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नीलगिरी में द्रमुक और बीजेपी में टक्कर, ‘मुफ्त की राजनीति’ से युवाओं को परहेज

Lok Sabha Elections 2024 : लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु के नीलगिरी में द्रमुक और भाजपा के बीच टक्कर देखने को मिल रही है। पढ़िए राजीव मिश्रा की विशेष रिपोर्ट...

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Lok Sabha Elections 2024 : हाड़ों की रानी ऊटी सैलानियों की पहली पसंंद है। साप्ताहांत लोग जब यहां छुट्टियां बिताने बड़ी संख्या में पहुंचते हैं तो वादी का दम घुटने लगता है। संकरे रास्तों पर दो से तीन किलोमीटर लंबे जाम के कारण वाहन सरकने लगते हैं। इससे यहां के लोग भी परेशान हैं और इस समस्या से मुक्ति चाहते हैं। सुगम यातायात सबकी जरूरत है। पहाड़ों में शिकायत है कि क्षेत्र का विकास पर्यटन की संभावनाओं के अनुरूप नहीं हुआ। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां भी जाते हैं, पर्यटन केंद्रों के विकास की बात जोर-शोर से करते हैं। उम्मीद बंध रही है कि अगर भाजपा प्रत्याशी एल. मुरुगन यहां से चुनाव जीतते हैं तो समस्याएं सुलझेंगी। डी.युवराज कहते हैं कि मुफ्त रेवड़ियों की राजनीति से आगे सोचना होगा। अगर बदलाव नहीं हुए तो समस्याएं और बढ़ेंगी।

कारगर साबित होंगे मुद्दे!

नीलगिरी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत ऊटी, मेट्टूपाल्यम और कुन्नूर विधानसभा क्षेत्रों में लोग कई समस्याएं गिनाते हैं। मेट्टुपालयम में के.कन्नन कहते हैं कि यहां पानी की समस्या गंभीर है। भवानी नदी में पानी भरा रहता था। नदी सूख गई है। हैंडलूम का बड़ा कारोबार है लेकिन बाजार नहीं मिल रहा है। पनीरसेल्वम कहते हैं कि हाल तक लोग द्रमुक और अन्नाद्रमुक को छोड़कर किसी दूसरी पार्टी का नाम तक नहीं जानते थे। अब सोच बदली है। चाय-कॉफी के भाव, नालियों की समस्या, प्रदूषितजल निकायों के मुद्दे भी उछाले जा रहे हैं। कई लोगों ने पेट्रोल-डीजल व गैस की बढ़ती कीमतों के साथ महंगाई का मुद्दा उठाया और केंद्र को दोषी ठहराया।

बदलाव की सुगबुगाहट

दक्षिण की राजनीति में एक तरफ मुफ्त रेवड़ियों का चलन अब भी कम नहीं हुआ है तो दूसरी तरफ इसके खिलाफ भी बातें हो रही हैं। क्षेत्र की की युवा पीढ़ी इससे बाहर आना चाहती है। एस.शरद कहते हैं कि मुफ्त की चीजों की बजाय हम समस्याओं का हल चाहते हैं। समस्याएं हल होंगी तो सभी को अपने आप ही राहत मिल जाएगी। पहाड़ी इलाकों में आतिथ्य उद्योग से अलग रोजगार के साधन सृजित होने चाहिए। चाय बागानों में काम करने वाले बडगा समुदाय के सुर भी इस बार बदले हुए हैं। चुनावों मे इसका असर क्या पड़ता है, यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा। करुणानिधि के समय से ही द्रमुक का एक मजबूत जनाधार है जो आज भी द्रमुक प्रत्याशी ए. राजा के साथ खड़ा दिखता है। हालत यह है कि चुनाव प्रचार में अब भी करुणानिधि का नाम चौतरफा सुनाई देता है। कुन्नूर के व्यवसायी युसूफ दावा करते हैं कि भले ही अन्नाद्रमुक कमजोर हुई है लेकिन द्रमुक का जनाधार अभी कम नहीं हुआ है। द्रमुक अब भी मजबूत है। राज्य सरकार की ओर से चलाई जा रहीं मुफ्त योजनाएं लोगों को प्रभावित करती हैं।

चुनाव प्रचार अभियान

तमिलनाडु में तीखी धूप के बावजूद चुनाव प्रचार की धूम है। द्रमुक पार्टी के नेताओं का कहना है कि कार्यकर्ता वार्ड स्तर पर घर-घर जाकर लोगों से मिल रहे हैं। वहीं भाजपा प्रत्याशी एल.मुरुगन व्यक्तिगत तौर पर लोगों से मिल रहे हैं। सभा और रोड शो में झंडे, पोस्टर, म्यूजिक का बोलबाला है। जयललिता और एमजीआर के फिल्मों के गानेे भी खूब बज रहे हैं।