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संपादकीय : चांद की सतह पर भारतीय को उतारने की ओर कदम

चंद्रमा को पाने और समझने की इंसान की चाह कोई आज की नहीं है। दुनिया में चंद्रमा की सतह का अध्ययन करने की ही नहीं, बल्कि समूचे सौरमंडल का अध्ययन करने की होड़ मची है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने भी पिछले सालों में इस दिशा में सफलता के झंडे गाड़े हैं। […]

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चंद्रमा को पाने और समझने की इंसान की चाह कोई आज की नहीं है। दुनिया में चंद्रमा की सतह का अध्ययन करने की ही नहीं, बल्कि समूचे सौरमंडल का अध्ययन करने की होड़ मची है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने भी पिछले सालों में इस दिशा में सफलता के झंडे गाड़े हैं। हमारे चंद्रयान मिशनों की सफलता हर भारतीय का मस्तक गर्व से ऊंचा करने वाली रहती है। वर्ष 2023 में चंद्रयान-3 की सफलता के बाद तथा चंद्रयान-4 की तैयारियों के बीच केन्द्र सरकार ने अब चंद्रयान-5 को भी मंजूरी दे दी है। माना जा रहा है कि यह मिशन चांद पर इंसानों को भेजने के भारतीय वैज्ञानिकों के लक्ष्य को पूरा करने में मददगार होगा। चंद्रमा के दक्षिण धु्रव पर उतरे हमारे विक्रम लैंडर ने कई अहम जानकारियां दी हैं। खासतौर से वहां के तापमान और इंसान के उतरने पर मिलने वाली परिस्थितियों का इसके जरिए अध्ययन करना संभव हो पा रहा है। चंद्रयान-4 मिशन का प्रक्षेपण वर्ष 2027 में होने की उम्मीद है। इसका काम चांद की मिट्टी व चट्टानों के नमूने एकत्र करने व आगे के अध्ययन के लिए उन्हें वापस पृथ्वी पर लाना होगा।
इसरो प्रमुख ने जो जानकारी दी है उसके मुताबिक चंद्रयान मिशन-5 को जापान के सहयोग से पूरा किया जाएगा। खास बात यह भी है कि चंद्रयान-5 का रोवर, चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर के मुकाबले दस गुणा ज्यादा भारी होगा। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि भारी वजन के कारण चांद की ऊबड़-खाबड़ सतह पर लैंडिंग के दौरान संतुलन बना रहे। इससे रोवर में अत्याधुनिक तकनीक की ज्यादा से ज्यादा मौजूदगी भी रह सकेगी। अब तक सिर्फ अमरीका ही चांद पर इंसान भेजने के मिशन में सफल हो पाया है। हालांकि उसके अपोलो मिशन को भी आधी सदी से ज्यादा का वक्त हो चुका है। तब से अब तक तकनीक के मामले में वैज्ञानिक कोसों आगे जा चुके हैं। ऐसे दौर में जब दुनिया विकसित कहे जाने वाले देश, चंद्रमा को बेस पाइंट बनाते हुए अंतरिक्ष अनुसंधान में जुटे हैं, भारतीय वैज्ञानिकों के इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों को मील का पत्थर कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि जिस तरह से हम आगे बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए वर्ष 2040 तक एक भारतीय चंद्रमा की सतह पर उतर सकेगा। हमें चंद्रमा को लेकर लगातार खोज अभियान इसलिए भी जारी रखना है क्योंकि चंद्रमा की सतह पर किसी भारतीय को उतारने का लक्ष्य भी पूरा करना है। निश्चय ही हम इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।