वर्ष 2015 से अब तक जुलाई के सात माह धरती पर सबसे गर्म रहे हैं। एनओएए के नेशनल सेंटर्स फॉर इन्वायरनमेंटल इंफॉर्मेशन ने यह रिपोर्ट जारी कर कहा कि वर्ष 2021 के दुनिया के दस सबसे गर्म सालों की सूची में शामिल होने की संभावना है। जुलाई में वैश्विक स्तर पर धरती का तापमान 20वीं सदी के औसत तापमान से 1.40 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा, जिससे जुलाई माह अब तक का रिकॉर्ड गर्म महीना बन गया। पिछला रिकॉर्ड वर्ष 2017 और 2020 के जुलाई महीनों के नाम रहा। दुनिया भर में धरती का तापमान उत्तरी गोलाद्र्ध में आम तौर पर रहने वाले तापमान से अधिक रहा। जुलाई 2021 में एशिया में धरती का तापमान औसत से 1.61 डिग्री सेल्सियस रहा। 1910 के बाद यह एशिया में सबसे गर्म जुलाई रहा।
जलवायु विसंगतियां और जुलाई 2021-
रिपोर्ट में जुलाई 2021 की कुछ जलवायु विसंगतियों और घटनाओं का जिक्र किया गया है:
आर्कटिक में बर्फ – जुलाई में आर्कटिक सागर में बर्फ का स्तर 1981-2010 के औसत से 18.8 प्रतिशत नीचे रहा।
उत्तरी अमरीका: महाद्वीप में जुलाई में छठी बार सर्वाधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया।
दक्षिण अमरीका: महाद्वीप में दसवीं बार ऐसा हुआ है कि जुलाई माह सबसे गर्म रहा और कई मौसम परिस्थितियां औसत से अधिक खराब रहीं।
यूरोप: यूरोप में जुलाई माह दूसरी बार सबसे अधिक गर्म रहा। इससे पूर्व 2010 में जुलाई माह सर्वाधिक गर्म रिकॉर्ड किया गया। यूरोप के कई हिस्से गर्म लहर की चपेट में
रहे, जिससे जुलाई के अंत तक तापमान 40 डिग्री से अधिक रहा।
अफ्रीका: अफ्रीका में जुलाई सातवीं बार सबसे गर्म रहा।
एशिया: एशिया में साल का जुलाई माह सबसे गर्म रहा। इससे पहले 2010 का जुलाई सबसे गर्म रहा था।
ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया में चौथी बार जुलाई माह सर्वाधिक गर्म रहा। ऑस्ट्रेलिया में ही दक्षिण ऑस्ट्रेलिया, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया और उत्तरी प्रांत में तीसरी बार जुलाई माह सबसे गर्म पाया गया।
तापमान बढऩे के असल मायने-
कई सालों से बहुत सी रिपार्टों ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को लेकर चेताया है, साथ ही आगाह किया है कि क्यों विश्व का तापमान 1.5 डिग्री से ज्यादा नहीं बढऩे देना चाहिए। वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी पर अंकुश इसलिए बेहद जरूरी है क्योंकि नासा के अनुसार, यदि पृथ्वी 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म हो जाएगी तो पृथ्वी की करीब 14 प्रतिशत आबादी कम से कम हर पांच साल में एक बार तीव्र लू की चपेट में आ सकती है। और यदि तापमान में 2 डिग्री से ज्यादा की बढ़ोतरी हो जाएगी तो करीब 37 प्रतिशत आबादी को भीषण गर्मी और भीषण लू का सामना करना पड़ेगा।
बढ़ेंगी जंगलों में आग की घटनाएं-
अगर विश्व का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाए तो पृथ्वी के बड़े भूभाग में गर्म हवाएं बहने लगेंगी। एक और तरह से ये गर्म हवाएं विध्वंसक साबित हो सकती हैं – इनसे जंगलों में आग लगने का खतरा और बढ़ जाएगा। इससे संपत्ति और इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचेगा व बस्तियों के निर्जन होने का खतरा बढ़ जाएगा। ग्रीस, तुर्की और पश्चिमी अमरीका में हाल ही जंगलों में ऐसी आग लगी थी। गर्मी के महीनों में जंगलों में आग लगना जरा भी असामान्य नहीं है और पारिस्थितिकी अनुक्रम के लिए महत्त्वपूर्ण भी है, पर ऐसी घटनाओं का तेजी से बढऩा चिंता का कारण है।