो मीरा के पद एक-सी भावभूमि पर अनेक भावभूमियों से आत्मसात कराते हैं। इसमें एकरसता नहीं अनेक रसता की अनुभूति है और यह प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग ढंग से होती है। मीरा ने स्त्री विमर्श को उन ऊंचाइयों पर ले जाने में सफलता प्राप्त की जिनके बारे में महादेवी वर्मा ने कहा था कि ‘मीरा मैं नहीं अकेली वो ही मीरा थी।’ मीरा ने मध्यकालीन समाज के जड़ता भरे माहौल में स्त्री-मुक्ति का स्वर बुलंद किया था।
रचनाकार समय के सच को किस प्रकार उद्घाटित करता है?
समय का सच कभी अकेले नहीं होता, उसमें अतीत और आगत दोनों की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इसी को हम तात्कालिक समाज की समग्रता कहते हैं। टुकड़ों में विभाजित कर समय के सच को जानने की जिज्ञासा अपूर्ण होती है। समय सदाबहार नदी की तरह प्रवाहित होता रहता है। गतिमान प्रवाह के लिए यह जरूरी है कि उससे पूर्व व आगत में होने वाले परिवर्तन की संभावना को ध्यान में रखते हुए अपने समय के सच को जानने की जिज्ञासा के प्रति समर्पित हो सके। प्रत्येक लेखक को यह प्रयास करना चाहिए कि इतिहास के कथानक से तत्कालीन समय को किस प्रकार साकार किया जा सकता है।
महाराणा प्रताप के युद्ध को लेकर इतिहासकार पुनर्विचार कर रहे हैं। आपके महाराणा प्रताप के जीवन पर दो उपन्यास हैं। वे क्या संप्रेषित करते हैं?
मेरे महाराणा प्रताप के जीवन पर दो उपन्यास ‘एक अंतहीन युद्ध‘ और ‘नीले घोड़े का सवार‘ और एक नाटक ‘संध्या का भोर‘ है। जहां तक हल्दीघाटी का प्रश्न है मैंने उस युद्ध को अपने उपन्यासों में तटस्थ दृष्टि से देखा। हार-जीत के तराजू पर नहीं तोला। यह सोचकर उस घटना प्रसंग को लिया है कि यदि युद्ध नहीं होता तो क्या परिस्थितियां होती? प्राय: युद्ध का चरित्र खोने से जुड़ा हुआ होता है। वास्तव में जो चीज खोई जाती है उसके संदर्भ में तत्काल या बाद में उपलब्धि भी अंकित होती है। इसलिए मैंने युद्ध को युद्ध ही रहने दिया।
वैश्वीकरण और पाश्चात्यीकरण के इस माहौल में भी आपने भारतीय महापुरुषों के योगदान को पर्याप्त रूप से रेखांकित किया है। वर्तमान लेखन की प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए क्या कहना चाहेंगे?
मुझसे कई साहित्यकारों व आलोचकों ने कहा है कि भटनागर तुम इतिहास से बहुत जूझते रहते हो। कथानक व चरित्र बने-बनाए मिल जाते हैं। समाज उन चरित्रों के बारे में काफी पढ़-सुन चुका होता है, ऐसे में कौन तुम्हारे उपन्यासों को पढ़ेगा? मैं उनसे कहता हूं कि वे चरित्र और उनसे जुड़े कथानक जो मानव के स्वभाव को आकृष्ट करते हैं, उनको पढऩे और समझने वालों की कमी नहीं है। भूगोल व इतिहास के संबंध बदलते रहते हैं और मनुष्यता को अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं। वास्तव में इतिहास एक संभावना है जो मनुष्य को जीने की दिशा प्रदान करती है।
संवेदना शून्य युग में एक साहित्यकार का सृजन कितना फलदायी सिद्ध हो सकता है?
आज के युग में साहित्यकार कम रह गए हैं, ख्याति बटोरने वालों की संख्या अधिक है। छपने की भूख ने मनुष्य को खोखला कर दिया है। आर्थिक चकाचौंध ने मनुष्य के उद्देश्य को ही बदल डाला है। फिर वहां संवेदनाएं कहां से आएंगी और यही कारण है कि आज का लिखा उतना स्थाई नहीं बन पा रहा है जितना कि आज से कुछ दशकों पहले तक का साहित्य बन पाया है।
आपके एक उपन्यास का शीर्षक तमसो मां ज्योतिर्गमय है। इसकी संकल्पना को साकार करनेे में साहित्यकार की क्या भूमिका होती है?
यह मेरा प्रारंभिक प्रयत्न था। यह बाल जीवन पर आधारित रचना है। यह उपन्यास बचपन से किशोर होने की अवस्था के संघर्ष की ऐसी कहानी है जो सारे बंधनों को तोडक़र निर्बंध जीवन जीने का संदेश देती है। मेरा संपूर्ण साहित्य प्रिय पाठकों के लिए है। यह उनके जीवन को मंगलकामनाओं से जोडऩे का ऐसा प्रयास है कि पढक़र उनको लगे कि जीना इसे कहते हैं। यह मात्र उपदेश नहीं है बल्कि अंतरमन की पुकार है। अंधकार से प्रकाश की ओर जाना ही साहित्यकार का धर्म, लक्ष्य व कर्म होता है। रचनाकार लोकजीवन की समस्याओं को अपनी रचना से पाठकों के समक्ष रखकर उसके समाधान की दिशा को सुझाता है।
प्रमुख रचनाएं
प्रमुख उपन्यास : ‘गोरांग’, ‘नीले घोड़े का सवार’, ‘देश’, ‘न गोपी, न राधा’, ‘विवेकानंद’, ‘दिल्ली चलो’, ‘रास्ता यह भी है’, ‘स्वराज्य’, ‘सूरश्याम’, ‘प्रेम दीवानी’
Published on:
04 Aug 2017 02:20 pm
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