
सामूहिकता के उत्साह से ही संवरते हैं चैता के सुर
विनोद अनुपम
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कला समीक्षक
लोक संस्कृति में गीत-संगीत के बहाने ढूंढे जाते रहे हैं। ऐसे में मधुमास कहे जाने वाले चैत की पहचान ही गीत-संगीत से होना अस्वाभाविक नहीं। हम सब सहज ही याद कर सकते हैं कि होरी गायन का समापन होली के दिन होता है और इसी के साथ चैता गायन की शुरुआत भी हो जाती है। किसी रिले रेस की तरह कि आज से होरी बंद, कल से चैता शुरू, उतरल फगुनवा, चईत चढ़ आइल हो रामा, अमवां में लउकता टिकोरवा, हो रामा। भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नया वर्ष शुरू होता है। नई फसल के घर आने का भी यही समय होता है, जिसका उल्लास चैता में स्वर पाता है।
चैता गायन की शुरुआत आदि शक्ति के स्मरण के साथ होती है। पहले सुमिरला आदि भवानी ए रामा कंठे सुरवा। कंठे सुरवा होकना सहइवा, ए रामा कंठे सुरवा। इसके बाद भूमि की आराधना। स्वभाविक भी है, चैता अमूमन मंच पर नहीं जमीन पर बैठकर ही गाने की परंपरा रही है और जिस भूमि पर बैठकर सुर साधे जा रहे हों, उसका नमन कैसे भूला जा सकता। 'ए रामा, सुमिरींले ठुइयां, सुमिरि माता भुइयां हो रामा, एही ठहिएं, आजु चइत हम गाइब हो रामा, एही ठहिएं।'
चैत का महीना बहुत से धार्मिक पर्वों एवं भावनाओं से जुड़ा है। वह विविधता चैता में भी दिखती है। इसमें राधा-कृष्ण की भी चर्चा मिलती है, शिव-पार्वती की भी और तमाम लोकगीतों की तरह अपने प्रेम-विरह, सुख-दुख को तो यहां स्वर मिलते ही हैं। 'हो रामा... ' तो चैता का टेक ही होता है, रामनवमी के दिन चैता गाने का एक विशेष उत्साह भी होता है, जो रामजन्म एवं उनके जीवन की अन्य घटनाओं से संबद्ध रहता है। 'रामा चढ़ले चइतवा राम जनमलें हो रामा, घरे-घरे बाजेला अनंद बधइया हो रामा, दसरथ लुटावे अनधन-सोनवा हो रामा, कैकयी लुटावे सोने के मुनरिया हो रामा।Ó
यह अपने आप में गायन की अद्भुत परंपरा है, जहां वीर रस और शृंगार रस समवेत होते हैं। चैता का कमाल यह है कि नगाड़ा, मृदंग और डफ जैसे वाद्य भी प्रेम का सुर बिखेरते हैं। इसका एक स्वरूप चैती भी है, जो अकेले भी गाई जाती है, लेकिन हमारे तमाम लोक गीतों की तरह चैता की भी विशेषता इसकी सामूहिकता है। हालांकि शायद अब भी कहीं-कहीं औपचारिकता बच रही हो, कुछेक वर्ष पहले बिहार और उत्तरप्रदेश के सड़क मार्ग से गुजरते हुए कई स्थानों पर सड़कों के किनारे दरी-चादर बिछाकर सैकड़ों लोगों को एक साथ चैता गाते देखा और सुना जा सकता था, अहले सुबह तक। चैता गायन की गति और उत्साह का यही कमाल है कि सारे काम निपटा कर जब रात में गायन की शुरुआत होती तो सूर्योदय कब हो जाता शायद ही लोगों को अहसास हो पाता। चैता का कमाल यह है कि इसके समूह में हर कोई गायक है, हर कोई वादक है। इसके उत्साह का अहसास कोई सिर्फ चैता सुनकर नहीं कर सकते। वास्तव में उस ऊर्जा, उस आनंद , उस उत्साह का अहसास बगैर उस समूह का हिस्सा बने नहीं किया जा सकता। क्या अपने त्योहारों की तरह अपने लोकगीतों को भी साथ लेकर हम नहीं चल सकते?
Published on:
10 Apr 2022 01:41 pm
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