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Editorial: जानलेवा प्रदूषण

अधिकांश महानगरों में खतरनाक प्रदूषण से आम आदमी का सांस लेना दूभर हो गया। अस्थमा रोगियों की तादाद बढ़ रही है।

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raghuveer singh

Nov 05, 2016

लगता है प्रदूषण पर नियंत्रण पाना सरकारों की प्राथमिकतओं में दूर-दूर तक शुमार नहीं है। होता तो प्रदूषण यूं खतरनाक स्तर तक नहीं पहुंच गया होता। दीवाली के बाद उत्तर भारत के राज्यों में पटाखों के धुंए ने इस प्रदूषण की आग में घी का काम किया है।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी)ने फिर सख्ती दिखाते हुए दिल्ली से 10 साल पुराने डीजल वाहन हटाने व केंद्र और दिल्ली समेत राजस्थान, पंजाब और हरियाणा सरकारों से प्रदूषण पर काबू पाने के तुरंत कदम उठाने को कहा है। एनजीटी, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की फटकारों के बावजूद सरकारें सुधरना नहीं चाहती तो मतलब साफ है कि उन्हें न्यायाधिकरण या अदालतों की परवाह रह ही नहीं गई। फटकार पर दिखाने के लिए बैठक आयोजित करके रिपोर्ट भेज दी जाती है।

फिर इंतजार किया जाता है अगली बार लताड़ पडऩे का। देश के अधिकांश महानगर खतरनाक प्रदूषण की चपेट में हैं जहां आम आदमी का सांस लेना दूभर हो गया। अस्थमा रोगियों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। वाहनों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है लेकिन उसकेप्रदूषण को रोकने की चिंता किसी को नहीं।

प्रदूषण से बचाव के लिए दिल्ली सरकार के एक दिन छोड़कर एक दिन वाहन चलाने के फार्मूले की खामियों को सुधार कर इसे दिल्ली ही नहीं समूचे महानगरों में लागू किए जाने की जरूरत है। सरकार के साथ नागरिकों को भी इस गंभीर होती समस्या को रोकने में भागीदारी निभाने के लिए आगे आना होगा। अपने स्वास्थ्य को लेकर यदि हम स्वयं चिंतित नहीं होंगे तो दूसरे से उम्मीद करना बेकार है।

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