अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार तब मिल पाएगी जब सरकार आम आदमी को करों में राहत देने का काम करे। हर बजट में खास तौर से मध्यमवर्गीय व नौकरीपेशा लोगों को व्यक्तिगत आयकर में छूट की उम्मीद रहती है।
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बुधवार को आगामी वित्तीय वर्ष का जो बजट पेश करने जा रही हैं वह वर्ष २०२४ के आम चुनाव से पहले सरकार का अंतिम पूर्ण बजट होगा। जाहिर है कि बजट में चुनाव की छाया रहने वाली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा है कि हमारे बजट पर न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया का ध्यान है। ऐसे में लोगों की अपेक्षाएं भी कम नहीं हैं। बजट पूर्व आर्थिक सर्वेक्षण में जो संकेत दिए गए हैं, उनके मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध व दुनिया के देशों में मौद्रिक सख्ती की तीन बड़ी चुनौतियों के बावजूद सभी क्षेत्रों में विकास के पथ पर आगे बढ़ रही है।
दुनिया के कई देशों से पहले ही भारत ने कोरोना पूर्व की स्थिति हासिल कर ली है, जो संतोषजनक कही जा सकती है। बीते वर्ष जब 2022-23 के लिए आर्थिक सर्वे रिपोर्ट पेश हुई तब 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 8 से 8.5 फीसदी तक रहने का अनुमान लगाया गया था। अब आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि 2022-23 में विकास दर 7 फीसदी रह सकती है। तमाम उपलब्धियों के बावजूद महंगाई पर लगाम लगाने की चुनौती बरकरार है। दुनियाभर में कीमतें बढऩे के कारण रुपए पर दबाव बना रह सकता है। आर्थिक सर्वे में यह कहा भी गया है कि अंतरराष्ट्रीय कीमतों ने भारत में भी महंगाई बढ़ाई जिससे खाद्य पदार्थों के दाम में उछाल आया। संतोष इस बात का है कि खुदरा महंगाई नवंबर 2022 में घटकर फिर आरबीआइ के लक्षित दायरे में आ गई है। इसके बावजूद महंगाई पर नियंत्रण के लिए ठोस प्रयास करने होंगे। अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार तब मिल पाएगी जब सरकार आम आदमी को करों में राहत देने का काम करे। हर बजट में खास तौर से मध्यमवर्गीय व नौकरीपेशा लोगों को व्यक्तिगत आयकर में छूट की उम्मीद रहती है। स्पष्ट है कि आम आदमी के हाथ में पैसे बचेंगे तो उसकी क्रय शक्ति भी बढ़ेेगी। वित्त मंत्री के सम्मुख दोहरी चुनौती है। उन्हें सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के साथ चहुंमुखी विकास के लिए भी पर्याप्त बजट प्रावधान करने होंगे।
विचार इस पर भी करना होगा कि आखिर देश के 81 करोड़ लाभार्थियों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मुफ्त खाद्यान देने की नौबत अब भी क्यों आ रही है? जाहिर है रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में भी आवश्यक कदम उठाने होंगे। बजट से यों तो हर वर्ग की अपनी-अपनी अपेक्षाएं होती हैं पर लोगों की रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरतें प्राथमिकता से पूरी हों, इसके साथ सबको शिक्षा और स्वास्थ्य सुलभ हो, तभी समावेशी विकास संभव है।