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आख्यान : संसार की रक्षा के लिए विष पीने का साहस ही शिवत्व की योग्यता

नागरी जीवन से दूर एकान्त पर्वत पर शिव का तड़क-भड़क रहित पारिवारिक जीवन व सामान्य जीवनशैली ही भारतीय लोक का आदर्श।

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आख्यान : संसार की रक्षा के लिए विष पीने का साहस ही शिवत्व की योग्यता

आख्यान : संसार की रक्षा के लिए विष पीने का साहस ही शिवत्व की योग्यता

- सर्वेश तिवारी श्रीमुख

(पौराणिक पात्रों और कथानकों पर लेखन)

शास्त्रों से लेकर लोक तक, शिव के असंख्य स्वरूप दिखते हैं। दुर्दांत राक्षसों का अंत करते महायोद्धा शिव, सहजता से प्रसन्न हो कर सब कुछ दे देने वाले कृपालु भोलेनाथ शिव, अर्धांगिनी को मनाते-समझाते रहने वाले भोले पति शिव, माता सती की मृत्यु के बाद उनके शव को कंधे पर उठा कर विलाप करते शिव, और कभी युगों तक स्वयं को संसार और संसारिकता से दूर शांत रहने वाले तपस्वी शिव। पर इन समस्त रूपों में मुझे समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को अपने कंठ में उतारते शिव का स्वरूप सबसे अधिक प्रभावित करता है। उनका वह स्वरूप समस्त पौराणिक इतिहास का सबसे भव्य और विराट स्वरूप है, ऐसा भव्य उदाहरण समूची सृष्टि में अन्यत्र कहीं नहीं। एक दिन शव हो जाना ही सृष्टि के प्रत्येक जीव की नियति है, किन्तु मनुष्य यदि शिव की भांति संसार की रक्षा के लिए विष पीने का साहस कर ले तो उसे शिवत्व प्राप्त होता है। उसके बाद उसकी देह का नाश भले हो जाए, उसके व्यक्तित्व का नाश नहीं होता।

शिव अर्धनारीश्वर हैं। अर्थात वे माता शक्ति को अपने से अलग व्यक्ति नहीं मानते, उन्हें अपने शरीर का ही आधा हिस्सा मानते हैं। शक्ति के बिना शिव शव हैं। क्या यह स्त्री सम्मान का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण नहीं? माता पार्वती भी उतनी ही शक्तिशाली हैं जितने स्वयं शिव हैं। वे शिव के समान ही करुणामयी हैं, और शिव के समान ही महान योद्धा भी। शिव पार्वती की रक्षा करते हैं, पार्वती शिव की रक्षा करती हैं। माता पार्वती शिव के शरीर का आधा हिस्सा हैं, किन्तु इससे उनका स्वतंत्र अस्तित्व तनिक भी प्रभावित नहीं होता। वे लोक में शक्ति की देवी के रूप में स्वतंत्र रूप से पूजी जाती हैं। प्रत्येक शिव मंदिर के पास माता का भी मन्दिर होता है, पर माता की हर पिंडी के पास शिव का मंदिर आवश्यक नहीं। स्त्री स्वतंत्रता का सृष्टि में इससे सुन्दर उदाहरण और कहीं नहीं।

शिव एक सद्गृहस्थ की भांति जीवन जीने वाले देव हैं। एक सामान्य-सा परिवार है उनका भी, जिसमें वे स्वयं हैं, उनकी पत्नी हैं और दो पुत्र हैं। नागरी जीवन से दूर एकान्त पर्वत पर उनका परिवार संसाधन विहीन जीवन जीता है। कोई तड़क-भड़क नहीं, कोई अनावश्यक चमक नहीं। विचार करें तो प्राचीन काल से यही सामान्य भारतीय जीवनशैली रही है, इसीलिए लोक को भगवान शिव अपने-से लगते हैं। शिव परिवार भारतीय लोक का आदर्श परिवार है।