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पर्यावरण के लिए जरूरी है वस्त्र पुनर्चक्रण पर फोकस

सामयिक: कुल अपशिष्ट में तीसरा सबसे बड़ा अवयव वस्त्र, निपटना होगा भविष्य की इस आपदा से

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जयपुर

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Patrika Desk

Oct 31, 2022

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डॉ. विवेक एस. अग्रवाल
संचार और शहरी स्वास्थ्य विशेषज्ञ
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हाल ही दीपावली गुजरी है और कोरोना काल की पाबंदियों के बाद स्वच्छंद उत्सव उल्लास के मध्य चहुंओर खरीदारी की धूम बनी रही। खरीदारी के इस दौर में अनेकानेक वस्तुएं क्रय की गईं, जिनमें आवश्यक रूप से परिजन के लिए नए वस्त्र भी शामिल रहे। जहां अधिसंख्य जनों ने नए वस्त्रों के साथ दीपावली का त्योहार मनाया, वहीं एक चौथाई ऐसे भी थे जिन्होंने अपने पुराने वस्त्रों या अन्य घरों में सफाई के दौरान बेकार पाए गए, फैशन के दौर में पुराने पड़ चुके, आकार-प्रकार में छोटे या बड़े, काम में न आने वाले ऐसे कपड़ों के साथ ही दिवाली मनाई जो तथाकथित दान से प्राप्त हुए थे। ये एक चौथाई लोग अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण सहायक की भूमिका निभा गए। ऐसा इसलिए क्योंकि दीर्घकाल में अनुपयोगी वस्त्र पर्यावरण को आघात भी पहुंचाते हैं।

एक मोटे अनुमान के अनुसार भारतीय जनता का कपड़ों पर औसत व्यय सन् 2018 के 3900 रुपए के मुकाबले प्रतिवर्ष 13-14 प्रतिशत की वृद्धि दर से सन् 2023 में 6400 रुपए प्रति व्यक्ति तक पहुंच जाएगा। उल्लेखनीय है कि आमदनी की दर प्रतिवर्ष 7-9 प्रतिशत तक ही सीमित है। आश्चर्यजनक रूप से लगभग 68 प्रतिशत आबादी प्रति माह कोई न कोई वस्त्र क्रय करती है जिसमें 88 प्रतिशत बाह्य वस्त्र होते हैं। वस्त्र क्रय करने की वृद्धि दरों के पीछे सबसे बड़ा कारण है त्वरित फैशन का दौर। कुछ वर्षों पूर्व तक त्योहार या मौसम के अनुरूप फैशन का दौर होता था, किन्तु पाश्चात्य ब्रांड के आगमन के साथ मानो हर सप्ताह नए फैशन की धारणा चल निकली है। इस प्रतिस्पर्धा में चाहे-अनचाहे देशी ब्रांड को भी सम्मिलित होना पड़ता है और इस सबका हश्र है भरपूर वस्त्र अपशिष्ट।

पूरे विश्व में पिछले कुछ वर्षों से प्लास्टिक चिंता का विषय बना हुआ है और उसे प्रतिबंधित-सीमित करने के लिए कानून भी बनाए जा रहे हैं, पर वस्त्रों से उत्पन्न कूड़े की ओर अभी अनभिज्ञता, अज्ञानता, अवहेलना व्याप्त है। ज्ञात हो कि कुल अपशिष्ट में तीसरा सबसे बड़ा अवयव वस्त्र ही होते हैं। देश में यदि न्यूनतम स्तर पर वस्त्र अपशिष्ट की गणना करें तो भी यह करीब दस लाख टन प्रतिवर्ष है। हर घर से निकलने वाले कूड़े में औसतन 3 प्रतिशत वस्त्र अपशिष्ट पाया जाता है। कुल उत्पादित वस्त्रों में से आधे से अधिक तो नष्ट होने के लिए यों ही छोड़ दिए जाते हैं। स्थिति की विकरालता भविष्य में वस्त्र अपशिष्ट के ढेरों की ओर इशारा करती है। क्योंकि वर्तमान में एक प्रतिशत से भी कम वस्त्रों का पुन: उपयोग हो पाता है। पुन:चक्रण के लिए भी मझले व छोटे उद्योग ही सक्रिय हैं। इसकी समुचित व्यवस्था पानीपत और तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों के अलावा उपलब्ध ही नहीं है। विडम्बना तो यह है कि वस्त्र उद्योग में बुवाई, सिंचाई, उपज, प्रसंस्करण, बनाई, सिलाई से लेकर निष्पादन तक हर स्तर पर प्रदूषण है। यदि वर्तमान स्तर को ही एक अनुमान मानें तो पूरे विश्व के एक चौथाई कार्बन के पीछे वस्त्र उद्योग ही है। इस उद्योग का अनुपयोगी कच्चा माल सन् 2050 तक 30 करोड़ टन के स्तर को छू जाएगा। इन्हीं वस्त्रों के कारण उत्सर्जित कार्बन से लगभग 10 प्रतिशत प्रदूषण होता है।

