
आए दिन होने वाले भीषण अग्निकांड और उनसे होने वाली जन-धन की हानि साफ बताती है कि न तो आग से बचाव के उपायों के मामले में गंभीरता बरती जा रही है और न ही अग्निकांड के बाद राहत कार्यों में तत्परता की तरफ ज्यादा ध्यान दिया जा रहा। यही वजह है कि छोटी सी चिंगारी भी लापरवाही के चलते भीषण अग्निकांड का रूप ले लेती है। रविवार को ही हैदराबाद में चारमीनार के पास एक इमारत में आग लगने से हुई 17 जनों की मौत हो या फिर महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में टेक्सटाइल मिल में लगी आग से आठ जनों की मौत, दोनों ही मामलों में ऐसी ही गंभीर लापरवाही सामने आई है।
सुरक्षा उपायों का समुचित बंदोबस्त न होने से तो ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी होती ही है, जागरूकता का अभाव भी इस तरह की घटनाओं के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। रही-सही कसर आपदा प्रबंधन की कमजोरी से पूरी हो जाती है। शहरीकरण की दौड़ में बहुमंजिला इमारतें बनाने की होड़ तो खूब मची हुई है, लेकिन कोई बड़ा अग्निकांड होने पर इन इमारतों पर बचाव दल समय पर पहुंच पाएगा अथवा नहीं, इसका ध्यान रखा ही नहीं जाता। इमारतों में इस्तेमाल होने वाली कई ज्वलनशील वस्तुओं के कारण भी बिजली के शॉर्ट सर्किट से लगी आग विकराल रूप ले लेती है। पिछले वर्षों में जितने भी भीषण अग्निकांड हुए हैं, उनमें से ज्यादातर में बड़ी वजह यही सामने आई। जाहिर है कि न तो इमारतों के निर्माण के समय पुख्ता सावधानी बरती जाती और न ही लापरवाह व्यवहार पर अंकुश लगाया जाता। माचिस की तीली या जलती हुई सिगरेट लापरवाही से फेंक देने से भी बड़े अग्निकांड हो जाते है। दरअसल, आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जुटाने और इमारतों को सजाने-संवारने में तो खूब पैसा खर्च किया जाता है, लेकिन अग्नि सुरक्षा के मुद्दे पर ध्यान ही नहीं दिया जाता। खासतौर से बहुमंजिला इमारतों का निर्माण करते समय एहतियाती उपायों की अनदेखी ही होती है। यही वजह है कि आग बुझाने के त्वरित प्रयासों के बजाय अग्निशमन दस्ते का इंतजार किया जाता है। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इतना ही नहीं, इमारतें बनाते समय इस बात का भी ध्यान नहीं रखा जाता कि आग लगने पर अग्निशमन वाहन भी पहुंच पाएंगे अथवा नहीं। कई बार तो आग को हवा देने वाले कारणों का पता सब कुछ स्वाह होने तक नहीं चल पाता। अग्निशमन उपायों की एनओसी जारी करने वाली संस्थाओं में भ्रष्टतंत्र हावी होने से भी इस तरह के हादसे होते हैं।
ऐसी घटनाओं के समय हमारी भूमिका भी जिम्मेदार नागरिक के रूप में होनी चाहिए, लेकिन आवश्यक प्रशिक्षण के अभाव में लोगों के पास तमाशबीन बनने के अलावा कोई चारा नहीं होता। हर गांव-शहर में स्वयंसेवक के तौर पर कुछ लोगों को ऐसे हालात से शुरुआती तौर पर निपटने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि आग के विकराल रूप लेने से पहले उसे बुझाया जा सके।
Published on:
20 May 2025 08:19 pm
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