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आख्यान : पूरी सभ्यता के लिए भारी पड़ जाता है एक गलत निर्णय

काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्र्या, अहंकार आदि ऐसे दुर्गुण हैं, जो बड़े-बड़े तपस्वियों को भी अपने वश में कर लेते हैं और उनके प्रभाव को धूमिल कर देते हैं। दुर्वासा इसके साक्षात प्रमाण हैं।

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आख्यान : पूरी सभ्यता के लिए भारी पड़ जाता है एक गलत निर्णय

आख्यान : पूरी सभ्यता के लिए भारी पड़ जाता है एक गलत निर्णय

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

श्रीविष्णु पुराण की कथा है, वन में घूमते हुए महर्षि दुर्वासा को एक भील कन्या मिली, जिसके हाथ में एक सुगंधित पुष्पों की अत्यंत सुन्दर माला थी। महर्षि ने उस कन्या से वह माला मांगी, तो उसने सहजतापूर्वक माला दे दी। प्रसन्न महर्षि दुर्वासा वह माला पहन कर घूमने लगे। राह में उन्हें देवराज इंद्र दिखे, तो उन्होंने सम्मानपूर्वक वह माला देवराज की ओर बढ़ा दी। देवराज ने खुशी-खुशी माला पहन ली, किन्तु माला में बसी सुगन्ध उन्हें मुग्ध कर गयी। देवराज क्या मुग्ध हुए, उनके वाहन ऐरावत भी मस्त हो गए। मतवाले ऐरावत ने इंद्र के कंठ से माला नोच कर भूमि पर फेंक दी।

सब जानते हैं कि दुर्वासा अत्यंत ही क्रोधी थे। उन्हें ऐरावत द्वारा माला फेंक दिया जाना बुरा लगा और उन्होंने इसे अपना अपमान समझ लिया। क्रोध में आ कर उन्होंने देवराज इंद्र को शाप दिया कि जा तेरी शक्ति और तेज नष्ट हो जाएगा और तुझे स्वर्ग से बहिष्कृत हो जाना पड़ेगा। इन्द्र पर शाप लगा, उनका तेज जाता रहा। वे दैत्यों से पराजित हुए और तीनों लोकों पर दैत्यों का राज हो गया। इस शाप का दण्ड केवल इन्द्र ने नहीं, समस्त त्रिलोक को भुगतना पड़ा। महर्षि दुर्वासा भगवान शिव के अंशावतार थे, पर इस छोटी सी कथा में उनके अनेक दुर्गुण स्पष्ट दिख जाते हैं।

भील कन्या के हाथ में माला देख कर उस पर आकर्षित होना उनका मोह था और उससे माला मांग लेना उनका लोभ। फिर ऐरावत द्वारा माला फेंक दिए जाने पर क्रोधित हो कर शाप देना उनका अहंकार दिखाता है। ऐरावत हाथी था और वस्तुओं को नोच कर फेंकना उसका प्राकृतिक स्वभाव था। पर बुद्धिहीन पशु के सहज व्यवहार पर क्रोधित हो कर इन्द्र को उतना बड़ा शाप देना दुर्वासा का निरर्थक अहंकार ही दिखाता है। शाप देते समय दुर्वासा भूल गए कि स्वर्ग से इन्द्र के निष्कासन का अर्थ है वहां दैत्यों-राक्षसों के शासन की स्थापना। फिर दैत्यों के शासन में समस्त जगत को कितनी पीड़ा भोगनी पड़ेगी, वे जानते हुए भी नहीं समझ सके और अनजाने में ही उस भीषण दुर्दिन के कारण बन गए। क्रोध के वशीभूत होकर किया गया निर्णय कभी-कभी समूची सभ्यता के लिए घातक हो जाता है।

काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्र्या, अहंकार आदि ऐसे दुर्गुण हैं, जो बड़े-बड़े तपस्वियों को भी अपने वश में कर लेते हैं और उनके प्रभाव को धूमिल कर देते हैं। दुर्वासा इसके साक्षात प्रमाण हैं। इस घटना के बाद भगवान विष्णु की प्रेरणा से समुद्र मंथन हुआ, जिससे प्राप्त अमृत के प्रभाव से देवगणों का तेज वापस लौटा और उन्हें स्वर्ग पुन: प्राप्त हुआ। एक व्यक्ति के गलत निर्णय के कारण भी सभ्यता को समुद्र मंथन करना पड़ता है।
(लेखिक पौराणिक पात्रों और कथानकों पर लेखन करते हैं)