
वर्ष २०७० तक नेट जीरो का लक्ष्य पाने के सूत्र
रामनाथ वैद्यनाथन
एवीपी व हेड, एनवॉयरमेंटल सस्टेनेबिलिटी, गोदरेज इंडस्ट्रीज लिमिटेड एंड एसोसिएट कंपनीज
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो में आयोजित सीओपी-26 में, 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जक होने की भारत की महत्त्वाकांक्षी प्रतिज्ञा की घोषणा की थी। नेट जीरो का सीधा सा मतलब है कि वातावरण में मौजूद ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में इजाफा नहीं होने देना। इसके मूल में, इसमें स्वच्छ ईंधन और अधिक कुशल प्रौद्योगिकियों में पारगमन या उनका उपयोग शुरू करना शामिल है, ताकि उत्सर्जन को शून्य की ओर ले जाया जा सके और अवशिष्ट उत्सर्जन को शुद्ध करने के लिए कार्बन पृथक्करण का उपयोग किया जा सके। दक्षिण एशिया में वैश्विक स्तर पर अग्रणी और शुद्ध सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की घोषणा एक स्वागत योग्य कदम मानी गई है, लेकिन हम अपने 2070 के लक्ष्य तक पहुंचें, इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। कुछ सूत्र यह लक्ष्य हासिल करने में मददगार साबित हो सकते हैं।
अभी 2070 दूर लग सकता है, लेकिन इसके लिए जमीनी कार्य अभी शुरू होना जरूरी है। इस तैयारी में एक रोडमैप शामिल है, जो स्पष्ट, अच्छी तरह से तैयार और लचीला है और लक्ष्य पाने में मददगार है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि न केवल कंपनियां, बल्कि सभी हितधारक इसका पालन करें। इसके लिए हमें सरकार से यह रोडमैप बनवाने की जरूरत है, जिसमें प्रत्येक हितधारक के लिए वार्षिक या द्वि-वार्षिक आधार पर प्राप्त किए जाने वाले स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किए जाएं। भारत में निरंतरता को बनाए रखने में सबसे बड़ा योगदान ईएसजी संबंधित नियम हंै, चाहे वे सीएसआर कानून हों या ईपीआर नियम। सेबी बीआरएसआर दिशानिर्देश पारदर्शिता की रिपोर्टिंग में सक्रिय कार्रवाई का एक और उदाहरण है, जो ईएसजी प्रदर्शन में सुधार के लिए पहला और सबसे महत्त्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इस नियमन से पहले कई कंपनियों के लिए ईएसजी मानदंडों पर प्रदर्शन के मामले में स्पष्टता की कमी थी, फिर भी इन मानदंडों का खुलासा करने वाली कंपनियों की संख्या में वृद्धि हुई है।
निगरानी और मूल्यांकन के लिए विनियमन भी महत्त्वपूर्ण है। बढ़ती मांगों और जटिल बाजार अंत:क्रियाओं के साथ भारत के आकार के एक राष्ट्र के लिए नेट जीरो लक्ष्य पाने के लिए सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के साथ-साथ उद्योग, समुदायों, विज्ञान, शिक्षाविदों और समाज के प्रतिनिधियों के साथ एक-दूसरे (क्रॉस सेक्टोरल) क्षेत्र में गतिविधि की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, प्रत्येक हितधारक को विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित करने होंगे। उदाहरण के लिए, स्टील उद्योग के लिए कार्बन कैप्चर मात्रा, पुनर्चक्रण और संसाधनों की खपत में उपभोक्ता व्यवहार, समुदायों में सामाजिक पूंजी विकास आदि के लिए लक्ष्य। एक शासी निकाय द्वारा इन हितधारक-विशिष्ट लक्ष्यों की निगरानी के साथ इनकी समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए।
शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुंचने की भारत की प्रतिज्ञा के लिए समर्पित एक केंद्रीय प्राधिकरण या मंत्रालय की आवश्यकता है। वैज्ञानिक रूप से, नेट जीरो प्राप्त करना मुश्किल है। हर प्रक्रिया में कुछ हद तक उत्सर्जन होना तय है। हम उत्सर्जन को कम करने और उसेे विनियमित करने का अधिक से अधिक लक्ष्य रख सकते हैं। शून्य पर पहुंचने के लिए, हमें प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण और विकास के साथ-साथ उद्योग स्तर पर कार्बन कैप्चर के लिए अनिवार्य रूप से निवेश करने की आवश्यकता होगी। इस विशाल अभ्यास के लिए केवल प्रतिबद्धताओं और आत्म-प्रकटीकरण तथा निगरानी से अधिक की आवश्यकता होगी। रोडमैप को लागू करने, ट्रैक करने और प्रदर्शन की रिपोर्ट करने और समस्याओं का समाधान करने के लिए एक शासी निकाय का होना बहुत महत्त्वपूर्ण है।
भारतीय विधायिका में संघीय तत्व है। केंद्र और राज्य सरकारें भूमि के लिए कानून बनाती हैं। कई बार ये कानून एक-दूसरे के खिलाफ हो सकते हैं। अगर हम 2070 तक लक्ष्य पाने के लिए गंभीर हैं, तो हमें केंद्र और राज्य के नियमों और निर्देशों के बीच बेहतर तालमेल की जरूरत है। इस तालमेल से अखिल भारतीय उद्योगों को फलने-फूलने में मदद मिलेगी। विभिन्न चुनौतियों को उद्योग और सरकार के बीच लगातार, खुलकर स्पष्ट बातचीत और परामर्श के माध्यम से दूर किया जा सकता है। प्रारंभ में, नीति निर्माण में जमीनी हकीकत और औद्योगिक अनुभव को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
2070 में नेट जीरो तक पहुंचने के लिए सभी हितधारकों- सरकार, उद्योग जगत के अग्रणियों, समुदायों, शिक्षाविदों और नागरिकों द्वारा सामूहिक रूप से एक मार्ग बनाने की आवश्यकता होगी। अगर हम एक टीम के रूप में एकजुटता से काम नहीं करेंगे, तो जलवायु परिवर्तन की लड़ाई शुरू होने से पहले ही हार जाएंगे।
Updated on:
17 Nov 2022 01:53 pm
Published on:
16 Nov 2022 06:05 pm
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