
मनिष दाभाडे
थिंकटैंक 'द इंडियन फ्यूचर्स' के संस्थापक और जवाहरलाल नेहरू विवि, नई दिल्ली में अध्यापनरत
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वर्ष 2023 शुरू हो चुका है और सर्दियों की शीतलहर भी। पिछले तीन सालों से विश्व संकटों का सामना करता दिख रहा है। 2020 में कोरोना महामारी आने के साथ इसकी शुरुआत हुई थी। फिर 2021 में अफगानिस्तान से अमरीकी सेना की नाटकीय ढंग से वापसी और 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमला। इसके अलावा जून 2020 में गलवान और दिसंबर 2022 में तवांग में चीन की हरकतों का विश्व साक्षी रहा है। अब देखना यह है कि 2023 में क्या होगा? इन सब घटकों का भारतीय विदेश नीति पर गहरा दबाव है।
अंतरसंबंधी सवालों के तीन समूहों व उनके उपनिगमनों के जवाब कैसे दिए जाते हैं - आंशिक तौर पर या पूरी तरह - से ही 2023 व आने वाले वर्षों में अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत का रवैया तय होगा। पहला व सर्वोपरि सवाल है - रूस-यूक्रेन युद्ध में जीत किसकी होगी? कूटनीति और रक्षात्मक रवैये की या युद्ध और आक्रामक रवैये की? एक ओर है यूक्रेन व उसके राष्ट्रपति जेलेंस्की का वास्तविक, मजबूत और सफल प्रतिरक्षात्मक रवैया जिसे एकजुट अमरीका व यूरोप का समर्थन प्राप्त है। इनका संकल्प है कि वे पुतिन की आक्रामकता को पूरी तरह विफल कर देंगे। दूसरी ओर पुतिन ने संकल्प लिया है कि वह यूक्रेन में अपने सत्तात्मक उद्देश्य हासिल करके रहेंगे। इसका अधिक खतरनाक पहलू यह है कि रूस, अमरीका-यूरोप-नाटो के मजबूत सहयोग को पीछे हटाने के लिए परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी दे रहा है। क्या विश्व इस युद्ध का हल वार्ता के जरिये निकालने का दबाव डालेगा, या फिर जैसा बहुत से देश सोच रहे हैं कि यह युद्ध आगे बढ़ कर अन्य क्षेत्रों में भी फैल सकता है?
सवालों का अगला समूह चीन और 21वीं सदी में उसके अपरिहार्य वर्चस्व से जुड़ा है। यूक्रेन पर आक्रमण से कुछ सप्ताह पूर्व रूस की चीन के साथ बड़ी घनिष्ठ सामरिक साझेदारी भी गौरतलब है। हालांकि इसकी प्रतिक्रियास्वरूप ही क्वाड और ऑकस जैसे राष्ट्र समूह बने। तो क्या वर्ष 2023 में चीन का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ संयमित व्यवहार देखने को मिलेगा?
तीसरा सवाल समूह उन गठबंधन विकल्पों को लेकर है जो देशों ने चुने हैं और आगे आने वाले महीनों व सालों में चुनेंगे। रूस-यूक्रेन युद्ध की बात की जाए तो क्या अमरीका व यूरोप रूस के खिलाफ एकजुट रह सकेंगे। कारण कि इन सर्दियों में यूरोप में जीविकोपार्जन और महंगा हो सकता है। इससे वहां की सरकारों पर घरेलू मोर्चे पर दबाव पड़ सकता है कि वे इस युद्ध से स्वयं को अलग कर लें। चिंताजनक स्थिति यह है कि क्या होगा अगर रूस, यूक्रेन के खिलाफ परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की अधिक इच्छा जताए। पश्चिमी एकजुटता बनी रहेगी या बिखर जाएगी?
चीन और अमरीका सहित पूरे पश्चिम की अर्थव्यवस्था में अंतरसंबंधों को देखते हुए व चीन द्वारा आर्थिक अंतरनिर्भरता के हथियारीकरण के बावजूद क्या यूरोप व अन्य एशियाई देश अपने विकास हितों को ताक पर रख इस भूराजनीतिक-आर्थिक प्रतिद्वंद्विता में चीन के खिलाफ अमरीका के पक्ष में आ खड़े होंगे। हाल ही नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने चेताया था कि चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध से नुकसान भारत का ही होगा।
उक्त सवालों के जवाब ही 2023 में भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यवहार का आधार तय करेंगे। रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के ‘तटस्थ’ रवैये की शुरुआती आलोचना के बावजूद अमरीका व कई यूरोपीय राष्ट्र भारत के रवैये का ही अनुकरण करने की बात कह रहे हैं कि वे किसी एक का पक्ष नहीं लेंगे। प्रधानमंत्री मोदी का रूसी राष्ट्रपति पुतिन को कहा गया वाक्य-‘यह युद्ध का समय नहीं है’; अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकारा गया और जी-20 सम्मेलन के बाली घोषणा पत्र का हिस्सा बना। दरअसल अब भारत को अमरीका कैम्प व रूस के बीच ‘सेतु’ की तरह देखा जा रहा है ताकि रूसी आक्रमण से उपजे विश्व संकट का कोई हल निकाला जा सके।
चीन को भारत ने दिखा ही दिया है कि वह नियंत्रण रेखा पर भारतीय क्षेत्र में चीनी आक्रामकता का जवाब देने के लिए संकल्पित और सक्षम है। इसके अलावा भारत क्वाड में सक्रिय हो रहा है और जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया व वियतनाम के साथ साझेदारी बढ़ा रहा है।
इस तरह अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए भारत की बहु-गठबंधन नीति और अन्य राष्ट्रों के साथ एकसम्मत सीमित उद्देश्य के लिए गठबंधन के चलते गत वर्ष आशा की किरण जागी थी। निस्संदेह जी-20 और एससीओ की अध्यक्षता से ही भारतीय विदेश नीति की चमक बढ़ गई है। विश्व की मौजूदा पांचवीं अर्थव्यवस्था से अगले दशक तक तीसरी शीर्ष अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य लेकर चल रहे भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलना ऐतिहासिक क्षण है, खास तौर पर दुनिया को ‘भारत की राह’ दिखाने के लिए। विदेश मंत्री एस. जयशंकर के मुताबिक इसी राह पर चलकर विश्व में बहुपक्षवाद व विकास को संयुक्त रूप से बढ़ावा मिलेगा। लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रेटेजिक स्टडीज के एक सर्वे के अनुसार 2023 में बड़े मुद्दे इसी तथ्य पर केंद्रित होंगे कि विद्रोही ताकतों के पतन व उत्थान से निपटने का सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है?
इसलिए वैश्विक ठंड में जकड़े अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बावजूद उम्मीद है कि भारतीय विदेश नीति बहुगठबंधन की राह से होते हुए और जी-20 अध्यक्षता की धूप में चलते हुए वर्ष 2023 में भी और आगे भी पूरी दुनिया में अपनी चमक बिखेरेगी।
Updated on:
06 Jan 2023 05:12 pm
Published on:
05 Jan 2023 08:18 pm
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