20 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

कला के विभिन्न स्वरूपों की बुनियाद है चिंतन

कला और कलाकार: विषय के प्रति निष्ठा है जरूरी

3 min read
Google source verification

image

Nitin Kumar

Jul 27, 2023

कला के विभिन्न स्वरूपों की बुनियाद है चिंतन

कला के विभिन्न स्वरूपों की बुनियाद है चिंतन

आर.बी. गौतम
कलाविद और वरिष्ठ पत्रकार
.......................................

हमारा चिंतन दो ध्रुवों पर आधारित रहता है। इनमें एक को यथार्थता कहा जा सकता है तो दूसरे को कल्पनाशीलता। यथार्थता के माध्यम से हम बाह्य रूपों को प्राप्त करते हैं तो कल्पनाशीलता के माध्यम से आंतरिक जगत में बाह्य जगत से प्रत्यक्षीकृत विषय-वस्तुओं का खेल खेलते हैं। सही मायने में हमारा चिंतन इन दो धु्रवों की मिश्रित प्रक्रिया से ही जुड़ा होता है। अधिकांश देशों में चिंतकों को समुचित सम्मान मिलता है। वस्तुत: कला के विभिन्न स्वरूपों की बुनियाद ही चिंतन है। इस चिंतन के अभाव में कोई भी कला हो, कला की श्रेणी में नहीं रख सकते। इसीलिए साहित्यकार, संगीतज्ञ व चित्रकार भी सृजनात्मकता में ऐसे ही चिंतन में संलग्न होते हैं। यदि पूछा जाए कि आखिर वह कौन-सा गुण है जिसके कारण किसी कलाकार को सृजनात्मक गुणों से संपन्न समझा जाता है, तो सृजनात्मकता का गुण ही वह गुण है जो किसी अद्भुत कृति को जन्म देता है।

चिंतन की प्रथम अवस्था जागरूक कार्यकाल की होती है जिसमें चिंतक विभिन्न बातों का संकलन करते हैं, समस्या को परिभाषित करते हैं तथा समाधान के प्राथमिक प्रयास करते हैं। इसके बाद का समय एक अचेतन अवस्था के काल का समय होता है, जिसमें समस्या समाधान की दिशा में वांछनीय तत्वों का चयन होता है और अनुपयुक्त को छोड़ दिया जाता है। यही वह प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप परिकल्पनाओं का जन्म होता है। जाहिर तौर पर ये ही समस्या का संभावित उत्तर होती हैं। तीसरी अवस्था परिकल्पनाओं के परीक्षण की होती है, जिसमें चिंतक अपने कृतित्व की रूपरेखाएं बनाता है। सीधे तौर पर अपने ज्ञान का उपयोग करके वह कृति का निर्माण करता है। मनोवैज्ञानिक पैट्रिक ने इस तथ्य के अध्ययन के लिए कवि और चित्रकार का चयन किया। कवि को एक लैंडस्केप दिया गया, जिसके आधार पर उसे कविता लिखने और एक चित्रकार को एक कविता के आधार पर चित्रकृति बनाने का आग्रह किया गया। इस प्रयोग से पैट्रिक ने यह निष्कर्ष निकाला कि सृजनात्मक चिंतन कलाकार को परिस्थिति से परिचित कराता है और उसे अपने परिवेश को पूर्ण रूप से समझने का अवसर देता है। उसे अपने कृतित्व की रूपरेखा अधिक स्पष्ट होती है और वह विषय से तादात्म्य स्थापित करता है। वह अपने स्तर पर ही आवश्यकतानुसार परिवर्तन और परिमार्जन करता है।

सृजनात्मक चिंतन नितांत वैयक्तिक होता है। कलाकार अपनी कृति की संरचना से पहले संबंधित ज्ञान का अर्जन करता है। वह अपनी रुचि अनुसार विषय का चयन करता है और विचार मंथन करता है। इसमें उसके अनुभव काफी हद तक सहायक होते हैं। एक अहम तथ्य यह भी है कि विषय के प्रति निष्ठा के बिना सृजनात्मक चिंतन संभव नहीं होता। चिंतन, अचेतन रूप में होता है जबकि चेतन अवस्था में विषय का चयन होता है। कलाकार अपने चिंतन की एकाग्रता के लिए आसपास के वातावरण से प्रेरणा लेते हैं। वैसे भी कला सदैव बहुआयामी रही है और कल्पना इन आयामों को प्रकट करने का माध्यम। यह कहना भी आवश्यक होगा कि मात्र किसी अन्य कलाकार का अनुसरण ही किसी को कला में पारंगत नहीं करता बल्कि सृजनशीलता के माध्यम से ही कोई कलाकार अपने सृजन को सत्कार दिला सकता है। कल्पना के योगदान की चर्चा करते हुए एन्टर हर्जविंग ने अपनी पुस्तक ‘द हिडन आर्ट ऑफ आर्ट’ में स्पष्ट किया कि विश्लेषणात्मक अभिवृत्ति कल्पना को कम करती है और कला का निर्माण अवरुद्ध होता है। समसामयिक कला में इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इसमें वस्तुजगत को मात्र हल्के संकेतों में व्यक्त किए जाने की बात कही गई है।

कल्पना, यथार्थजगत से संकेत लेती है। अचेतन में ऐसे नवीन संकेतों का निर्माण होता है। फ्रायड का स्वप्न विश्लेषण सिद्धांत इसकी पुष्टि करता है। स्वप्न में हमारा अचेतन मस्तिष्क जो दृश्य दिखलाता है वे कल, काल और स्थान की भिन्नता को एक ही समय में व्यक्त कर देते हैं। जो कुछ हम देखते हैं वह वस्तुजगत का प्रतीकात्मक रूप ही होता है। यही सृजन की श्रेणी में शुमार होता है। कहा जा सकता है कि कलाकार के चिंतन की प्रक्रिया की शुरुआत एक साधारण मनुष्य की भांति होती है। पर बाद में उसमें कल्पनाशीलता का सृजनात्मक पक्ष भी शामिल हो जाता है।