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इंसानों के साथ टकराव को शार्क का हमला क्यों माना जाए

आजकल ऑस्ट्रेलिया के कुछ अधिकारियों ने शार्क और इंसानों के परस्पर संपर्क में आने की तमाम घटनाओं को 'हमला' कहना बंद करने का विकल्प चुना है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह बदलाव बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। हर मामले को 'हमला' करार देना गलत है

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इंसानों के साथ टकराव को शार्क का हमला क्यों माना जाए

इंसानों के साथ टकराव को शार्क का हमला क्यों माना जाए

जोनाथन एडवड्र्स ('मॉर्निंग मिक्स' टीम रिपोर्टर, द वाशिंटन पोस्ट)

शोधकर्ताओं का कहना है कि खतरनाक और खूनी शार्क मछलियों के हमलावर होने और तैराकों को अपना शिकार बना लेने वाली फिल्मों के प्रदर्शन ने समुद्री परभक्षियों की छवि को खराब किया है। इसीलिए आजकल ऑस्ट्रेलिया के कुछ अधिकारियों ने शार्क और इंसानों के परस्पर संपर्क में आने की तमाम घटनाओं को 'हमला' कहना बंद करने का विकल्प चुना है। इस शब्द के विकल्प में वे 'घटनाएं', 'काटने' जैसी शब्दावली का उपयोग करने लगे हैं। कुछ मामलों में, वे इसे 'प्रतिकूल हालात में सामना होना' कह रहे हैं। लेकिन, कुछ लोग, जिनका शार्क से सामना हुआ है, इस वैकल्पिक शब्दावली से खुश नहीं हैं। बाइट क्लब (शार्क के हमलों में बचे लोगों का एक समूह) के प्रवक्ता डेव पियर्सन का कहना है कि 'आप इसे बहुत ज्यादा साफ-सुथरा नहीं कर सकते... यदि किसी शार्क के हमले का सामना कर चुके शख्स के अनुभव को कम करके आंका जाता है तो यह उसकी पीड़ा का सम्मान न करने जैसा होगा।

हाल के एक अध्ययन में सामने आया है कि खुले समुद्रों में पाई जाने वाले शार्क मछलियों की संख्या पिछले पचास वर्षों में 70 प्रतिशत कम हुई है और तीन-चौथाई प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। इसका मुख्य कारण कमर्शियल फिशिंग है। ऑस्ट्रेलिया में मरीन कंजर्वेशन सोसाइटी से जुड़े शार्क जीवविज्ञानी लियोनार्डो गाइडा कहते हैं कि मई में हुई एक संगोष्ठी में भाग लेने वालों ने 'हमला' शब्द के स्थानापन्न के बारे में पहली बार सरकार को जानकारी दी थी। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह बदलाव बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। हर मामले को 'हमला' करार देना गलत है।

दरअसल, 1933 में सिडनी के एक सर्जन के एक लेख ने इस धारणा को मजबूत करने में मदद की कि जब शार्क लोगों को काटती है, तो यह 'आदमखोर हमला' होता है। यही धारणा 1975 में बनी स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म 'जॉज' में दिखी। यह सच नहीं था, लेकिन सरकारी अधिकारी गलत धारणा को आगे बढ़ाते गए। सिडनी विश्वविद्यालय के वरिष्ठ व्याख्याता क्रिस पेपिन-नेफ कहते हैं कि शार्क के इंसानों पर हमले की 40 प्रतिशत घटनाओं में इंसान चोटिल नहीं होता है। शार्क ने कभी इंसान के शिकार की कोशिश की हो, ऐसा सुनने में नहीं आता।