
महात्मा गांधी ने अपने जीवन के अंतिम दशक वर्धा के सेवाग्राम आश्रम में बिताए थे। मिट्टी, पत्थर, बांस और खपरैल से बना उनका 'आदि निवास' वर्ष 1936 में स्थानीय संसाधनों से जिस हाल में बना था, आज भी उसी तरह साबुत खड़ा है। उसी में महात्मा गांधी सपरिवार रहते थे। उसी में एक कोने में संत तुकड़ो जी और खान अब्दुल गफ्फार खान भी रहते थे। गांधीजी को खुले में रहना पसंद था और वे घर के बाहर आकाश तले सोते थे। सभी एक साथ भोजन करते थे और सुबह-शाम एक साथ बैठ कर प्रार्थना करते थे। कुल मिला कर निजी और सार्वजनिक के बीच कोई साफ-साफ विभाजक रेखा नहीं थी। लोक-जीवन में रम रहे गांधीजी ने खुलेपन को खुशी-खुशी अंगीकार किया था। तभी वे यह कहने का साहस भी जुटा सके थे कि 'मेरा जीवन एक खुली किताब है।' निज और पर ( मैं और तुम ) का भेद मिटा कर सार्वजनिक जीवन की जो जगह उन्होंने बनाई, वह सबको उपलब्ध थी। उसमें सबका प्रवेश सम्भव था। उसे वह समय की रूढ़ियों से मुक्त करने की भी कोशिश करते रहे। निजता को खोते हुए व्यापक लोक को अपनाने में उन्होंने देखा कि इसके लिए त्यागपूर्वक जीवन जीना ही एक मात्र उपाय है।
Updated on:
16 Aug 2022 09:23 pm
Published on:
16 Aug 2022 06:06 pm
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