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आत्म-दर्शन : ठीक नहीं है उदासीनता

- उदासीनता की संस्कृति हमारे बीच की दूरी को बढ़ा देती है।

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- पोप फ्रांसिस (ईसाई धर्मगुरु)

- पोप फ्रांसिस (ईसाई धर्मगुरु)

- पोप फ्रांसिस (ईसाई धर्मगुरु)

आज के समय की सबसे बड़ी चुनौती है दूसरे के करीब आना, उनकी स्थिति के करीब होना, उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश करना। उदासीनता की संस्कृति निकटता की दुश्मन है। उदासीनता की संस्कृति हमारे बीच की दूरी को बढ़ा देती है। इसलिए 'मैं' को 'हम' में बदलना जरूरी है। उदासीनता हमें मार डालती है, क्योंकि यह हमें दूसरों से दूर करती है। इसकी बजाय संकट से बाहर निकलने के तरीकों का ***** शब्द है निकटता। अगर लोगों में एकता या निकटता की भावना नहीं है, तो राज्यों के भीतर भी सामाजिक तनाव पैदा हो सकते हैं। संकट के समय तो पूरे शासक वर्ग को 'मैं' कहने का अधिकार नहीं है।

उन्हें 'हम' कहना चाहिए और संकट के समय एकता पर जोर देना चाहिए। जिस राजनेता या धर्माध्यक्ष के पास 'मैं' की बजाय 'हम' कहने की क्षमता नहीं है, वह संकट की स्थिति को सही तरीके से समझ ही नहीं पाएगा। ऐसे समय में आपसी विवादों को छुट्टी पर भेजा जाना चाहिए और एकता के लिए जगह बनानी चाहिए। याद रहे महामारी ने 'फेंकने की संस्कृति' को बढ़ा दिया है। इसके शिकार समाज के सबसे कमजोर सदस्य जैसे गरीब, प्रवासी और बुजुर्ग भी हो रहे हैं।