प्रदूषण के अहम कारक के रूप में जब प्लास्टिक की चर्चा की जाती है तो उसके नॉन-बायोडिग्रेडेबल चरित्र को सबसे बड़ा दोषी माना जाता है। किन्तु वस्त्र उससे भी एक कदम आगे हैं क्योंकि कपास की खेती के साथ ही पानी, कीटनाशक, रासायनिक खाद आदि का अपव्यय शुरू हो जाता है। वस्त्र उत्पादन के हर चरण में बहुतायत में रसायन, पानी आदि प्रयुक्त होते हैं। एक अनुमान के अनुसार एक टी-शर्ट के निर्माण में लगभग 2700 लीटर व एक जीन्स के निर्माण में 3781 लीटर पानी इस्तेमाल किया जाता है, जिससे एक व्यक्ति की लगभग ढाई वर्ष की पेयजल जरूरतें पूरी हो सकती हैं। भारत में स्थिति की भयावहता का अनुमान लगाते हुए वस्त्र उद्योग के लिए सन् 1986 में उत्सर्जन मापदंड तय किए गए थे जो अन्य नियमों की तरह पूर्णतया अमल में नहीं आए और परिणामस्वरूप वस्त्र उद्योगों के समीपस्थ जल संसाधनों, भूमि, आबादी एवं वायु को दुष्प्रभाव झेलने पड़ रहे हैं। प्लास्टिक की तरह ही कपड़ों में प्रयुक्त रंग व रसायन, प्लास्टिक की अपेक्षा अधिक आसानी से पानी में घुलते हुए नदी, समुद्र आदि में ऑक्सीजन के स्तर को कम करते हैं और जीवों के विपरीत कार्य करते हैं। प्रकृति के मुख्य रूप से तीन अवयवों जल, जमीन व वायु पर वस्त्र अपशिष्ट नष्टता के कगार तक प्रभाव छोड़ता है। हमें इस भविष्य की आपदा से निपटने के लिए समग्रता के साथ कार्ययोजना को अंजाम देना होगा। उत्तरदायित्व सरकार या उद्योगों का ही नहीं है, बल्कि हर उपयोगकर्ता को सजग होना होगा।

उद्योगों के स्तर पर भी देश के 16 नामी ब्रांड ने सन् 2019 में स्वच्छ पर्यावरण के लिए परियोजना ‘श्योर’ शुरू की थी, जिसमें सस्टेनेबल क्रय नीति से लेकर उपभोक्ता तक जागरूकता का संकल्प लिया गया था। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण ‘वितरण शृंखला’ को सन् 2025 तक ‘सस्टेनेबल शृंखला’ बनाने का संकल्प भी है। हमें भी यह संकल्प लेना चाहिए कि उपलब्ध वस्त्रों का समुचित रूप से उपयोग करेंगे और वस्त्र की सम्पूर्ण जीवन शृंखला तक गर्व के साथ उपयोग करेंगे। पुराने वस्त्र किसी अन्य को उपयोग के लिए देना दरअसल दान नहीं, कचरा प्रबंधन है।